LUCKNOW : कोरोना महामारी को लेकर हुए लॉकडाउन की वजह से हर इंसान की जिंदगी बदल गई। लॉकडाउन में दफ्तर, फैक्ट्री से लेकर सब कुछ बंद हो चुका था। संकट के इस दौर में जहां कुछ लोगों ने वर्क फ्रॉम होम का ऑप्शन चुना तो कई लोगों की नौकरी ही चली गई। आपको एक ऐसी ही शख्सियत से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिन्होंने तमाम मुश्किलों को दरकिनार कर न केवल दोबारा अपने पैरों पर खड़ी हुई बल्कि दूसरों को भी नौकरी दी। ग्राम सभा लौलाई, ब्लॉक चिनहट निवासी विभा विनोद के संघर्ष और सफलता की कहानी उन्हीं की जुबानी सुनते हैं।

मैं लॉकडाउन से पहले निशातगंज स्थित एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करती थी। लॉकडाउन के कारण मुझे घर बैठना पड़ा। एक ओर जहां दूसरे कामों में वर्क फ्रॉम होम की सुविधा कर्मचारियों को मिल रही थी, वहीं मेरी जॉब में यह संभव नहीं था। ऐसे में मेरी जॉब चली गई। इसकी वजह से मुझे और मेरे परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। लॉकडाउन के दौरान मुझे अखबार में प्रवासी मजदूरों के लिए सरकार की ओर से शुरू की गई रोजगार योजना के बारे में जानकारी मिली। इसके बाद मैंने ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत आवेदन किया।

पहले मिली ट्रेनिंग फिर मिला काम

ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत वहां पर मुझे पहले दस-दस दिनों की ट्रेनिंग दी गई। इसमें मुझे पहले मास्क बनाने और फिर कपड़े के सिलाई की ट्रेनिंग दी गई। इसके बाद मैंने अपना खुद का एक समूह शुरू किया। इसमें मैंने अपने जैसी कई महिलाओं को जोड़ा और उनको ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत मास्क के साथसिलाई की ट्रेनिंग दिलाई। ग्रामीण आजीविका मिशन के डीसी सुखराज बंधु ने हमें फ्री में कपड़ा मुहैया कराया, जिसे मेरे समूह की महिलाओं ने पहले मास्क बनाना शुरू किया।

12 महिलाओं के साथ पहला समूह शुरू किया

मैंने लीड इंडिया महिला स्वयं सहायता समूह के नाम से पहला समूह गठित किया। इस संस्था से उन महिलाओं को जोड़ा जो लॉकडाउन के कारण अपना काम खो चुकी थीं। मेरे साथ ज्यादातर वह महिलाएं जुड़ी हैं, जो किसी के घर, दुकान में छोटा मोटा काम कर अपना घर चलाती थीं। कोरोना का खतरा कम होने के साथ मास्क बनाने का काम भी कम हो गया है। इस पर मैंने अपने समूह के साथ मिलकर महिलाओं के कपड़े तैयार करने का काम शुरू किया है। इसमें भी ग्रामीण आजीविका मिशन से हमें कपड़े मुहैया कराये जाते हैं। आज हमारा समूह अच्छा काम कर रहा है।

80 महिलाओं को जोड़ा

मैंने लीड इंडिया महिला स्वयं सहायता समूह के साथ कुल आठ समूह और बना लिये हैं। इसमें कुल 80 महिलाएं जुड़ चुकी हैं। इन सभी महिलाओं को उनके इंट्रेस्ट के अनुसार काम की ट्रेनिंग दिला रही हूं। अभी दीवाली पर मैंने कुछ महिलाओं को मिट्टी के दीये और बर्तन बनाने की ट्रेनिंग दिलाई थी, जिसके बाद इन्होंने अपने खुद के तैयार सामान की एक प्रदर्शनी ब्लॉक स्तर पर लगाई थी।

दिलाती हूं हर संभव मदद

मैं महिलाओं को अपने समूह में जोड़ने के साथ उन्हे सरकारी सुविधाओं का लाभ दिलाने में भी मदद करती हूं। अभी तक मैंने कई महिलाओं को सरकारी टॉयलेट, वृद्धा पेंशन सहित बालिका विवाह तक का लाभ दिलाया हं। यही कारण है कि मेरे साथ ज्यादा से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं।

Posted By: Inextlive