केस 1

130 किमी का सफर, मिली मौत

- कन्नौज से रेफर केस को राजधानी में नहीं मिला इलाज

- 9 घंटे तक शहर के अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद भी पति को एडमिट नहीं करा सकी महिला

रुष्टयहृह्रङ्ख : जिम्मेदार दावे चाहे जितने कर रहे हों, मगर हकीकत किसी से छिपी नहीं। इलाज के अभाव में रोजाना न जाने कितने लोग असमय मौत का शिकार हो रहे हैं। कन्नौज निवासी आदित्य दुबे (50 वर्षीय) को तीन दिन पहले बुखार आया। पत्नी कृष्णकांति के मुताबिक पति को पहले कन्नौज जिला अस्पताल ले जाया गया। यहां ड्रिप चढ़ाई गई, मगर हालत सुधरने के बजाय बिगड़ती रही। डॉक्टरों ने फेफड़े का संक्रमण बताकर लखनऊ रेफर कर दिया। पत्नी के मुताबिक सोमवार सुबह 11 बजे वह पति को एंबुलेंस से लेकर लखनऊ पहुंच गईं।

लगाती रही अस्पतालों के चक्कर

यहां सिविल अस्पताल से बलरामपुर अस्पताल और फिर लोहिया अस्पताल के चक्कर लगाए, मगर कहीं बेड नहीं मिला। ट्रॉमा सेंटर भी गए, वहां बेड फुल होने की बात कहकर लौटा दिया गया। इसके बाद कई निजी अस्पतालों के भी चक्कर काटे, मगर नौ घंटे तक इलाज नहीं मिला। इसके बाद रात आठ बजे के करीब आदित्य को लेकर दोबारा ट्रॉमा सेंटर पहुंचे। तब तक आदित्य की हालत काफी बिगड़ चुकी थी। स्ट्रेचर पर उतारते ही आदित्य का शरीर शिथिल हो गया था। सांसें थम चुकी थीं। कैजुअल्टी में जैसे ही आदित्य को ले जाया गया, डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।

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नॉन कोविड को भी इलाज नहीं

सरकारी अस्पतालों की ओपीडी बंद है। कई अस्पतालों को कोविड अस्पतालों में तब्दील कर दिया गया है। रोजाना हजारों मरीज संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं, मगर इलाज के लिए उन्हें बेड नहीं मिल पा रहे हैं। इतना ही नहीं, नॉन कोविड मरीजों को भी इलाज मिलना दूभर है।

4 का इंजेक्शन 40 हजार में

- कई गुना अधिक दाम पर बिक रही दवा और इजेंक्शन

- कई विभागों के पास मुनाफाखोरी रोकने का जिम्मा

फैक्ट फाइल

- 20 से 25 हजार में रेमडेसिविर इंजेक्शन

- 10 से 15 हजार आक्सीजन सिलिंडर तीन क्यूबिक

- 20 से तीस हजार में साढ़े सात क्यूबिक ऑक्सीजन सिलिंडर

रुष्टयहृह्रङ्ख (20 न्श्चह्मद्बद्य): प्रशासन के लाख दावों के बावजूद राजधानी में जरूरी दवाओं की कालाबाजारी हो रही है और जिम्मेदार अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। हैरत की बात है, सैकड़ों शिकायतों के बावजूद अब तक एक भी मुनाफाखोर के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गयी।

बढ़ा दी कई गुना कीमतें

राजधानी में लगातार कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में बाजार में कोविड के इलाज से जरूरी दवा के अलावा बाकी तमाम सामान भी कई गुना कीमत पर मिल रहे हैं। सबसे अधिक कालाबाजारी रेमडेसिविर इंजेक्शन को लेकर है। बीस से चालीस हजार रुपये में बेचा जा रहा है। शहर में इंजेक्शन और दवाओं की कालाबाजारी की सैकड़ों शिकायतें मरीजों और तीमारदारों से आ रही हैं लेकिन अब तक एक भी दुकानदार के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गयी। ड्रग विभाग के अलावा खाद्य सुरक्षा विभाग और बांट-माप विभाग के अधिकारियों के अलावा मजिस्ट्रेट को भी लगाया गया है। इसके बावजूद कालाबाजारी थमने का नाम नहीं ले रही है। जरूरतमंद बाजार में घूम रहे हैं और इंजेक्शन दुकानों के बाहर बेचे जा रहे हैं। यही नहीं, ऑक्सीजन सिलिंडर में लगाया जाना वाला कैप जो बाजार में सामान्य दिनों में 300 से 400 रुपये में मिलता है, दो से तीन हजार रुपये में मिल रहा है।

केस 1

आरटीपीसीआर जांच के नाम पर ले रहे 1500 रुपये

- महिला डाक्टर ने की मेयो अस्पताल की शिकायत

- जांच के लिए अस्पताल से पर्चा बनाने का भी दबाव

रुष्टयहृह्रङ्ख (20 न्श्चह्मद्बद्य): आपदा में भी मरीजों से मुनाफा कमाने से निजी अस्पताल और डाक्टर बाज नहीं आ रहे हैं। गोमतीनगर स्थित मेयो अस्पताल में आरटीपीसीआर जांच के नाम पर डेढ़ हजार रुपये लिए जा रहे हैं। एक महिला डाक्टर ने इस मामले की शिकायत दर्ज कराई है।

गोमतीनगर निवासी डा। प्रियदर्शिनी गुहा अपनी आरटीपीसीआर जांच कराने के लिए मेयो अस्पताल पहुंची थीं। मेयो अस्पताल में उनको जांच का 900 रुपये बताया गया। इस पर प्रियदर्शिनी ने कहा कि सरकार ने तो अस्पताल आकर जांच कराने वालों को शुल्क 700 रुपये निर्धारित कर रखा है। जब प्रियदर्शिनी 900 रुपये देने को तैयार हो गई तो उनसे मेयो अस्पताल से ही जांच के लिए पर्चा बनवाने को कहा गया। इसके लिए अलग से 600 रुपये चुकाने को कहा गया। प्रियदर्शिनी ने कहा कि वह खुद एक डाक्टर हैं इसलिए वह कहीं से भी पर्चा बनाकर दे सकती हैं। इस पर मेयो अस्पताल के कर्मचारियों का कहना था कि नहीं अगर यहां जांच होगी तो यहीं का पर्चा मान्य होगा। प्रियदर्शिनी ने इस मामले की शिकायत गोमतीनगर पुलिस के अलावा सीएमओ और डीएम से भी की है। डाक्टर का कहना है कि मामले की जांच कर उगाही करने वाले अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई हो।

Posted By: Inextlive