देश में नवजात बच्चों में क्लबफुट की समस्या चिंता का विषय है। इसके कई कारण हैं जिसमें प्रदूषण भी शामिल है। गाडिय़ों से निकलने वाला धुंआ मां के शरीर में पल रहे बच्चे के विकास को प्रभावित करता है। वहीं महिलाओं का ऐसे कॉस्मेटिक प्रोडक्ट का यूज करना जिसमें लेड की मात्रा ज्यादा होती है वो भी क्लबफुट की समस्या का एक बड़ा कारण है। यह जानकारी केजीएमयू के पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक विभाग के एचओडी प्रो। अजय सिंह ने क्लबफुट को लेकर आयोजित वर्कशॉप के दौरान दी।


लखनऊ (ब्यूरो)। प्रो अजय सिंह ने बताया कि बच्चों में क्लबफुट की समस्या के बढऩे की एक और वजह पेरेंट्स का देर से डॉक्टर के पास लाना भी है, क्योंकि इससे पहले वो झाडफ़ूंक कराने में समय खराब कर देते हंै। जिसकी वजह से जो समस्या सामान्य प्लास्टर से ठीक हो सकती है, उसके लिए सर्जरी करनी पड़ती है। ऐसे बच्चों का पोंसेटी मेथेड के साथ समय पर इलाज किया जाता है। अधिकतर बच्चे बिना परेशानी के सभी दैनिक गतिविधियों को करने में सक्षम हो जाते हैं। इसमें हड््डी रोग विशेषज्ञ द्वारा सीरियल करेक्टिव प्लास्टर कास्ट लगाया जाता है। क्या है क्लबफुट
यह एक जन्मजात दोष है जो हर एक हजार बच्चों में से एक को प्रभावित करता है। देश में हर साल करीब 35 हजार बच्चे इस समस्या के साथ जन्म लेते हैं। इसमें पैर नीचे और अंदर की ओर मुड़े होते हैं और समय से इलाज न मिलने से बच्चे अपंगता का शिकार हो जाते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए केजीएमयू में पोंसेटी मेथेड तकनीक सीखने और अपनाने के लिए आर्थोपेडिक डॉक्टरों को ट्रेनिंग दी गई। संस्थान के क्लबफुट उपचार कार्यक्रम में 1000 से अधिक बच्चों को पहले ही फ्री इलाज के लिए चिंहित किया जा चुका है और 5000 से अधिक प्लास्टर फ्री लगाये जा चुके हैं।

Posted By: Inextlive