राजधानी में केवल केजीएमयू और पीजीआई द्वारा ही ट्रामा संचालित किया जा रहा है। जहां प्रदेश भर से मरीज रेफर किए जाते है पर सबसे अधिक लोड केजीएमयू ट्रामा में है। हालांकि मानक के अनुसार ट्रामा में केवल अति गंभीर मरीजों को ही भेजा चाना चाहिए।


लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी और आसपास के जिलों में सड़क दुर्घटना या अन्य गंभीर मरीजों को केजीएमयू ट्रामा भेज दिया जाता है। हालांकि, पीजीआई का अपेक्स ट्रामा भी संचालित हो रहा है, लेकिन इसके बावजूद केजीएमयू ट्रामा में मरीजों का लोड काफी ज्यादा है। खासतौर पर रेफर के खेल में मरीजों को फुटबाल बना दिया जाता है। एक अस्पताल मरीजों को बेड न होने के नाम पर दूसरे में रेफर करता है। रेफर के खेल में कई बार मरीजों की मौत भी हो जाती है। ऐसे में, एक्सपर्ट भी सेंट्रल रेफरल पोर्टल शुरू करने की बात कर रहे है ताकि समय पर मरीजों को इलाज मिल सके।केजीएमयू ट्रॉमामरीजों का लोड अधिक


केजीएमयू ट्रामा में कुल 460 बेड हैं। इनमें 208 घायलों और बाकि इमरजेंसी मेडिसिन मरीजों के लिए रिजर्व हैं। यहां रोजाना 200-250 मरीज आते हैं, जिसमें 80-90 भर्ती और महज 40-50 मरीज ही डिस्चार्ज होते हैं। इतना ही नहीं, यहां 130 से अधिक स्ट्रेचर हैं, जिसमें कई बार 60-80 स्टे्रचर पर ही मरीजों का इलाज चल रहा होता है। ऐसे में, बेडों को लेकर बड़ी मारामारी रहती है। यहां पूरे प्रदेश से मरीज रेफर किए जाते है। कई बार बेड न होने की वजह से मरीजों को दूसरे अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है, जिससे मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।अपेक्स ट्रॉमामहज 100 बेड ही एक्टिवदूसरी ओर एसजीपीजीआई के अपेक्स ट्रामा में वैसे 210 बेडों की क्षमता है। पर इस समय महज 100 बेड ही एक्टिव हैं, जिसमें करीब 30 बेडों का आईसीयू भी शामिल है। यहां प्रदेश के अलावा बिहार, झारखंड व एमपी तक के मरीज रेफर होकर आते है। पर बेड की कमी यहां पर भी बड़ी समस्या है, जिसकी वजह से यहां रोजाना कई मरीजों को ट्रामा सेंटर या अन्य अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है। इसके चलते मरीजों के एक अस्पताल से दूसरे के चक्कर लगते रहते हैं और आखिर में वे मजबूरी में निजी अस्पताल में जाने का मजबूर होते हैं। जहां आर्थिक तौर पर उनका अधिक दोहन होता है। ट्रामा अगर पूरी क्षमता के साथ शुरू हो सके तो मरीजों को काफी हद तक फायदा मिलेगा।लोहिया संस्थानलोहिया में ट्रामा की सुविधा नहीं

राजधानी के लोहिया संस्थान में सुपर स्पेशलिटी सुविधा होने के बावजूद ट्रामा सेंटर नहीं है। हालांकि, यहां 12 बेड आर्थोपेडिक इमरजेंसी के हैं, पर यहां ट्रामा के मरीज नहीं लिए जाते। उनको रेफर कर दिया जाता है। हालांकि, यहां पर 3 न्यूरो सर्जन हैं, लेकिन उनपर अन्य मरीजों का लोड अधिक है। साथ ही, ट्रामा के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का यहां अभाव है। यहां एक ट्रामा सेंटर की बड़ी जरूरत है।स्टेट रेफरल पॉलिसी का अभावएक्सपट्र्स के अनुसार, राजधानी में केवल केजीएमयू और पीजीआई द्वारा ही ट्रामा संचालित किया जा रहा है। जहां प्रदेश भर से मरीज रेफर किए जाते है, पर सबसे अधिक लोड केजीएमयू ट्रामा में है। हालांकि, मानक के अनुसार ट्रामा में केवल अति गंभीर मरीजों को ही भेजा चाना चाहिए। यहां मामूली हड्डी की चोट वाले मरीज भी आ जाते हैं, जिसकी वजह से समस्या होती है। इसके अलावा वेंटिलेटर की मांग सबसे ज्यादा होती है, चूंकि कोई स्टेट रेफरल पॉलिसी नहीं है ऐसे में बड़ी दिक्कत होती है। स्टेट रेफरल पॉलिसी बने, जिसके तहत ट्रामा में बेडों और वेंटिलेटर की स्थिति के बारे में पता चल सके ताकि बेड न होने की स्थिति में मरीजों को रेफर न किया जाये, जिससे उनकी जान बचाई जा सके।क्या बोले जिम्मेदार?ट्रामा में लोड ज्यादा है। रेफरल पॉलिसी बनाने के साथ केवल गंभीर मरीजों को ही रेफर किया जाना चाहिए। साथ ही, वेंटिलेटर की जानकारी के बाद ही ऐसे मरीजों को रेफर किया जाये।-डॉ। संदीप तिवारी, सीएमएस, केजीएमयू

अभी ट्रामा की सुविधा नहीं है। केवल आर्थोपेडिक इमरजेंसी वाले मरीज लिए जा रहे हैं। ट्रामा के मरीजों को रेफर किया जाता है। - डॉ। विक्रम सिंह, एमएस, लोहिया संस्थानट्रामा सेंटर में प्रदेश समेत कई अन्य प्रदेशों से मरीज आते हैं। ट्रामा में लोड अधिक रहता है। सभी मरीजों को देखा जाता है। - प्रो। आरके धीमन, निदेशक, एसजीपीजीआई

Posted By: Inextlive