मुसलमान बहुल कश्मीर घाटी में एक तरफ अलगावादी हिंसा और दूसरी तरफ पुरुष प्रधान कट्टर समाज के साथ लंबी लड़ाई लड़ने के बाद 33 वर्षीय नुसरत जहाँआरा का नाम श्रीनगर की सफल महिला व्यवसायियों में शुमार हो गया हैं.

फूलों के बिज़नेस से शुरुवात करने वाली नुसरत अब लगभग 50 छोटी-बड़ी कंपनियों की आंतरिक व्यवस्था देख रही है। लेकिन अलगावादी माहौल और धमकियों के बीच अपने काम की शुरुवात करना इतना आसान नहीं था। वैसे नुसरत बचपन से खुद का व्यवसाय करना चाहती थी , लेकिन उन्हें शहरी विकास विभाग में वर्ष 1998 में नौकरी मिल गई थी।

उस समय भारत प्रशासित कश्मीर में अलगावादी हिंसा तेज़ी पर थी। नुसरत के अनुसार, "मैंने बेमन से वो नौकरी शुरू कर दी। तब मेरी उम्र 19 साल थी। मुझे जम्मू भेजा गया और यह पहला मौका था जब मैं घर से बाहर गई थी."

नुसरत ने अपना ट्रांसफर वापस श्रीनगर करवाने की कोशिश की। वे कहती हैं, "नौकरी में मेरा मन नहीं लग रहा था इसलिए 1999 में मैंने नौकरी छोड़ दी."

अपना काम

श्रीनगर लौटने के बाद नुसरत अपना खुद का काम करना चाहतीं थी लेकिन उनका परिवार इसके लिए राजी नहीं था। तब के श्रीनगर के हिंसक हालात एक लड़की के व्यवसायिक क्षेत्र में कदम रखने के बिल्कुल अनुकूल नहीं थे। अलगावादी हिंसा के अलावा जम्मू कश्मीर का रुढ़ीवादी समाज भी लड़कियों पर कई तरह के अंकुश लगाया करता रहता था।

नुसरत कहती हैं, "मैंने माता-पिता को कुछ हद तक समझाने के बाद फूलों का बिज़नेस शुरू कर दिया जिसमें अलग-अलग समारोहों में फूलों की सजावट की जाती थी और कश्मीर में ये एक नया काम था."

अपने पहले ऑर्डर को याद करते हुए नुसरत बताती हैं, "मेरा पहला काम था तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंच को सजाना। मेरे लिए ये पल गर्व और ख़ुशी दोनों का था." इसके बाद नुसरत को कई बड़े अधिकारियों के श्रीनगर दौरे पर सजावट का काम मिला। उन्होंने बताया कि इन महत्वपूर्ण समारोहों की सजावट के लिए उन्हें सरकार द्वारा उस जगह का एंट्री पास दिया जाता था।

धमकी

लेकिन ये सब इतना आसान नहीं था, नुसरत के ऐसी जगहों में जाने पर उन्हें धमकियाँ मिलने लगीं। वे कहती हैं, "ऐसे अहम समारोहों में देखने के बाद लोग मुझे आईबी का एजेंट समझने लगे। मुझे और मेरे घर वालों को चरमपंथी टेलिफोन से धमकियाँ भी देने लगे। मेरे घर वाले डर गए और उन्होंने मुझे काम बंद करने को कह दिया जिसके बाद मैं बड़ी मुश्किल से उन्हें राजी कर पायी."

नुसरत के लिए ये काफी कठिन समय था लेकिन नुसरत ने ठान लिया था, कि वे हर हालत में काम करती रहेंगी। माता-पिता के दबाव के कारण नुसरत ने साल 2005 में शादी कर ली।

शादी से पहले नुसरत के ससुराल वालों ने उनके बारे में कई तरह की जांच पड़ताल की, और शादी के बाद नुसरत ना सिर्फ काम करती रहीं बल्कि अपने व्यवसाय को बढ़ा भी लिया।

साल 1999 में जब नुसरत ने अपना काम शुरू किया तब उनकी वार्षिक बिक्री राशि 50 लाख रुपये थी जो अब बढ़कर आठ करोड़ तक हो गई है।

नफा - नुकसान

नुसरत को शुरु में लोगों समझाने और उन्हें यकीन दिलाने में काफी दिक्कतें आई। कई बार मौसम और वहां के माहौल के कारण आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ा। इस बुरे वक्त में उनके द्वारा शुरु किए गए हाउस कीपिंग के काम से उन्हें काफी मदद मिली।

हर कठिनाई का डटकर सामना करते हुए नुसरत आज न सिर्फ एक सफल व्यवसायी हैं बल्कि उन्होंने लगभग 300 लोगों को रोज़गार भी दिया है।

नुसरत के अनुसार, "मेरे सामने तीन चुनौतियां हैं, अपने ग्राहक को संतुष्ट रखना, अपने काम की गुणवत्ता बनाए रखना और प्रतिकूल माहौल में भी अपने व्यवसाय को जीवित रखकर उसे बेहतर बनाना है."

ये सब करते हुए उन्हें अपने परिवार के लिए भी समय निकालना होता है। नुसरत के पति पुलिस में हैं और उनका एक तीन साल का बेटा है। वे अपने ससुराल में अन्य रिश्तेदारों के साथ रहती हैं।

अपने इस सफ़र पर नुसरत कहती हैं, "रुकावटें डालने वालों ने मेरे आगे धर्म, समाज और हिंसक माहौल के नाम पर मुझे रोकने की कोशिश की लेकिन मैंने खुद पर भरोसा रखा और आगे बढती गई। मैंने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया और हर कठिनाई को पार करती गई। मुझे गलत कहने वाले लोग आज मेरी तारीफ करते हैं ये भी मेरे लिए एक जीत के समान है." आज कश्मीर में 70 से 80 लड़कियां खुद का व्यवसाय चला रही हैं और पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों को चुनौती दे रही हैं।

Posted By: Inextlive