- दवा और अन्य मदद पहुंचने में लग रहे तीन से चार दिन

- तय शिड्यूल का पालन नहीं कर रहीं रैपिड रिस्पॉन्स टीमें, मेडिकल ऑफिसर इंचार्ज दे रहे मरीजों की तादाद का हवाला

केस: 1

लालकुआं निवासी सुप्रिया (बदला नाम) को तेज बुखार और गले में खराश की शिकायत हुई। कोविड जांच में वे पॉजिटिव पायी गयीं। उन्हें इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर से कॉल आई और उनकी हालत व लक्षणों के बारे में पूछताछ हुई। उन्होंने होम आइसोलेट होने की इच्छा जतायी तो उन्हें इसकी परमीशन दे दी गयी। पर, इसके बाद न तो उनके घर कोई दवा लेकर पहुंचा और न ही मेडिकल ऑफिसर इंचार्ज की कॉल ही आई। आखिरकार, सुप्रिया के परिजनों ने खुद सीएमओ को कॉल कर शिकायत दर्ज करायी। तब जाकर अगले दिन उनके घर दवा और जांच टीम पहुंची। इस जांच में उनके घर के दो अन्य सदस्य भी कोरोना पॉजिटिव पाये गए। उन्होंने डॉक्टर्स द्वारा सुझायी गयी दवा बाजार से मंगवा ली।

केस: 2

गोमतीनगर के विराजखंड निवासी राजीव (बदला नाम) ने तेज बुखार और गला खराब होने की शिकायत होने पर कोविड जांच करायी। जांच पॉजिटिव आयी। अगले दिन इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर से कॉल कर ऑपरेटर ने उनके लक्षण पूछे और होम आइसोलेशन की परमीशन दे दी। पर, दो दिन तक तमाम कोशिशों के बाद सीएचसी इंदिरानगर की मेडिकल ऑफिसर इंचार्ज ने उन्हें कॉल कर सिर्फ हाल-चाल लिया। दवा फिर भी न मिलने पर राजीव ने बाजार से दवा मंगवायी। घर की एक अन्य बुजुर्ग महिला सदस्य में कोरोना के लक्षण दिखायी दिये। पर, अब तक कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का भी कोई इंतजाम नहीं हो सका है।

यह दो मामले तो महज बानगी भर हैं। दरअसल, राजधानी में होम आइसोलेट होने वाले कोरोना संक्रमित व ए सिंपटेमेटिक मरीज कोरोना के साथ-साथ अव्यवस्था से भी जंग लड़ रहे हैं। जिस मरीज के घर संक्रमण की पुष्टि होने के 24 घंटे के भीतर रैपिड रिस्पॉन्स टीम पहुंच जानी चाहिये, वह दो से तीन दिन तक मरीज तक नहीं पहुंच पा रहीं। इतना ही नहीं, होम आइसोलेट हुए लोगों को भी दवा के लिये लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। इसके अलावा कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का हाल भी बेहद खराब है। निचले स्तर पर मौजूद इस अव्यवस्था को लेकर अधिकारी भी कुछ नहीं कर पा रहे। होम आइसोलेशन से जुड़े एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि सीएचसी में तैनात मेडिकल ऑफिसर्स पर किसी का जोर नहीं है। यही वजह है कि वे मनमर्जी पर उतारू हैं। महामारी के चलते आला अधिकारी भी कोई सख्त कार्रवाई करने से हिचकिचा रहे हैं। नतीजतन, मरीजों की जान पर बन आयी है।

बॉक्स।

यह है एसओपी

- किसी भी लैब में टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर उसका डाटा लैब द्वारा डिस्ट्रिक्ट सर्विलांस पोर्टल पर अपलोड किया जाता है।

- इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल रूम में तैनात कर्मी तुरंत उस मरीज को फोन कर उसकी स्थिति के बारे में पूछताछ करता है।

- जानकारी को फॉर्मेट में भरकर उसे कंट्रोल रूम की मेडिकल टीम को भेज दिया जाता है।

- मेडिकल टीम का सदस्य फिर से उस मरीज को कॉल कर उसके लक्षणों की फिर से पड़ताल करता है।

- अगर हालत गंभीर है तो मरीज को उसकी स्थिति के मुताबिक एल-1, 2 या 3 लेवल के हॉस्पिटल में एडमिट कराया जाना चाहिये।

- मरीज खुद होम आइसोलेट होने की इच्छा जताता है तो उसे होम आइसोलेट होने की परमीशन दे दी जाती है।

- होम आइसोलेट किये गए मरीज के मोबाइल पर होम आइसोलेशन एप डाउनलोड करायी जाती है। जिसमें मरीज हर रोज अपनी स्थिति की जानकारी भरता है। जिसे डिस्ट्रिक्ट सर्विलांस टीम लगातार मॉनीटर करती है।

- मरीज जिस भी सीएचसी के तहत आता है उसके मेडिकल इंचार्ज के पास उसका नाम, पता व मोबाइल नंबर भेज दिया जाता है।

- अगले दिन रैपिड रिस्पॉन्स टीम मरीज के घर जाती है, टीम मरीज को 10 दिनों तक खायी जाने वाली दवा का पैकेट भी देती है।

- मेडिकल इंचार्ज हर रोज शाम को मरीज की स्थिति के बारे में पूछताछ करेंगे और अगर मरीज की हालत बिगड़ रही है तो उसे तुरंत हॉस्पिटल में शिफ्ट करने का इंतजाम किया जाता है।

- कोई भी लक्षण न मिलने पर 10 दिनों बाद मरीज का होम आइसोलेशन पूरा मान लिया जाता है।

- मरीज के परिजनों को एहतियातन आइवरमैक्सिन 12 एमजी की एक खुराक दी जाती है। ताकि, वे इसके संक्रमण से बचे रहें।

Posted By: Inextlive