हनटिंग्टन कोरिया बीमारी परिवार में एक से दूसरे को मिलती है। इसकी वजह से दिमाग में न्यूरॉन ठीक से काम नहीं कर पाते जो ब्रेन को सिग्नल देने का काम करते हैं जिसकी वजह से मूवमेंट करने में दिक्कत आने लगती है।


लखनऊ (ब्यूरो)। हनटिंग्टन बीमारी एक दुर्लभ और जेनेटिक बीमारी है, जिसकी वजह से ब्रेन में तंत्रिका कोशिकाओं में गड़बड़ी की समस्या होने लगती है। इसका असर व्यक्ति की कार्य क्षमताओं पर पड़ता है। इसका न तो कोई ट्रीटमेंट है और न कोई दवा। ऐसे में केवल लक्षणों के आधार पर दवा दी जाती है। पर अब संजय गांधी पीजीआई न केवल इसकी जांच के लिए सस्ती डायग्नोस्टिक किट इजाद करेगा, बल्कि इलाज के लिए दवा भी तैयार करेगा।न्यूरॉन ठीक से काम नहीं करते


पीजीआई के जेनेटिक्स विभाग के डॉ। संदीप ने बताया कि हनटिंग्टन कोरिया बीमारी परिवार में एक से दूसरे को मिलती है। इसकी वजह से दिमाग में न्यूरॉन ठीक से काम नहीं कर पाते, जो ब्रेन को सिग्नल देने का काम करते हैं, जिसकी वजह से मूवमेंट करने में दिक्कत आने लगती है। यह समस्या भारत में हर एक लाख में 5-6 लोगों में देखने को मिलती है। चूंकि इसकी डायग्नोसिस ठीक से नहीं होती, इसलिए यह देर से पकड़ में आती है। साथ ही इसकी कोई दवा भी नहीं है। ऐसे में जागरूकता की कमी के चलते यह समस्या बढ़ती जा रही है।किट और दवा तैयार करनी है

इस समस्या को देखते हुए भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रिसर्च से पीजीआई को करीब 70 लाख की ग्रांट मिली है। जिसके तहत इसकी जांच के लिए किट को तैयार किया जायेगा, ताकि सीएचसी-पीएचसी लेवल पर भी डॉक्टर आसानी से जांच कर सकें। इसके अलावा सीडीआरआई के साथ मिलकर इसके इलाज के लिए दवा भी तैयार की जायेगी। चूंकि दवा ईजाद करने का काम सीडीआरआई का होता, ऐसे में पीजीआई उनके साइंटिस्ट्स के साथ मिलकर इसकी दवा भी खोजेगा, ताकि इसका सफल ट्रीटमेंट किया जा सके।इलाज होगा आसानचूंकि यह बीमारी परिवार में चलती आती है, ऐसे में परिवार वालों को खास सतर्कता बरतनी चाहिए। अभी जागरूकता की कमी के चलते इसके बारे में लोगों को ज्यादा पता नहीं है। बीमारी होने पर डॉक्टर लक्षणों के आधार पर दवा देता है, जिससे कुछ राहत जरूर मिलती है, लेकिन चलने-फिरने में दिक्कत बनी रहती है।लक्षण का रखें ध्यान-मांसपेशियों में समस्या-धीमी या असामान्य नेत्र गति-बिगड़ी हुई चाल-चलने में दिक्कत-बोलने या निगलने में दिक्कतहनटिंग्टन की समस्या भारत में हर एक लाख में 5-6 लोगों में देखने को मिलती है। चूंकि इसकी डायग्नोसिस ठीक से नहीं होती, इसलिए यह देर से पकड़ में आती है।-डॉ। संदीप, जेनेटिक्स विभाग, पीजीआई

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