- सीबीआई की विशेष अदालत ने फैसले के दिन सभी 32 आरोपितों को उपस्थित होने के दिए निर्देश

- उच्चतम न्यायालय का स्पष्ट निर्देश था कि 30 सितंबर तक सुना दिया जाए निर्णय

रुष्टयहृह्रङ्ख: अयोध्या के ढांचा ध्वंस मामले का फैसला सीबीआई की विशेष अदालत 30 सितंबर को सुनाएगी। इस मामले में छह दिसंबर 1992 को कुल 50 एफआईआर दर्ज हुई थी। तीन जांच एजेंसियों ने मिलकर इसकी विवेचना की। कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार इस प्रकरण में 30 सितंबर तक फैसला देना है। इस समय विशेष अदालत में 32 आरोपितों के विरुद्ध विचारण हो रहा है, जबकि 17 आरोपियों की मृत्यु हो चुकी है। सीबीआई ने कई चरणों में आरोपपत्र दाखिल कर अभियोजन पक्ष को साबित करने के लिए 994 गवाहों की सूची अदालत में दाखिल की। इसमें विचारण के दौरान 354 गवाह पेश किए गए। मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार यादव ने फैसले के दिन सभी आरोपितों को अदालत में उपस्थित होने के निर्देश दिए हैं।

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कई लोगों ने दर्ज कराई थी एफआईआर

इस मामले से जुड़े अधिवक्ता केके मिश्र ने बताया कि अयोध्या ढांचा ध्वंस मामले की पहली रिपोर्ट (197/92) इंस्पेक्टर रामजन्मभूमि प्रियंवदा नाथ शुक्ला ने थाना रामजन्मभूमि में 40 लोगों को नामजद करते हुए लाखों अज्ञात कारसेवकों के खिलाफ दर्ज कराई थी। इसी दिन दूसरी रिपोर्ट (198/92) चौकी इंचार्ज राम जन्मभूमि जीपी तिवारी ने अज्ञात कारसेवकों के खिलाफ दर्ज कराई थी। इसके अलावा 48 रिपोर्टें मीडिया कर्मियों की ओर से दर्ज कराई गईं।

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इनके खिलाफ दाखिल हुआ था आरोपपत्र

इस मामले की जांच कर रही सीबीआई ने अपराध संख्या 197/92 की विवेचना करते हुए 40 आरोपितों के विरुद्ध चार अक्टूबर 1993 को विशेष अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (अयोध्या प्रकरण) लखनऊ के समक्ष आरोपपत्र दाखिल किया। इसमें बालासाहेब ठाकरे, लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, अशोक सिंहल, विनय कटियार, मोरेश्वर सावे, पवन पांडे, बृजभूषण शरण सिंह, जय भगवान गोयल, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, महाराज स्वामी साक्षी, सतीश प्रधान, मुरली मनोहर जोशी, गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया, विनोद कुमार वत्स, रामचंद्र खत्री, सुधीर कक्कर, अमरनाथ गोयल, संतोष दुबे, प्रकाशशर्मा, जय भान सिंह पवैया, धर्मेंद्र सिंह गुर्जर, राम नारायण दास, रामजी गुप्ता, पूर्व विधायक लल्लू सिंह, चंपत राय बंसल, ओम प्रकाश पांडे, लक्ष्मी नारायण दास महा त्यागी, विनय कुमार राय, कमलेश त्रिपाठी, गांधी यादव, हरगो¨वद सिंह, विजय बहादुर सिंह, नवीन भाई शुक्ला, रमेश प्रताप सिंह, आचार्य धर्मदेव, आरएन श्रीवास्तव एवं देवेंद्र बहादुर राय को आरोपित बनाया गया था।

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रायबरेली से लखनऊ स्थानांतरित हुआ केस

1993 में राज्य सरकार ने केस की अग्रिम विवेचना सीबीआई से कराने की संस्तुति केंद्र सरकार से कर दी। सीबीआई ने 27 अगस्त 1993 को जांच शुरू की। 24 जनवरी 1994 को रायबरेली की कोर्ट में सीबीआई ने अनुरोध किया कि इस प्रकरण से संबंधित दूसरा मामला लखनऊ की विशेष अदालत में चल रहा है लिहाजा इस केस को भी लखनऊ की विशेष अदालत को स्थानांतरित कर दिया जाए। जिस पर विशेष अदालत ने जिला जज रायबरेली को सूचित करते हुए मामले को लखनऊ की अदालत भेज दिया।

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कल्याण सिंह को नहीं करानी पड़ी थी जमानत

उच्चतम न्यायालय के 19 अप्रैल 2017 के निर्णय के उपरांत पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को छोड़कर अन्य आरोपितों ने लखनऊ की विशेष अदालत में हाजिर होकर जमानत कराई। उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा था कि आरोपित कल्याण सिंह मौजूदा समय में राजस्थान के राज्यपाल हैं तथा संविधान के अनुच्छेद 360 के अंतर्गत पद पर रहने के दौरान उनके विरुद्ध अदालती कार्यवाही नहीं की जा सकती। राज्यपाल पद से हटने के बाद उनके हाजिर होने पर सभी आरोपितों के साथ-साथ उनके विरुद्ध भी अदालती कार्यवाही प्रारंभ की गई।

Posted By: Inextlive