आजकल बहुत सारे स्कूल कम्युनिटी सर्विस वाले प्रोग्राम भी करवाते हैं। इन प्रोग्राम के लिए स्कूल पेरेंट्स को इंफॉर्म कर देता है और लिस्ट थमा देता है। सामान के लिए पेरेंट्स अपनी जॉब छोड़कर बाजार में भटकता है।


लखनऊ (ब्यूरो)। जानकीपुरम निवासी आकांक्षा शर्मा की बेटी केजी में गई है। आकांक्षा बताती हैं कि स्कूल छोटे क्लास के बच्चों की एक्टिविटी के नाम पर बहुत खर्चे कराते हैं। आकांक्षा बताती हैं कि नर्सरी में बेटी का फैंसी ड्रेस कंपटीशन होना था। स्कूल ने उसके लिए 500 रुपये जमा कराए थे। बेटी को फैंसी ड्रेस कंपटीशन में फेयरी बनना था। 500 रुपये के अलावा घर से शूज, एक्सेसरीज समेत कई चीजों के लिए मार्केट में भटकना पड़ा। दो तीन चक्कर लगाने के बाद सामान पूरा हुआ। 500 रुपये के अलावा हजार से ऊपर का खर्च और आ गया।पैसे के अलावा समय भी बर्बाद


आकांक्षा की तरह शहर के निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ा रहे कई पेरेंट्स की यही पीड़ा है। पेरेंट्स अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए मोटी फीस भी दे रहे हैं, महंगी किताबें व यूनिफॉर्म तो खरीद ही रहे हैं, स्कूल में होने वाली एक्टिविटीज में अपने बच्चों को पार्टिसिपेट कराने के लिए भी हर महीने रकम चुका रहे हैं। इतना ही नहीं, वे सामान खरीदने के लिए मार्केट के चक्कर भी लगाते हैं साथ ही बच्चों को एक्टिविटीज के लिए तैयार भी करते हैं।फूड से लेकर फैंसी ड्रेस कंपटीशन

इंदिरानगर निवासी अमित श्रीवास्तव कहते हैं कि आजकल स्कूल एक्टिविटीज के नाम पर सबसे ज्यादा खर्च कराते हैं। मेरा बेटा केजी में है। उसके स्कूल में नो फायर फूड एक्टिविटी हुई। मंगलवार को यह होनी थी और सोमवार को स्कूल की तरफ से निर्देश आया कि बच्चे को बिना फायर फूड में से कोई फूड क्लास में बनाना है और सारा सामान घर से लाना होगा। बेटे की इस एक्टिविटी के लिए पनीर सैंडविच बनाना था। घर में सैंडविच का सामान नहीं था। पास की दुकान से ऑफिस से आने के बाद सामान लाए, 250 रुपये खर्च करके एक्टिविटी पूरी हुई। इसी तरह हर महीने कुछ न कुछ चलता रहता है।कम्युनिटी सर्विस के लिए सामानहजरतगंज निवासी आशीष कहते हैं कि आजकल बहुत सारे स्कूल कम्युनिटी सर्विस वाले प्रोग्राम भी करवाते हैं। इन प्रोग्राम के लिए स्कूल पेरेंट्स को इंफॉर्म कर देता है और लिस्ट थमा देता है। सामान के लिए पेरेंट्स अपनी जॉब छोड़कर बाजार में भटकता है। लिस्ट में दिया गया एक भी सामान न ही आपको आपकी नजदीकी दुकानों पर मिलेगा और न ही उतनी क्वांटिटी में मिलेगा। एक बार में तो आप पूरा सामान खरीद ही नहीं सकते। बच्चों को पढ़ाने के साथ इस तरह का टॉर्चर भी सहना पड़ता है।

ड्राइंग अच्छी है तो बनाओ चार्ट और बर्थडे कार्डपेरेंट कविता कहती हैं कि मैं वर्किंग वूमेन हूं। इस साल मेरा बेटा क्लास 6 में गया है। वह इंदिरानगर के नामी स्कूल में पढ़ता है। स्कूल में प्रोजेक्ट, एनुअल फंक्शन के नाम पर तो रुपये देने ही होते हैं, पर मेरे साथ एक अलग समस्या भी है। मेरे बेटे की आर्ट बहुत अच्छी है। ऐसे में स्कूल में जब भी कोई स्पेशल डे होता है तो क्लास में उसका पोस्टर बनाने और किसी का बर्थडे होता है तो उसका बथर्ड कार्ड बनाने के लिए बेटे को बोला जाता है। ऐसे में ऑफिस से समय निकाल कर उसको स्टेशनरी का सामान दिलवा कर उसका काम पूरा करवाना पड़ता है। आज के दौर में छोटे से छोटा सामान भी लेने जाएंगे तो बाजार में 500 रुपये से नीचे तो खर्च होता ही नहीं है। कई घंटों की मेहनत लगाने के कुछ दिन बाद स्कूल चार्ट वापस कर देता है। पैसे, मेहनत और समय का कुछ फायदा होता ही नहीं है। गैरजरूरी खर्च और बढ़ जाता है।स्पेशल डे के लिए 50 से 100 रुपये
पेरेंट्स का कहना है कि जिन एक्टिविटीज के लिए सबसे ज्यादा उगाही होती है उनमें स्पोट्र्स डे, फैंसी ड्रेस कंपटीशन, एनुअल फंक्शन, एनुअल फेट तो शामिल हैं ही, इनके अलावा स्पेशल डे और त्योहारों पर भी कभी अर्थ डे के लिए कार्ड, तो कभी फेस्टिवल के लिए एथनिक डे्रस जैसे तमाम खर्चे आते रहते हैं। यह खर्च सबसे ज्यादा प्राइमरी सेक्शन के लिए ही होता है।वर्किंग पेरेंट्स के लिए बहुत दिक्कतेंस्कूलों की इस तरह की डिमांड से सबसे ज्यादा समस्याएं वर्किंग पेरेंट्स को आती हैं। उनको अपना काम छोड़कर बाजार के चक्कर लगाने पड़ते हैं। साथ ही, अगर प्रोजेक्ट से जुड़ा काम है तो उन्हें बच्चे के साथ प्रोजेक्ट बनवाना पड़ता है। पेरेंट्स का कहना है कि एक्टिविटी बेस लर्निंग पढ़ाई का होना तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन स्कूल अपने स्तर से ही ये सब करें तो ज्यादा बेहतर रहेगा।

Posted By: Inextlive