- इण्डियन क्लासिकल डांस जोड़ता है अपनी संस्कृति से

- व‌र्ल्ड डांस डे पर डांस की भारतीय विधा को बढ़ाने का संकल्प लेना चाहिए

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KANPUR। इंडियन क्लासिकल डांस हमारे लिए सिर्फ डांस नहीं है, बल्कि हमें आध्यात्मिकता से जोड़ने का एक बेहतर जरिया है। ऐसा सिर्फ हमारे देश में ही मिलता है, जहां नृत्य और संस्कृति एक लय में बहते हैं। कथक डांस तो हमारा जीवन है, हमारी संस्कृति है। व‌र्ल्ड डांस डे पर हमें अपनी संस्कृति से जुड़े हमारे अपने क्लासिकल डांस की विधाओं को आगे बढ़ाने का संकल्प लेना चाहिए। इसी सोच के साथ प्रसिद्ध क्लासिकल डांसर वंदना देव रॉय शहर ही नहीं बल्कि देश-विदेश स्तर पर बच्चों को कथक डांस का प्रशिक्षण देने का काम कर रही हैं।

9 साल की उम्र में किया प्रभावित

वंदना जब जूनियर क्लासेज में पढ़ती थीं, उसी समय से कथक उनके दिल और दिमाग पर छा गया था। पापा भी हमेशा सपोर्ट में रहते थे। वंदना देव रॉय बताती हैं कि स्कॉलरशिप के लिए एक बार सेंट्रल कल्चरल रिर्सोसेज ट्रेनिंग सेंटर का एग्जाम देने दिल्ली गई थी। वहीं पर पंडित बिरजू महाराज से मुलाकात हुई। वह एग्जाम के निर्णायक मंडल के मेम्बर थे। पंडित जी के सामने 9 साल की उम्र में माखन चोरी का गत भाव दिखाया। जिसे देखकर वो बहुत खुश हुए और स्कॉलरशिप मिल गई। जिसमें ब्00 रुपए मिलते थे। वन्दना ने कथक में पीएचडी भी की है। वंदना को कथक की शिक्षा स्व। राजेश्वरी ठाकुर ने दी। जो कि लच्छू महाराज की शिष्या थीं। पं। बिरजू महाराज भी लच्छू महाराज के शिष्य थे।

कथक ने दिलाई अलग पहचान

वन्दना बताती हैं कि कथक ने उन्हें एक अलग पहचान दी है। कई अवार्ड भी कथक ने दिलाए, लेकिन अभी भी दिल में कथक को लेकर एक जुनून सा भरा हुआ है। क्99क् में नेहरू बाल संघ के कैम्प में डांसिंग पिकॉक का अवार्ड हासिल हुआ। लायंस ने 'एक्सीलेंस इन डांस' का खिताब दिया। वहीं गौर हरि सिंहानिया ने भी डांस में अवार्ड से सम्मानित किया।

रोते हुए किया नृत्य

वन्दना बताती हैं कि ख्008 में लाजपत भवन में हुए शिव इवेन्ट में उन्होंने एक मां काली के उस विभत्स रूप का मंचन किया। जब मां काली एक तरफ से दुष्टों के संहार में लगी थीं। ऐसे में उनके क्रोध को शान्त करने के लिए स्वयं भगवान शिव उनके पैरों तले आ गए थे। ये देखते ही मां काली की जीभ बाहर आ गई और वो अफसोस करने लगीं। नृत्य नाटिका के माध्यम से जब वे उस क्षण को परफार्म कर रही थीं तो वे पूरी तरह से उस किरदार में खो गईं। जैसे कि उस सीन को लाइव देख रही हों। जिसकी वजह से मंच पर ही आंखों से आंसू छलक गए लेकिन प्ले को जारी रखा। वह बताती हैं कि उनके जीवन का ये सबसे यादगार क्षण था।

संस्कृति से जोड़ता है क्लासिकल डांस

वेस्टर्न व इण्डियन क्लासिकल डांस के बारे में वंदना बताती हैं कि इण्डियन क्लासिकल डांस हमें हमारी संस्कृति से जोड़ता है। आध्यात्म की ओर ले जाता है। डांस भी प्रभु की अराधना का एक तरीका है। जर्मनी में एक बार हुए कल्चरल इवेंट को याद करते हुए उन्होंने बताया कि उसमें उन्होंने अर्धनारीश्वर का रोल प्ले किया था। जिसे देखकर वहां पर मौजूद लोग खड़े होकर तालियां बजाने लगे थे। दरअसल हमारी मिट्टी को पहचानना हो तो क्लासिकल डांस इसका सबसे अच्छा माध्यम है।

क्लासिक डांस के प्रति करना चाहिए जागरुक

वंदना कहती हैं कि क्लासिकल डांस के लिए हमें दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए। पेरेंट्स को चाहिए कि अपने बच्चों को क्लासिकल डांस सिखाएं और बच्चों को भी चाहिए कि वो इसे सीखें। मेरा दावा है कि एक बार इसमें रमने के बाद और कुछ अच्छा भी नहीं लगेगा।

Posted By: Inextlive