- डब्ल्यूएचओ ने बंद कर दिया था ट्रायल

- इसकी जगह डेक्सामेथासोन काफी फायदेमंद

कई गुना दाम चुकाए

जानकीपुरम निवासी कौस्तुब के पिता कोरोना संक्रमित हुए तो डॉक्टर ने रेमडेसिवीर इंजेक्शन लिख दिया। तमाम कोशिशों के बाद कई गुना दाम चुकाने के बाद उनको इंजेक्शन मिला। उनके पिता अभी भी अस्पताल में भर्ती हैं।

कई दिनों बाद मिला इंजेक्शन

अलीगंज निवासी मधुर की मां कोरोना संक्रमित हैं। एक निजी अस्पताल में ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं। डॉक्टर ने इलाज के लिए रेमडेसिवीर लिखा तो कई दिनों के बाद दाम से कई गुना चुकाने के बाद उनको दवा इंजेक्शन मिला। इस दौरान उनको काफी मानसिक परेशानी झेलनी पड़ी।

LUCKNOW: कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए राजधानी समेत पूरे देश में डॉक्टर रेमडेसिवीर इंजेक्शन लगाने के लिए लिख रहे हैं। आलम यह है कि अधिकतर मरीजों को यहीं दवा लिखने से इसकी जबरदस्त किल्लत हो गई है। दवा की कालाबाजारी तक शुरू हो गई है। अपनों की जान बचाने के लिए लोग हजारों रुपये तक खर्च करने को तैयार हो जा रहे हैं, जिनको यह दवा मिल जा रही है वो खुद को भाग्यशाली मान रहे हैं, लेकिन कई एक्सपर्ट की राय इससे बिलकुल जुदा है। उनका कहना है कि रेमडेसिवीर इंजेक्शन का कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में कोई फायदा नहीं होता है। केजीएमयू के रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ। सूर्यकांत का कहना है कि वो इस इंजेक्शन के पूरी तरह खिलाफ हैं बल्कि इसकी जगह डेक्सामेथासोन एक सस्ता और बेहतर विकल्प है। डॉक्टर्स को इसे लिखना बंद करना चाहिए और लोगों को इसके पीछे भागने से बचाना चाहिए।

डब्ल्यूएचओ ने बंद कर दिया था ट्रायल

कोविड वैक्सीनेशन के ब्रांड एंबेसडर डॉ। सूर्यकांत बताते हैं कि बीते साल नवंबर में डब्ल्यूएचओ द्वारा रेमडेसिवीर को लेकर सॉलिडिटेरी ट्रायल किया गया था, जिसमें कोरोना के गंभीर मरीजों को दो ग्रुप बनाया गया। ट्रायल के दौरान देखने में आया कि जिनको रेमडेसिवीर इंजेक्शन दिया गया, उन मरीजों में मौत का आंकड़ा ज्यादा होने लगा, जिसके बाद तत्काल इस ट्रायल को रोक दिया गया था, लेकिन पता नहीं क्यों भारत में आज भी डॉक्टर इस इंजेक्शन को लिख रहे हैं जबकि यह गंभीर मरीजों में कोई फायदेमंद नहीं है। लोगों को रेमडेसिवरी का दुरुपयोग करने से बचना चाहिए।

एआरडीएस रोकने में फायदेमंद नहीं

डॉ। सूर्यकांत बताते हैं कि जब ईबोला वायरस फैला था तब उस समय रेमडेसिवीर इंजेक्शन का अच्छा असर देखा गया था। ऐसे में एक्सपर्ट ने समझा कि कोरोना वायरस में भी इसका फायदा मिलेगा जबकि यह कोरोना में होने वाला गंभीर निमोनिया और एक्यूट रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम यानि एआरडीएस की रोकथाम में बिल्कुल भी फायदेमंद नहीं है। अगर किसी को कोरोना हो और ऑक्सीजन लेवल 94 के ऊपर हो तो उसे आइवरमेक्टिन ही लेनी चाहिए और अगर ऑक्सजीन लेवल 94 से नीचे हो जाये तो डेक्सामेथासोन के साथ ऑक्सीजन लेना शुरू कर दें, जिससे मरीजों को काफी आराम मिलेगा, लेकिन सबसे जरूरी यह है कि मरीजों को घबराना नहीं चाहिये। अपने डॉक्टर से लगातार संपर्क में रहें।

