दैनिक जागरण आईनेक्स्ट अपने राजनी-टी कार्यक्रम के माध्यम से आगामी विधानसभा चुनाव में युवा महिलाओं और आम लोगों के क्या मुद्दे होंगे यह जानने की कोशिश कर रहा है। इसी कड़ी में गुरुवार को राजधानी के प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक सेंट जोजफ स्कूल सीतापुर रोड में जाकर वहां के शिक्षकों से यह जानने की कोशिश की राजनीतिक पार्टियों को किन मुद्दों पर विधानसभा चुनाव लडऩा चाहिए। इस दौरान टीचर्स ने कहा कि चुनाव के दौरान सपने को बहुत दिखाए जाते हैं लेकिन चुनाव खत्म होते ही ऐसे वादे दरकिनार कर दिए जाते हैं।

लखनऊ (ब्यूरो)। राजनी-टी कैंपेन में शिक्षिकाओं ने महंगाई, शिक्षा और महिला सुरक्षा को अहम मुद्दा माना। उनका कहना है कि कोरोना काल के बाद आई मंदी के बाद लोगों का गुजारा करना मुश्किल हो रहा है। मंहगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। गरीब मजदूर अपने बच्चे की स्कूल की फीस नहीं भर पा रहे हैं। कई बच्चों के तो स्कूल भी छूट गए हैं। रोजमर्रा की चीजें दोगुने से अधिक महंगी हो गई हैं। सरसों का तेज, रिफाइंड ऑयल के दाम तो दोगुने हो गए हैं। पेट्रोल और डीजल के दाम पहले की अपेक्षा काफी महंगे हो गए हैं। सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने से छोटे व्यापारियों पर भी असर पड़ा है।
तो पद से हटा देना ही बेहतर
सेंट जोजफ ग्रुप ऑफ स्कूल के डायरेक्टर अनिल अग्रवाल का कहना है कि आज की तारीख में सबसे बड़ी समस्या यह है कि सरकार की बनाई नीतियों का जमीनी स्तर पर सही तरीके से पालन नहीं किया जाता है। जब तक इस काम के लिए अधिकारियों की अकाउंटेबिलिटी फिक्स नहीं की जाएगी, तब तक अच्छे नतीजे नहीं प्राप्त हो सकते हैं। सरकार को चाहिए कि जो अधिकारी दृढ़ इच्छाशक्ति नहीं रखते हैं और अपने कार्यों में हीला हवाली करते हैं उनके विरुद्ध कठोर से कठोर कार्यवाही करे। वहीं जो अधिकारी ईमानदारी से काम कर रहे हैं, उन्हें प्रोत्साहित करे। योजनाएं कागजों पर नहीं, जमीनी स्तर पर कार्य का संपादन आज की आवश्यकता है। यदि इन बातों पर सही ढंग से गौर किया जाएगा तो परिणाम बेहतर होंगे, अन्यथा तो जो जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहेगा और हम लोग हमेशा यह बात करेंगे कि हम विकासशील देश में है ना कि विकसित।

लखनऊ की महिलाओं का कहना है कि चुनाव में तो पार्टियों को हमारी याद आती है और वायदे भी किए जाते हैं। मगर चुनाव के बाद नेता सब कुछ भूल जाते हैं। जरूरत इस बात की है कि चुनाव के वायदे हकीकत में पूरे हों और जनता को लाभ मिलें।

