Lucknow News: थैलेसिमिया एक अनुवांशिक बीमारी है जो पैरेंट्स से बच्चों में होती है। इस बीमारी से ग्रसित बच्चों को जीवनभर ब्लड ट्रांसफ्यूजन करवाना पड़ता है। लेकिन समय के साथ बोन मैरो ट्रांसप्लांट ने ऐसे मरीजों के जीवन में उम्मीद की किरण लाई है। जिसे 6 वर्ष के पहले करवा लेना चाहिए।


लखनऊ (ब्यूरो)। थैलेसिमिया एक अनुवांशिक बीमारी है, जो पैरेंट्स से बच्चों में होती है। इस बीमारी से ग्रसित बच्चों को जीवनभर ब्लड ट्रांसफ्यूजन करवाना पड़ता है। लेकिन समय के साथ बोन मैरो ट्रांसप्लांट ने ऐसे मरीजों के जीवन में उम्मीद की किरण लाई है। जिसे 6 वर्ष के पहले करवा लेना चाहिए। हालांकि, यह ट्रांसप्लांट इतना महंगा है कि हर कोई इसे करवा नहीं सकता है। वहीं, गवर्नमेंट द्वारा सिबलिंग मैच पर ही बजट दिया जाता है। ऐसे में डॉक्टर्स का भी मानना है कि इस पॉलिसी में बदलाव आना चाहिए, ताकि सिबलिंग के अलावा अन्य से मैचिंग हो तो ट्रांसप्लांट के लिए बजट मिल सके।मैचिंग सिबलिंग डोनर नहीं मिलते


संजय गांधी पीजीआई के हेमेटोलॉजी विभाग के डॉ। संजीव ने बताया कि अबतक 5-7 मरीजों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जा चुका है। पर इसे करने में सबसे बड़ी समस्या मैचिंग सिबलिंग डोनर नहीं मिलना है, जबकि फंडिंग उनके लिए ही मिलती है। क्योंकि एक थैलेसेमिक बच्चा होने के बाद पैरेंट्स दूसरा बच्चा नहीं करते है। चूंकि एक ट्रांसप्लांट का खर्च करीब 10 लाख का होता है। ऐसे में हर कोई इसे नहीं करवा पाता है।6 वर्ष के पहले कराने पर अधिक सफलता

डॉ। संजीव आगे बताते है कि अगर क्लास 1 या 2 में पेशेंट है, तो ट्रांसप्लांट से सर्वाइवल को 90 पर्सेंट सफलता दर रहती है। जबकि क्लास 3 जो हाई रिस्क वाले है उनमें सर्वाइवल का सफलता का दर 70 पर्सेंट है। वहीं, ट्रांसप्लांट 6 साल से पहले करवाना बेस्ट रहता है। हालांकि, इसे 10 साल के पहले तक भी कर सकते है, लेकिन रिजल्ट उतना अच्छा नहीं आता है।पॉलिसी में बदलाव जरूरीडॉ। संजीव के मुताबिक बोन मैरो ट्रांसप्लांट पॉलिसी के तहत केवल मैचिंग सिबलिंग डोनर यानि भाई या बहन होने पर ही बजट मिलता है, जबकि पैरेंट्स से मैचिंग होने या रजिस्टर्ड डोनर के मिलने पर बजट नहीं मिलता है। ऐसे में इस पॉलिसी में बदलाव की भी जरूरत है। हालांकि, भाई या बहन से मिले बोन मैरो ट्रांसप्लांट का रिजल्ट पैरेंट्स से मिले बोन मैरो से ज्यादा अच्छा मिलता है। हालांकि, इसके बावजूद पैरेंट्स के डोनर होने पर बजट मिलना चाहिए।गर्भावस्था के दौरान जांच करवाएं

केजीएमयू के हेमेटोलॉजी विभाग की डॉ। स्वस्ति सिन्हा बताती हैं कि अभी विभाग में थैलेसिमिया मरीजों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट शुरू नहीं हुआ है। यह पाइप लाइन में जरूर है। इससे बचाव बेहद जरूरी है। इसके लिए गर्भावस्था के दौरान ही जांच करवानी चाहिए, ताकि समय रहते इसे रोका जा सके। एक बार होने पर इसे मैनेज करना बेहद मुश्किल हो जाता है।बोन मैरो ट्रांसप्लंाट बेहद महंगा होता है। मैचिंग सिबलिंग डोनर पॉलिसी में बदलाव होना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक मरीजों को फायदा मिल सके।-डॉ। संजीव, संजय गांधी पीजीआई

Posted By: Inextlive