देश में कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रान के मरीज मिलने के साथ ही वैक्सीन की बूस्टर डोज की चर्चा शुरू हो गई है। कोरोना से सुरक्षा के लिए लोग वैक्सीन की तीसरी डोज की बात कर रहे हैं। इस मामले में डॉक्टर्स का कहना है कि अगर बूस्टर डोज लगाई जाए तो सबसे पहले फ्रंट लाइन वर्कर्स और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को लगाई जाए।

लखनऊ (ब्यूरो) एसजीपीजीआई के निदेशक प्रो। आरके धीमन का कहना है कि अगर बूस्टर डोज देनी है तो सबसे पहले फ्रंट लाइन वर्कर्स को लगाई जाए, क्योंकि यही सर्वाधिक लोगों के संपर्क में रहते हैं। बूस्टर डोज सिर्फ इसलिए नहीं लगाई जा सकती है कि लोगों की एंटीबॉडी खत्म हो गई है। बॉडी के बोन मैरो में जो बी-सेल होते हैं, वे दोबारा एंटीजन के कांटेक्ट में आने पर फिर से एंटीबॉडी बना देते हैं। यानि संक्रमण की चपेट में आने पर मेमोरी सेल एक्टिवेट हो जाते हैं और संक्रमण के खिलाफ तेजी से एंटीबॉडी बनाते हैं।


रिसर्च की जरूरत है
केजीएमयू में माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ। शीतल वर्मा ने बताया कि बूस्टर डोज को लेकर सबसे पहले मल्टी सेंट्रिक स्टडी होनी चाहिए। यह पता करना होगा कि वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी शरीर में कितने समय तक बनी रहती हैं। इसी के आधार पर बूस्टर डोज के बारे में विचार करना होगा। अभी इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।


एंटीबॉडी टायटर टेस्ट हो
डॉ शीतल ने बताया कि बूस्टर डोज लगाने से पहले ब्लड सैंपल लेकर एंटीबॉडी टायटर की जांच करनी होगी। अगर उसमें बड़े स्तर पर एंटीबॉडी नहीं मिलती हैं, तभी आगे की प्लानिंग बनाई जाए। यह रिसर्च पहले हेल्थ केयर प्रोफेशनल और गंभीर मरीजों पर किया जाए, जिससे पता चले कि लोगों में एंटीबॉडी है भी कि नहीं।


बूस्टर डोज अगर देनी है तो सबसे पहले फ्रंट लाइन वर्कर्स और गंभीर बीमारी वाले मरीजों को लगाई जानी चाहिए। हालांकि, एक बार संक्रमण होने पर मेमोरी सेल ज्यादा तेजी से एंटीबॉडी बनाते हैं।

प्रो आरके धीमन, निदेशक एसजीपीजीआई

ब्लड सैंपल लेकर एंटीबॉडी टायटर की जांच की जानी चाहिए। अगर उसमें एंटीबॉडी नहीं मिलती है, तभी बूस्टर डोज के बारे में आगे विचार करना चाहिए।।

डॉ शीतल वर्मा, केजीएमयू

Posted By: Inextlive