कम कीमत होना बनी वजह

डॉक्टर द्वारा कोरोना मरीजों के लिए रेमडेसिवीर इंजेक्शन की छह डोज लिखी जाती है। प्रत्येक इंजेक्शन 100 एमएल का होता है, जिसके तहत पहले दिन दो डोज और अगले चार दिन एक एक डोज दी जाती है। पांच दिनों मे छह डोज यानि 600 एमएल की डोज दी जाती है। प्रत्येक डोज पहले पांच हजार तक पड़ती थी, जिसे हाल ही में सरकार ने घटाया है, लेकिन इसके मुकाबले डेक्सामेथासोन दवा न केवल सस्ती है बल्कि असरदार भी है। ऐसे में कई डॉक्टर्स का मानना है कि शायद सस्ती होने की वजह से नहीं लिखा जा रही है। सरकार को भी इस विषय में सोचना चाहिए।

पैनिक न करें लोग

केजीएमयू में माइक्रोबायोलाजिस्ट डॉ। शीतल वर्मा के मुताबिक रेमडेसिवीर इंजेक्शन का इलाज में कितना असर देखा गया है क्या कोई इसके बारे में जानता है। डॉक्टर्स को भी देखना चाहिए, इसके इलाज से कितने मरीजों को फायदा हुआ है। इसकी जगह डेक्सामेथासोन एक अच्छा ऑप्शन है। यह एंटी इंफ्लामेटरी गुण वाली दवा है एक्सपर्ट को इसके बारे में भी सोचना चाहिए। हालांकि डेक्सामेथासोन केवल डॉक्टर्स की देख रेख में लेनी चाहिये। बिना उनकी सलाह के नहीं लेना चाहिए। कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में डॉक्टर की निगरानी में इसका उपयोग होना चाहिए। ऐसे में लोगों को भी पैनिक होने से बचना चाहिए।

पांच गुना तक बढ़ गई डिमांड

सिप्ला, डॉ। रेड्डी समेत कई निजी कंपनियां रेमडेसिवीर अलग अलग नाम से बनाती और बेचती हैं। हर कंपनी 2800 रुपये से लेकर 5400 रुपये तक के अलग अलग दामों में बेचती है, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में इसके दामों में कमी करने का आदेश जारी कर दिया था, लेकिन इसके बावजूद इसकी किल्लत बनी हुई है। खुदरा थोक व्यापारी बताते हैं कि रेमडेसिवीर की डिमांड पहले के मुकाबले पांच गुना तक बढ़ गई है। कंपनी द्वारा सप्लाई कम होने की वजह से बड़ी दिक्कत हो रही है।

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क्या है एआरडीएस

डॉ। सूर्यकांत बताते हैं कि एक्यूट रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम उस गंभीर अवस्था को कहते हैं जिसमें सांस की कमी हो जाती है। इसमें फेफड़े की मूलभूत संरचना में बदलाव आने की वजह से पानी भर जाता है। फेफड़े में यह बदलाव किसी ट्रॉमा या अन्य वजहों से हो सकता है। इसके कारण मरीज की हालत गंभीर हो जाती है और उसे वेंटिलेटर पर रखना पड़ता है या स्थिति निमोनिया से भी ज्यादा गंभीर होती है।

मैं पूरी तरह से रेमडेसिवीर दवा के खिलाफ हूं। डॉक्टर्स को इसको बिल्कुल नहीं लिखना चाहिए। इसकी जगह डेक्सामेथासोन ज्यादा कारगर और असरदार है।

डॉ। सूर्यकांत, एचओडी रेस्पिरेट्री मेडिसिन, केजीएमयू

Posted By: Inextlive