बिहार के समस्तीपुर ज़िले में मुश्किल से गुज़र-बसर करने वाले मोहम्मद अलाउद्दीन के परिवार के लिए सरकारी बीमा योजना मुफ़्त में इलाज जैसी राहत देने के बजाय आफ़त बनकर आई.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना यानी आरएसबीवाई इसलिए बनी थी ताकि ग़रीबी और बीमारी की दोहरी मार झेल रहे परिवारों को थोड़ी राहत मिल सके। लेकिन केंद्र की इस बड़ी योजना से जुड़े ग़रीबों के साथ बिहार में हुए घात और घपलों के कई सियाह कारनामे उभर कर सामने आ गए हैं। इनमें जो सबसे अधिक चर्चा में है उसे 'गर्भाशय घोटाला' कहा जा रहा है। इसी घोटाले का शिकार हुई हैं अलाउद्दीन की पत्नी सफ़ीना ख़ातून।

यहाँ आरएसबीवाई के तहत दो वर्षों में लगभग 50 हज़ार ग़रीब महिलाओं के गर्भाशय निकाल दिए जाने के सरकारी आंकड़े ही इसके गवाह बन चुके हैं।

इस योजना में अंदर-ही-अंदर 'लूट सके सो लूट' जैसी होड़ मची होने की पहली अधिकृत जानकारी समस्तीपुर के ज़िलाधिकारी कुंदन कुमार ने दी। बतौर सबूत उन्होंने गड़बडियों की जो सूची बनाई, उसी में से एक मामले का मौक़ा मुआयना करने हम अपने सहकर्मी पवन नारा के साथ समस्तीपुर ज़िले के विद्यापतिनगर अंचल से जुड़े गढ़सिसई गाँव पहुंचे, सफ़ीना ख़ातून के घर। उनसे मुलाक़ात और बातचीत की तो ये मामला कथित नहीं, बल्कि साबित घपले की शक्ल में दिखने लगा।

सफ़ीना का ग़म

सफ़ीना हमें अपना दुखड़ा सुनाने लगीं- जांच कराने जब समस्तीपुर के मिश्रा क्लिनिक में गए, तो वहाँ डाक्टरनी मैडम बोली कि बच्चेदानी में सूजन हो गया है और बगल की थैली में भी पानी है।

फिर जब वहाँ ऑपरेशन हो गया तो कहा दोनों चीज निकाल दिए हैं, अब माहवारी, मतलब एमसी नहीं होगा। लेकिन चार महीना हो गया, एमसी नहीं रुका। ऑपरेशन के बाद घर आने पर तबीयत इतनी बिगड़ गई कि पंद्रह सौ रूपए का दवा-सुई खरीदकर लेना पड़ा।

फिर उन्होंने समस्तीपुर ज़िला प्रशासन की ओर से कराई गई जांच में उभरे उस चौंकाने वाले तथ्य का ज़िक्र किया, ''अजीब बात है कि जब डीएम साहब ने शिविर में डॉक्टर से फिर हमारी जांच करवाई, तो पता चला कि हमारी बच्चेदानी निकाली ही नहीं गई थी, सिर्फ पानी वाली थैली निकालकर छोड़ दिया था। फिर तो हम भारी मुसीबत में फंस गए.''

छल से आहत

अपनी बीवी की पीड़ा और इलाज में हुए छल से ख़ासे आहत लग रहे मो। अलाउद्दीन बोल उठे, ''हमारे परिवार पर इसका इतना तकलीफदेह असर हुआ है कि बता नहीं सकते। और सबसे गंभीर बात तो ये है कि सिर्फ मेरी बीवी के साथ ऐसा धोखा नहीं हुआ है, बल्कि कई औरतों के साथ ये जुल्म हुआ है। कौन देगा इसका हर्जाना? मैं तो इसके ख़िलाफ़ में अर्जी ज़रूर दूंगा, छोडूंगा नहीं.''

गढ़सिसई गाँव के कई अन्य लोग वहाँ जुट गए और कहने लगे कि अब प्राइवेट नर्सिंग होम चलाने वालों पर भरोसा कैसे किया जाय? इस बात पर वहाँ एक बुज़ुर्ग ने भारी मन से टिप्पणी की कि वक़्त-ज़रूरत ऐसे डॉक्टरों के पास जाना ही पड़ता है क्योंकि मरता क्या नहीं करता।

ये दर्द किसी एक सफ़ीना के परिवार का नहीं है। कई ऐसी ग़रीब और ग्रामीण महिलाओं के साथ हुए घात, फरेब और गर्भाशय निकाले जाने के बाद बढी तकलीफ के सबूत गाँव-गाँव में सामने आने लगे हैं।

घात और फ़रेब की दास्तानहम जब इसी ज़िले के सरायरंजन अंचल में लाटवासेपुर गाँव पहुंचे, तो वहाँ राम टोले में सुनीता देवी, आशा देवी और गीता देवी ने बच्चेदानी निकलवाने के बाद हो रही तकलीफों का बयान शुरू कर दिया।

सुनीता देवी कुहरते हुए बोली, ''डॉक्टर साहब ने कहा कि बच्चेदानी तो ख़राब हो ही गया था, अपेंडिक्स भी फटने ही वाला था। इसलिए दोनों को निकाल दिया। लेकिन अब हाल ये है कि पूरा देह सुन्न लगता है। दर्द और कमजोरी के मारे उठते ही गिरने लगते हैं। क्या हो गया है, पता नहीं !''