पहला मुद्दा- रोजगार
रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है। पिछले कई सालों से यूपी में नौकरियों को लेकर विवाद हो रहा है। अभी भी कई कैंडीडेट्स शिक्षक नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हंै। चुनाव में बेरोजगारी के मुद्दे पर बहुत से लोग मतदान करेंगे।
- प्रगति
दूसरा मुद्दा- शिक्षा
विचारधारा या विकास के मसले से ज्यादा जरूरी है शिक्षा। अच्छी शिक्षा मिलेगी तो विचारधारा खुद ही अपना रास्ता बनाएगी। यदि कोई पार्टी दागी और भ्रष्ट व्यक्ति को चुनाव में उतारती है तो इसका सीधा अर्थ यह है कि उसकी कोई विचारधारा नहीं है। पॉलिटिकल पार्टियों के एजेंडे में एजुकेशन पहले होनी चाहिए।
- नम्रता
तीसरा मुद्दा- हेल्थ
हेल्थ सबसे बड़ा मुद्दा है, सरकारें इस पर काम तो कर रही हैं, पर कोरोना महामारी ने सरकारों को बता दिया है कि ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए हम अभी पूरी तरह से तैयार नहीं है। जो भी पार्टी सरकार में आए उसे सरकारी हेल्थ सिस्टम में सुधार करने की जरूरत है।
- सुमन
चौथा मुद्दा- महंगाई
जिस तरह से पेट्रोल और डीजल के दामों में सरकार ने इजाफा किया है। उसमें महंगाई आसमान पर पहुंच गई है। सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दामों में पांच दस रुपए दाम कर जनता को राहत देने की कोशिश तो कि पर बाजार में महंगाई पर इसका ज्यादा असर नहीं दिख रहा है। महंगाई इस चुनाव में एक बड़ा मुद्दा होगा। मिडिल और लोवर क्लास इससे बुरी तरह प्रभावित है।
- वंदना
पांचवा मुद्दा- महिला सुरक्षा
महिला सुरक्षा को लेकर बातें तो बहुत होती हैं लेकिन उतना काम नहीं होता है। निर्भया कांड के बाद उम्मीद थी सरकारें इस पर काम करेंगी। देश में महिला सुरक्षा की स्थिति में सुधार होगा, पर आज भी रात में महिलाएं घरों से अकेले निकलने में डरती हैं। रोड पर स्ट्रीट लाइटें सही नहीं हैं, पब्लिक ट्रासपोर्ट रात में मिलता नहीं है। महिला पुलिसिंग की बात होती है लेकिन रात में ये दिखती नहीं हैं।
- रेखा


चुनाव में धार्मिक और जातीय मुद्दे उठाना एक तरह से संविधान का मजाक उड़ाना है। मैं यह बात साफ तौर पर कहना चाहती हूं कि जिस तरह के मुद्दों राजनैतिक पार्टियों के द्वारा चुनाव में लाए जा रहे है वह ध्यान भटकाने के लिए हैं।
- वंदना, टीचर
महिलाओं को अभी तक उनकी जनसंख्या और योग्यता के अनुसार राजनीतिक दायित्व नहीं मिला है। यदि कोई महिला आवाज उठाती है या कोई चुनाव जीत भी जाती है तो भी उसे सहज स्वीकार नहीं किया जाता है। इसे बदलना होगा।
- अलका, टीचर
महिला सशक्तिकरण एक बड़ा मुद्दा है। महिला सशक्तिकरण के नाम पर लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष कर देने से महिला सशक्तिकरण नहीं होने वाला है। महिलाओं के लिए अच्छा माहौल बने।
- रश्मी, टीचर
हमें विचारधारा के साथ विकास चाहिए। वादे करो और उसे निभाओ। ईमानदारी से काम करों, यह नहीं कि चुनाव जीतने के लिए बड़ी-बड़ी बातें पार्टियों के नेताओं के द्वारा की जाती हैं और लोगों की परेशानियां दूर करने की बात कम होती है।
- पूर्णिमा, टीचर
चुनाव में धार्मिक और जातीय मुद्दे उठाने वालों को सबसे पहले देश का संविधान उठाकर देखना चाहिए। हम एक पंथनिरपेक्ष देश है। धर्म और जाति के नाम पर आज किसी को भी बरगलाया नहीं जा सकता है। विकास की बातें चुनाव के समय ज्यादा होती हैं।
- अंकिता, टीचर
पेरेंट्स किसी तरह से बच्चों को पढ़ा-लिखा रहे हैं, लेकिन उसके बाद क्या करेंगे। नौकरियां नहीं निकलती हंै। निकलती हैं तो परीक्षा टल जाती है। परीक्षा होती है तो रिजल्ट टल जाते हैं और रिजल्ट आ जाए तो नियुक्तियां नहीं होती हंै।
- प्रगति, टीचर
पांच साल में क्राइम कम हुआ है। महिलाओं के लिए सुरक्षा का भी माहौल बना है। हालांकि अब भी महिलाएं रात में घरों से निकलने से डरती हैं। रात में महिला सुरक्षा को लेकर विशेष व्यवस्था करने की जरूरत है।
- रूपा, टीचर
काम मिलना तो ठीक है, लेकिन काम की क्वॉलिटी भी होनी चाहिए। एक इंजीनियर की योग्यता रखने वाले युवा को फोर्थ ग्रेड की नौकरी दी जाएगी तो उसका आउटपुट क्या होगा। इसे समझना होगा, तभी हम अपने भविष्य को बेहतर बना सकेंगे।
- नम्रता, टीचर
युवाओं के सामने इस समय बेरोजगारी का मसला सबसे बड़ा है, फिर भी उन्हें भावनात्मक मुद्दों के आधार पर बांटकर वोट बटोरने की कोशिश की जाती है। इसे खत्म करना है तो युवाओं को अपनी सोच को भी बदलना होगा।
- मुग्धा

Posted By: Inextlive