बीते साल की तुलना में इस साल यूनिफॉर्म में 10 से 20 फीसदी का इजाफा हुआ है। पेरेंट राकेश कुमार सिंह का कहना है कि महंगाई लगातार बढ़ रही है। मेरा बेटा इस साल 8वीं में गया है उसकी शर्ट बदलनी थी। जो शर्ट मैंने बीते साल 700 रुपये की ली थी वह इस साल 850 रुपये की मिल रही है।


लखनऊ (ब्यूरो)। नया शैक्षिक सत्र पेरेंट्स के लिए महंगाई की मार साबित हो रहा है। स्कूल फीस, कॉपी-किताबों के बाद यूनिफॉर्म की महंगाई और कमीशनखोरी से लगातार पेरेंट्स की जेब ढीली हो रही है। शहर के कई पेरेंट्स का कहना है कि पहले दो सेट यूनिफॉर्म में पूरा सेशन निकल जाता था, लेकिन मौजूदा समय में स्कूलों में यूनिफॉर्म के नाम पर अलग-अलग सेट तो जेब पर कैंची चला ही रहे हैं, कई निजी स्कूल तो हर सत्र में ड्रेस में छोटा-मोटा बदलाव करके पेरेंट्स पर आर्थिक बोझ बढ़ा रहे हैं।केस 1आकाश वर्मा, गोमतीनगरमहीने की इनकम: 40 हजार रुपयेनए सत्र में यूनिफॉर्म के खरीदे 3 सेट:3500 रुपयेविंटर के 2 सेट ब्लेजर व स्वेटर मिलाकर: 5500 रुपये


आकाश बताते हैं कि जिस स्कूल में उनकी बेटी पढ़ती है वहां यूनिफॉर्म के 5 सेट चलते हैं, जिसमें 2 सेट समर, 2 सेट विंटर और 1 सैटरडे यूनिफॉर्म होती है।केस 2भाविका तिवारी, महानगरमहीने की इनकम: 42 हजार रुपयेजिस स्कूल में भाविका अपनी बेटियों को पढ़ा रही हैं वहां एक क्लास में 6 यूनिफॉर्म सेट चलते हैं। यूनिफॉर्म में एक बेटी पर 3500-4000 का खर्च आता है। नए सत्र में दो बेटियों का खर्चा यूनिफॉर्म पर 10 हजार के बीच होता है।

छह सेट में एक रेगुलर यूनिफॉर्मएक हाउस यूनिफॉर्म और एक स्पोट्र्स यूनिफॉर्म समर सीजन और एक रेगुलर यूनिफॉर्म, हाउस यूनिफॉर्म और स्पोट्र्स यूनिफॉर्म विंटर सीजन की चलती है।दो रेगुलर यूनिफॉर्म भी काफी हैंजानकीपुरम निवासी रूप कुमार बताते हैं कि आज के दौर में निजी स्कूलों में यूनिफॉर्म की बात करें तो 4 सेट से लगाकर 6 सेट तक होते हैं। मेरी बेटी जिस स्कूल में पढ़ती है वहां 6 सेट चलते हैं। इसमें समर और विंटर की ड्रेस तो अलग है ही हाउस और स्पोट्र्स यूनिफॉर्म के साथ-साथ शूज और शॉक्स भी बदल जाते हैं। जिन अभिभावकों के एक बच्चा है और जिनकी सैलरी ठीक है वह तो यह खर्च वहन भी कर लें, लेकिन जिनके दो या तीन बच्चे हैं उनकी सालाना कमाई का आधे से ज्यादा हिस्सा बच्चों की फीस, कॉपी-किताब, यूनिफॉर्म वगैरह में ही खर्च हो जाता है। देखा जाए तो दो रेगुलर यूनिफॉर्म और स्पोट्र्स के लिए कॉमन ट्रैक सूट से भी काम चल सकता है। जरूरी नहीं है कि आपको हाउस या स्पोट्र्स यूनिफॉर्म के लिए अलग से पेरेंट्स का खर्च बढ़ाना पड़े। स्कूल सिर्फ एक लोगो और अपने नाम को लेकर भी हर साल कुछ न कुछ खर्च करवाते रहते हैं।

