यूपी के सबसे बड़े जिला अस्पातल बलरामपुर में चिकित्सीय सुविधाएं न होने का खामियाजा आम और गरीब मरीजों को उठाना पड़ता है। यहां पर एमआरआई जांच शुरु होने का इंतजार सैकड़ों मरीज बीते तीन वर्षों से कर रहे है। वो भी तब जब एमआरआई भवन का शिलान्यास खुद सीएम तीन वर्ष पहले कर चुके हैं। वहीं करीब 92 लाख बजट से प्रोजेक्ट की एक मंजिला बिल्डिंग का हिस्सा बन चुका है लेकिन अधिकारियों की उदासीनता की वजह से तीन वर्ष बीतने पर भी सुविधा शुरू नहीं हो सकी है। अगर समय पर जांच शुरु कर दी जाये तो गरीब मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी।

लखनऊ (ब्यूरो)। वर्ष 2019 में अस्पताल के 150 स्थापना दिवस के मौके पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने अस्पताल को एमआरआई की सुविधा का शिलान्यास करते हुए, उपहार स्वरूप दिया था। इसके लिए एक्सरे मशीन विभाग के पास बिल्डिंग बनाने के लिए जगह दी गई थी, जिसके निमार्ण के लिए 96 लाख के लगभग खर्च होने थे। इसके लिए उप्र राज्य निमार्ण निगम को बिल्डिंग बनाने का जिम्मा दिया गया था, लेकिन बीते तीन वर्ष में एक मंजिला बिल्डिंग तो खड़ी हो चुकी है। फिर भी एमआरआई मशीन का अभी तक कोई पता नहीं है। वहीं, एमआरआई मशीन 5 करोड़ से लेकर 15 करोड़ के बीच तक आती है। अस्पातल प्रशासन का कहना है कि अभी तक बिल्डिंग का काम पूरा नहीं है और न ही बिल्डिंग ट्रांसफर की गई है। ऐसे में जबतक बिल्डिंग पूरी तरह बनकर तैयार नहीं हो जाती तबतक मशीन को लेकर बात कैसे की जाये। अस्पताल प्रशासन और कार्यदायी संस्थान के ढुलमुल रवैया का खामियाजा गरीबों की जेब पर भारी पड़ रहा है।

एक्सरे टेक्नीशियन को दी जा चुकी है ट्रेनिंग
अस्पताल प्रशासन की तरफ एमआरआई मशीन चलाने के लिए तीन एक्स-रे टेक्नीशियन को लोहिया संस्थान में तीन महीने की ट्रेनिंग दी गई थी। वहीं उन्हें ट्रेनिंग लिए तीन साल से ज्यादा का समय हो गया है। ऐसे में टेक्नीशियन को ट्रेनिंग के भी कई साल हो चुके हैं, लेकिन जांच अभी तक शुरू नहीं हो पाई है।

25-30 मरीजों को जांच की जरूरत
बलरामपुर अस्पताल की ओपीडी में रोजाना 2-3 हजार मरीज दिखाने के लिए आते हैं। इसमें कई मरीज बेहद गंभीर होते हैं। जिनमें रोजाना करीब 25-30 मरीजों को एमआरआई की जांच लिखी जाती है, लेकिन यहां सुविधा न होने के कारण आम और गरीब मरीजों को निजी डायग्नोस्टिक सेंटर में जांच कराने के लिए भेजा जाता है। जहां 5 हजार से ज्यादा का खर्च कर मरीज जांच करवाने को मजबूर हैं। हालांकि, अस्पातल में सीटी स्कैन मशीन जरूरी है, लेकिन वो गहन जांच के लिए मददगार नहीं साबित होता है। वहीं केजीएमयू और लोहिया में एमआरआई जांच होती है, लेकिन यहां पर संस्थान के ही मरीजों का ओवरलोड होने से लंबी वेटिंग चल रही है। ऐसे में मरीज बाहर से महंगी जांच कराने को मजबूर हैं।


अभी बिल्डिंग का काम पूरा नहीं हुआ है और न ही ट्रांसफर की गई है। काम पूरा होने के बाद ही मशीन लगाने के बारे में काम किया जा सकता है।
डॉ। आलोक कुमार, निदेशक बलरामपुर अस्पताल


एमआरआई मशीन महंगी आती है। ऐसे में शासन स्तर से ही खरीदी जाती है।
डॉ। वेदव्रत, डीजी हेल्थ
बलरामपुर में नहीं हो रही एमआरआई
बछरांवा निवासी 55 वर्षीय रामकली के सिर पर चोट लग गई। परिजन बलरामपुर अस्पताल लेकर आये। ओपीडी में डॉक्टर ने देखने के बाद एमआरआई जांच लिख दी, लेकिन अस्पातल में सुविधा न होने के कारण उनको बाहर से महंगी जांच करवानी पड़ी। इसके बाद उनका इलाज शुरू हो सका।


5200 रुपये में बाहर से कराई जांच
महोबा निवासी विशाल कुमार को न्यूरो की समस्या होने लगी। परिजनों ने कई जगह दिखाया। आखिर में बलरामपुर में न्यूरो के डॉक्टर को दिखाने पहुंचे। जहां डॉक्टर द्वारा एमआरआई जांच के लिए लिखा गया। विशाल के मुताबिक अस्पताल में एमआरआई की सुविधा नहीं है। निजी लैब में 5200 रुपये देकर जांच करवानी पड़ी। इसके बाद सही से इलाज शुरू हो सका।

Posted By: Inextlive