एसीएस होम से लेकर डीसीपी तक की 60 रुपये में बन जाती है फर्जी मोहर
लखनऊ (ब्यूरो)। 'यहां अर्जेंट मोहर बनती है', यह लाइन आपको शहर के अलग-अलग हिस्सों में कई दुकानों पर लिखी दिख जाएगी। दो घंटे में किसी भी अफसर व नेता की मोहर तैयार करने वाले ये दुकानदार जालसाजों का हथियार बन रहे हैं। एसीएस होम से लेकर डीसीपी तक की मोहर बनवा कर जालसाज उसके जरिए कभी नौकरी के नाम पर तो कभी टेंडर के नाम पर फर्जीवाड़े में इनका यूज करते हैं। अक्सर लोग उनके नकली साइन के साथ मोहर (स्टैंप) लगी देख विश्वास कर लेते है और उनके जाल में फंस जाते हैं। हाल ही में इनकम टैक्स ऑफिस में नौकरी के नाम पर चल रहे इंटरव्यू के फर्जीवाड़े में भी फर्जी मोहर का मामला सामने आया था। हालांकि, पुलिस ने पहली बार फर्जी मोहर बनाने वालों पर जांच शुरू कर दी है और जल्द ही इसका खुलासा भी किया जाएगा।मोहर बनाने के हैं नियम कायदे
डीसीपी अपर्णा रजत कौशिक ने बताया कि किसी अफसर व व्यक्ति के नाम की मोहर बनाई जाती है तो उसके लिए मोहर बनाने वाले को ये सुनिश्चित करना चाहिये कि वे जिस व्यक्ति की मोहर बना रहा है, क्या यह उसकी जानकारी में है। जैसे लेटरपैड में लिख कर दिया गया हो या किसी अधिकारी ने अपना कर्मचारी भेजा हो। अगर इन सब बातों का ध्यान मोहर बनाने वाले नहीं रखते तो यह कानूनन अपराध है। डीसीपी के मुताबिक, अगर किसी अन्य अधिकारी की जानकारी के बगैर मोहर बनाई जाती है तो धारा 420, 468 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।क्या है मोहर बनाने का नियमकिसी भी व्यक्ति, अफसर व संस्था की मोहर (स्टैंप) बनाने का नियम है कि उसके लेटरहेड पर साइन कर क्रास कर दिया जाए। अगर लेटरहेड नहीं है तो स्टॉफ पेपर पर साइन कर क्रास किया जाता है। उस पेपर को अधिकारिक रूप से उस वेंडर के दुकान से मोहर बनवाई जाए। जिस व्यक्ति के मोहर बनाई जा रही है, उसके संज्ञान में नहीं है तो वह अपराध की श्रेणी में आता है।अपनी मोहर देख अफसर भी हैरान
हजरतगंज ही नहीं डीएम ऑफिस के पास कैसरबाग व अमीनाबाद इन जगहों पर दर्जनों ऐसी दुकानें हैं जहां मोहर बनाई जाती है। हद तो तब हो गई जब डीसीपी सेंट्रल की मोहर उन्हीं के ऑफिस से चंद कदमों की दूरी पर उदाहरण के तौर पर बनवा दी गई। उस मोहर की जानकारी जब डीसीपी को दी गई तो वह भी हैरान रह गईं। इतना ही नहीं, एक दुकान में पूर्व अपर मुख्य सचिव गृह व मौजूदा सीएम सलाहकार अवनीश अवस्थी के नाम की मोहर भी बनवाई गई। दुकानदार ने केवल कागज में डिटेल लिखवाई व 60 रुपये लेकर दूसरे दिन आने को कहा। दूसरे दिन अवनीश अवस्थी के नाम की भी मोहर तैयार थी।सबूतों की कमी से बच जाते हैंसचिवालय से लेकर आयकर विभाग के अंदर बेरोजगार नौजवानों से रोजना नौकरी के नाम पर ठगी हो रही हो। यहां सबसे महत्वपूर्ण भूमिका वो मोहर ही निभाती है जिन्हें देख कर भोले-भाले नौजवानों को यह भरोसा हो जाता है कि उन्हें दिया गया नियुक्ति पत्र असली है। वहां इस तरह खुले आम बन रही फर्जी मोहर को रोकने के लिए आखिर क्यों कार्रवाई नहीं हो पा रही, इसपर डीसीपी का कहना है कि जालसाज को गिरफ्तार करते हैं तो उसके पास से जो मोहर बरामद होती है। वह कहां से बनी है इसका सबूत नहीं मिल पाता। जालसाज के पास मोहर की कोई रसीद भी नहीं होती। ऐसे में मोहर बनाने वाले पर कार्रवाई नहीं हो पाती।
जालसाज गिरफ्तार होते हैं तो उनके पास विभाग व अफसरों की फर्जी मोहर बरामद होती है। ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है। पर अब फर्जी मोहर बनाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए एक टीम बनाकर काम शुरू कर दिया गया है। मोहर बनाने के नियम फॉलो किए बिना अगर मोहर बनाई जा रही है, तो वह अपराध की श्रेणी में आता है।-अपर्णा रजत कौशिक, डीसीपी सेंट्रल