हर साल 500 से 1000 का खर्चगोमतीनगर निवासी मंजरी उपाध्याय कहती हैं कि शहर के नामी स्कूल यूनिफॉर्म में हर साल कुछ न कुछ बदलाव कर देते हैं। जैसे टाई में नया कलर या बेल्ट का नया बकल भर बदलने से मार्केट में यह टाई और बेल्ट का सेट आपको 350 से कम का नहीं मिलेगा। इसी तरह कुछ स्कूल व्हाइट शर्ट में ग्रीन लाइनिंग या ब्लू लाइनिंग कर देते हैं जिसके लिए आपको 500 रुपये खर्च करने ही पड़ेंगे और यह अनिवार्य है आपको खरीदना ही पड़ेगा। यूनिफॉर्म में हर साल छोटे-मोटे बदलाव से कम से कम 500 से 1000 रुपये का खर्च आता है।मजबूरी में लेनी पड़ जाती है यूनिफॉर्म
कई निजी स्कूल यूनिफॉर्म कहां से खरीदनी है इसकी डिटेल भी बुक लिस्ट के साथ देते हैं। इंदिरानगर निवासी सैफ हुसैन कहते हैं कि मेरा बेटा जिस स्कूल में पढ़ता है वहां की यूनिफॉर्म आपको उसी दुकान पर मिलेगी जहां से स्कूल बताएगा। शहर की कुछ दुकानों पर ही यह यूनिफॉर्म आपको उपलब्ध होगी, जिसका विकल्प आपको स्कूल बताता है। इन दुकानों में यूनिफॉर्म का पूरा सेट भी आपको महंगा ही मिलता है। जब कहीं और यूनिफॉर्म मिलेगी ही नहीं तो पेरेंट्स मजबूरी में खरीद लेते हैं, ताकि बच्चों को दिक्कत न हो।10 से 20 परसेंट तक का इजाफाबीते साल की तुलना में इस साल यूनिफॉर्म में 10 से 20 फीसदी का इजाफा हुआ है। पेरेंट राकेश कुमार सिंह का कहना है कि महंगाई लगातार बढ़ रही है। मेरा बेटा इस साल 8वीं में गया है, उसकी शर्ट बदलनी थी। जो शर्ट मैंने बीते साल 700 रुपये की ली थी वह इस साल 850 रुपये की मिल रही है। कपूरथला की एक स्कूल यूनिफॉर्म शॉप के ओनर ने बताया कि अमूमन हमारे यहां सबसे छोटे साइज की यूनिफॉर्म की शुरुआत 350-400 रुपये से होती थी, लेकिन इस साल इस रेट में भी 100-150 रुपये का इजाफा हुआ है। वहीं, जहां 500 से 600 रुपये के बीच 24, 26, 28 नंबर की यूनिफॉर्म मिल रही थी वहीं यह रेट भी बढ़कर 600 से 750 रुपये के बीच हो गया है। यूनिफॉर्म का रेट कपड़े और साइज पर डिपेंड करता है।
निजी स्कूल बच्चों को पढ़ाने के एवज में पेरेंट्स से खुली लूट कर रहे हैं। नियम के मुताबिक, स्कूल किसी अभिभावक को एक ही दुकान से यूनिफॉर्म, कॉपी-किताब खरीदने को बाध्य नहीं कर सकता, लेकिन स्कूलों ने ऐसा तरीका खोजा है कि सीमित दुकानों में सीमित स्कूलों की यूनिफॉर्म मिलती हैं। कई बार शिकायत मिलती है कि स्कूल ने बीच सेशन में यूनिफॉर्म बदल दी, जिससे अभिभावक परेशान होते हैं। इस तरह के गैर जरूरी खर्चों के लिए भी नियम बनना चाहिए।-प्रदीप श्रीवास्तव, पेरेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन

Posted By: Inextlive