ओपीडी में इंटरनेट और गेमिंग एडिक्शन वाले बच्चे लगातार आ रहे हैं जिनमें प्रॉब्लमैटिक इंटरनेट यूज की समस्या देखने को मिलती है। पर लोग अभी भी इस समस्या को कोई बीमारी नहीं समझते और बर्दाश्त करते रहते हैं।


लखनऊ (ब्यूरो)। बच्चों में मोबाइल इस्तेमाल करने की आदत कब खतरनाक स्तर पर पहुंच जाती है, पैंरेंट्स इस पर ध्यान ही नहीं दे पाते हैं। यह लत छुड़ाने के लिए केजीएमयू के मनोरोग विभाग में प्रॉब्लमैटिक यूज ऑफ टेक्नोलॉजी (पुट) क्लीनिक चलाई जाती है। कुछ महीनों पहले राजधानी में एक बच्चे ने गेम खेलने से टोकने पर अपनी मां की हत्या कर दी थी, जिसके बाद अब अन्य पैरेंट्स भी अपने बच्चों को लेकर सतर्क हो गये हैं। इस क्लीनिक में बड़ी संख्या में पैंरेंट्स बच्चों में हद से ज्यादा मोबाइल फोन यूज करने की आदत के चलते लडऩा, गाली देना, मारपीट करना आदि जैसी समस्याएं लेकर पहुंच रहे हैं। ओपीडी में इस तरह के करीब 10 से 15 मामले देखने को मिल रहे हैं। वहीं, डॉक्टर्स इससे बचाव के लिए डिजिटल फास्टिंग की सलाह देते हैं।8 से 16 वर्ष के बच्चों में समस्या अधिक


प्रॉब्लमैटिक यूज ऑफ टेक्नोलॉजी क्लीनिक के इंचार्ज डॉ। पवन गुप्ता के कहा कि उस घटना के बाद पैरेंट्स में जागरूकता देखने को मिल रही है। पहले इस तरह के 3 से 4 ही मामले आते थे, जो अब बढ़कर 10 से 15 तक हो गये हैं। इसमें 8 से 16 वर्ष के बच्चे शामिल हैं। 12 से 13 साल के बच्चों में यह समस्या ज्यादा देखने को मिलती है। खासकर जो बच्चे तीसरी या चौथी क्लास में पढ़ाई कर रहे हैं, क्योंकि इस दौरान बच्चों का माइंड डेवलप हो रहा होता है। ऐस मेें मोबाइल का अधिक यूज करने से दिमाग पर प्रभाव ज्यादा होता है। समस्या के अर्ली स्टेज में दिखाने से ज्यादा फायदा होता है।लोग इसे बीमारी नहीं समझतेओपीडी में इंटरनेट और गेमिंग एडिक्शन वाले बच्चे लगातार आ रहे हैं, जिनमें प्रॉब्लमैटिक इंटरनेट यूज की समस्या देखने को मिलती है। पर लोग अभी भी इस समस्या को कोई बीमारी नहीं समझते और बर्दाश्त करते रहते हैं। इसकी वजह से पढ़ाई पर असर होने लगता है। ऐसे में पैरेंट्स को इसपर ध्यान देना चाहिए। खासतौर पर स्कूल में स्क्रीनिंग हो और टीचर्स बच्चों को इसके बारे में अवेयर करें।स्क्रीन टाइम ज्यादा तो बच्चों पर असर ज्यादा

क्लीनिक में आने वाले पैरेंट्स बताते हैं कि उनके बच्चे से मोबाइल ले लिया जाए या ज्यादा इस्तेमाल पर टोका जाए तो वह गुस्सा हो जाता है, मारपीट, लडऩा-झगडऩा, गाली तक देने लगता है। डॉ। पवन बताते हैं कि टेक्नोलॉजी की वजह से अगर खाने, संबंधों, नींद आदि पर असर हो तो सतर्क रहना चाहिए। यह बीमारी का असर है। लोगों को पता ही नहीं चलता और वे फोन और इंटरनेट के लती हो जाते हैं।डिजिटल फास्टिंग बहुत जरूरीबच्चों को गेमिंग और नेट से दूर नहीं किया जा सकता, पर यह उनके दिमाग को कंट्रोल न करने लगे, इसके लिए हेल्दी यूज ऑफ नेट जरूरी है। इसके लिए पैरेंट्स को अपने बच्चों के स्क्रीन टाइम पर कंट्रोल रखना चाहिए। खासतौर पर डिजिटल फास्टिंग का काम करना चाहिए। इसमें खुद को भी शामिल करें। बच्चों से बात करें, उनके साथ खेेलेें, दोस्तों के साथ बाहर जाने दें आदि काम करने से बच्चों को काफी हद तक मोबाइल की लत लगने से बचाया जा सकता है।बच्चे पर यह हो रहा असर- गुस्सा आना- चिड़चिड़ापन- मारना-पीटना- गाली देना- पढ़ाई पर असर- स्कूल एक्टिविटी पर असर- नींद में गड़बड़ी- अटेंशन की समस्या- ध्यान देने की क्षमता कम होना- सामान्य जीवन की जगह स्क्रीन पर ज्यादा फोकसऐसे करें बचाव- जरूरत की चीजों पर कंट्रोल करें- स्क्रीन टाइम को लिमिट करें- फैमिली को टाइम दें- पैरेंट्स खुद भी स्क्रीन टाइम कम करें- खाने के समय नो मोबाइल रूल रखें- डिजिटल फास्टिंग जरूर करें

- आउटिंग के दौरान मोबाइल दूर रखें
- गेम खेले तो बच्चे पर नजर रखें- परिवार के लोग भी साथ में गेम्स खेलें- स्कूल में भी अवेयर करना चाहिएकोटमोबाइल की लत को लेकर अभी भी पैरेंट्स में ज्यादा जागरूकता नहीं है। वो इसे कोई बीमारी नहीं समझते हैं। ऐसे में बच्चों के स्क्रीन टाइम पर नजर रखें। समस्या के अर्ली स्टेज पर ट्रीटमेंट से फायदा मिलता है। - डॉ। पवन गुप्ता, इंचार्ज प्रॉब्लमैटिक यूज ऑफ टेक्नोलॉजी क्लीनिक

Posted By: Inextlive