ट्रांसपोर्ट नगर स्थित मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन के ड्रग वेयरहाउस में 16।40 नहीं बल्कि 27 करोड़ की दवाएं एक्सपायर होने की जानकारी सामने आई है। कमीशनबाजी के चक्कर में दवाओं की खरीद और वितरण में भी जमकर खेल किया गया है। यह सच्चाई जांच रिपोर्ट में सामने आई है। हालांकि मुख्य दोषी कौन है इस पर चुप्पी साध ली गई है।

लखनऊ (ब्यूरो)। हेल्थ मिनिस्टर ब्रजेश पाठक ने जब ड्रग वेयर हाउस में छापा मारा था, तो 16.40 करोड़ की एक्सपायरी दवाओं की जानकारी मिली थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए हेल्थ मिनिस्टर ने चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सचिव प्रांजल यादव के नेतृत्व में चार सदस्यीय जांच टीम गठित की गई थी। टीम ने इस मामले की जांच रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है।

जांच रिपोर्ट से आया सामने
1-वेयरहाउस में 27 करोड़ की एक्सपायर्ड दवाएं मिलीं
2-दवा खरीद होती रही लेकिन अस्पतालों में पूरी नहीं भेजी गईं
3-वेयर हाउस में कोल्ड चेन की स्थापना की जरूरत
4-दवाओं के रखरखाव में हो रही है लापरवाही
5-असल दोषी को लेकर तस्वीर साफ नहीं की गई

दवा सप्लाई तक नहीं हुई
जांच कमेटी के एक सदस्य के मुताबिक, सबसे बड़ी लापरवाही दवाओं के मांग पत्र के अनुसार उनका लगातार खरीदना माना गया है। अस्पतालों या अधिकारियों द्वारा दवा की जो मांग की जाती थी, उसके अनुसार लगातार खरीदारी होती रही, लेकिन, कितना खर्च हुआ इस पर ध्यान नहीं दिया गया। जिससे दवाओं की डिलीवरी नहीं हो सकी। ऐसे में दवा के रख-रखाव में बड़ी लापरवाही हुई है। अगर जांच रिपोर्ट के इतर बात की जाए तो साफ है कि दवाओं की खरीद फरोख्त में कमीशनबाजी का खेल मिला है। यह तथ्य इससे स्पष्ट होता है कि कंपनी और अधिकारियों की साठगांठ के चलते बड़ी मात्रा में दवाएं तो खरीदी गईं लेकिन अस्पतालों में नहीं भेजी जा सकीं।
27 करोड़ की दवाएं एक्सपायर्ड
जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि एक्सपायर्ड दवा का मूल्य 16.40 करोड़ नहीं बल्कि करीब 27 करोड़ है। हालांकि, कमेटी के अनुसार चूंकि कार्पोरेशन द्वारा करीब ढाई हजार करोड़ की दवा खरीदने का काम किया जाता है। ऐसे में यह बड़ा आंकड़ा नहीं है, क्योंकि बीच में कोविड आने की वजह से अस्पतालों के अलावा एनएचएम के कई प्रोग्राम काफी समय के लिए बंद भी थे। जिससे दवा सप्लाई नहीं हो सकी और दवाएं एक्सपायर हो गईं। जो दवा बांटने के लिए खरीदी गई थीं उसके अनुसार काफी कम मात्रा में दवा खराब हुई हैं।
गैर जरूरी दवा भी खरीदी गई
कमेटी को जांच के दौरान यह जानकारी भी मिली है कि अधिकारियों ने कई ऐसी दवाएं भी खरीदी थी, जिनकी डिमांड या जरूरत नहीं थी। जैसे कि कैंसर की दवा भी मिली, लेकिन यह किन सरकारी अस्पतालों को भेजी जाती है इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जब दवा की जरूरत ही नहीं थी तो उसे खरीदा क्यों गया। ऐसे इसके पीछे भी कमीशनबाजी का ही खेल माना जा रहा है।
परचेज आर्डर की तय हो जिम्मेदारी
कमेटी ने रिपोर्ट में परचेज आर्डर करने वालों की मंशा पर सवालिया निशान उठाये हैं क्योंकि उनके द्वारा ही दवाएं का टेंडर किया जा रहा था। ऐसे में मांग के अनुरूप दवा खरीदना और लेकिन उसकी सप्लाई न करना ही दवाओं के खराब होने का कारण माना गया है।
अन्य संस्तुतियां भी की गई
वहीं जांच कमेटी ने कई संस्तुतियां भी ही हैं। जिसके तहत वेयर हाउस में कोल्ड चैन बनाने की बात कही गई है। ताकि दवाओं को सही तापमान पर स्टोर किया जा सके। इसके अलावा दवाओं को सही से रखा जाये ताकि समय पर उनको ढूंढा जा सके। इसके अलावा डिमांड और सप्लाई करने वालों के बीच कोआर्डिनेशन को और बेहतर करने की जरूरत है।

फ्लैशबैक
1-20 मई को हेल्थ मिनिस्टर ने मारा था छापा
2-16.40 करोड़ की एक्सपायर दवाएं मिली थीं
3-मानक के विपरीत दवाएं रखी हुई मिली थीं
4-गैर जरूरी दवाएं भी मिली थीं
5-मौके पर ही हेल्थ मिनिस्टर ने जांच टीम बनाई थी

Posted By: Inextlive