उसी टोले की आशा देवी और गीता देवी भी कहने लगी, ''दर्द और टीस इतना उठते रहता है कि पूछिए मत। बच्चेदानी निकलवा के भी चैन नहीं है.''

ऐसा भी नहीं है कि गर्भाशय के जो भी ऑपरेशन इस बीमा योजना के सिलसिले में हुए, वे सब ग़ैर ज़रूरी थे, या निजी अस्पतालों ने रूपए कमाने के लिए सीधे-सादे लोगों को बहला-फुसला के सर्जरी कर दी।

योजना का आकर्षणग़रीबी रेखा के नींचे वालों को साल में 30 हज़ार रूपए तक के ऑपरेशन या अस्पताल में भर्ती होकर इलाज कराने की सुविधा जिस योजना में मिले, उसके प्रति आकर्षण भी स्वाभाविक है। इसी आकर्षण का नाजायज़ लाभ लेने वालों की भ्रष्ट मानसिकता ने ग़रीबों की सेहत के साथ खिलवाड़ और एक बड़े घपले को जन्म दे दिया है।

इसलिए आरएसबीवाई के तहत सूचीबद्ध निजी अस्पतालों, बीमा एजेंसियों और संबंधित सरकारी महकमों की मिलीभगत का पूरा पर्दाफाश होना आसान नहीं, बड़ा कठिन है।

फिर भी गड़बडियों के पिटारे का पहला ढक्कन समस्तीपुर में ज़िलाधिकारी ने जब खोला, तो बावेला-सा मच गया और आरोप है कि तभी से लीपापोती के प्रयास भी शुरू हो गए।

छानबीनइस एक ज़िले में हुई आरंभिक छानबीन से पता चला कि वहाँ दो साल में आरएसबीवाई स्मार्ट कार्डधारकों में से 14 हज़ार 851 मरीजों के ऑपरेशन किए गये। इनमें से 5,503 हिस्टेरेक्टोमी यानी गर्भाशय निकाले जाने वाले ऑपरेशन थे।

आश्चर्य की बात है कि एक विशेष कैंप में चिकित्सा विशेषज्ञों ने जिन 2,606 मरीजों की दोबारा जांच की, तो पता चला कि 34 महिलाओं की बच्चेदानी अपनी जगह पर क़ायम थी। मतलब ऑपरेशन का झूठा क्लेम दिखाकर निर्धारित रक़म (10 हज़ार रूपए प्रति मरीज़) निकाल ली गई।

इसके अलावा 316 मामले ऐसे पाए गये, जिनमें कम उम्र की महिलाओं के गर्भाशय बिना ज़रूरत निकाल दिए जाने की पुष्टि इन चिकित्सा विशेषज्ञों ने की है। इतना ही नहीं, 265 ऐसे मरीज़ मिले, जिनसे गर्भाशय के अलावा कुछ और तरह का भी ऑपरेशन हुआ बताकर ज़्यादा रक़म ऐंठ ली गई।

संबंधित निजी अस्पतालों में से कुछ ने तो अपने यहाँ इस योजना के अंतर्गत किए गए कुल ऑपरेशनों में से लगभग 60 प्रतिशत ऑपरेशन सिर्फ़ बच्चेदानी के किए। यानी गर्भाशय निकालने या निकलवाने की बाढ़-सी आ गई।

निजी अस्पतालों की चांदीअकेले समस्तीपुर ज़िले में आरएसबीवाई के लिए बीमा कंपनियों ने निजी अस्पतालों को जो कुल 13 करोड़ रूपए का भुगतान किया, उनमें लगभग आधी रक़म बच्चेदानी की सर्जरी के मद में दी गई।

राज्य भर में इसके लिए चुने गए कुल आठ सौ निजी अस्पतालों को अबतक 345 करोड़ रूपए के ‘इंश्योरेंस क्लेम’ का भुगतान किया जा चुका है।

हमें ये तमाम सूचनाएं देते हुए भी समस्तीपुर के ज़िलाधिकारी कुंदन कुमार ने बार-बार ये दोहराया कि राज्य सरकार या प्रशासनिक स्तर से निगरानी में हुई चूक का आरोप सही नहीं है।

ज़ाहिर है कि इस युवा ज़िलाधिकारी के अति उत्साह वाली कुछ जानकारी सामने आने को लेकर राज्य सरकार की किरकिरी हुई है और अन्य ज़िलों के अधिकारी इस बाबत अब खुलकर कुछ बताने से कतराते हैं। लेकिन, हमने इसी ख़बर के सिलसिले में जब मुख्यमंत्री के गृह ज़िला नालंदा का दौरा किया, तो पता चला कि गर्भाशय के सबसे ज़्यादा ऑपरेशन उसी ज़िले में हुए हैं। वहाँ का ब्यौरा अगले अंक में।

Posted By: Inextlive