महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए कई योजनाएं बनाई गई हैं। ऑफिस में काम करने वाली महिलाएं हों या फिर स्कूल-कॉलेज जाने वाली गल्र्स सभी को इन योजनाओं द्वारा भरोसा दिलाया गया कि उनकी हर शिकायत पर तुरंत एक्शन लिया जाएगा। दावे तो बड़े-बड़े किए गए लेकिन लचर मॉनीटरिंग व्यवस्था के चलते इनमें से अधिकतर योजनाएं कागजों से बाहर निकलकर धरातल पर कोई असर नहीं दिखा पा रही हैं।

लखनऊ (ब्यूरो)। वर्किंग वीमेन यौन उत्पीडऩ के मामले में रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम, 2013 में विशेष अधिकार हैं। जिन संस्थाओं में दस से अधिक लोग काम करते हैं, उन पर यह अधिनियम लागू होता है। अधिनियम प्रभाव में आया था। ये अधिनियम विशाखा केस में दिये गये लगभग सभी दिशा-निर्देशों के तहत पालन किया जाता है।
महिला सुरक्षा को लेकर बनाई गई योजनाएं
- मिशन शक्ति
- क्राइम अगेंस्ट वीमेन क्राइम सेल
- वीरांगना
- 1090 हेल्प लाइन
- महिला हेल्प डेस्क
- पिंक बूथ


मिशन शक्ति
येे है काम
- थानों में महिला हेल्प डेस्क की शुरुआत
- थानों में महिलाओं के लिए स्पेशल केबिन बनाए गए
- महिलाओं के बयान में सिर्फ महिला अधिकारी दर्ज करेंगी
- गली मोहल्ले में लेडी इनफार्मर की तैनाती
- महिला पुलिस कर्मियों की संख्या बढ़ाई जाएगी
- बीट प्रभारी की जिम्मेदारी महिला पुलिसकर्मियों को दी जाएगी
- स्कूल कॉलेजों के पास सीसीटीवी कैमरे लगाए गए
- लेडीज मार्केट व सुनसान स्थान पर अलार्म स्विच लगाना
- बस में महिला की सुरक्षा के लिए पेनिक बटन लगाए जाने थे
ये हैैं हालात
- ज्यादातर थानों में हेल्प डेस्क है
- ज्यादातर थानो में केबिन बने हैं, कुछ में स्पष्ट नहीं है
- ये व्यवस्था भी पूरी तरह प्रभावी नहीं है
- अभी तक इसका कोई ब्लू प्रिंट तैयार नहीं किया गया
- थानों में मात्र तीस प्रतिशत महिला स्टाफ
- ज्यादातर कैमरे खराब हैं या शोपीस बनकर रह गए हैं
- कई थानों मेें महिला को बीट प्रभारी की जिम्मेदारी नहीं दी गई
- बसों में अब तक पेनिक बटन नहीं लग सके हैं


पिंक बूथ
ये था काम
- स्कूल कॉलेज, मार्केट जाने वाली महिलाओं की तत्काल शिकायत व मदद के लिए शहर में पिंक बूथ बनाए गए
- 10 टीयूबी पिंक फोर व्हीलर दिए गए
- 100 पिंक स्कूटी
- 100 पिंक बूथ शहर में बने
- 70 पिंक बूथ का उद्घाटन हो चुका
ये हैैं हालात
- वीवीआईपी इलाकों में ही पिंक बूथ व पिंक व्हीकल एक्टिव मिले
- अन्य इलाकों में पिंक बूथ केवल शो पीस बने हैं
- महिला पुलिसकर्मी के जिम्मे पिंक बूथ, नहीं रहती मौजूद, ताला लटका मिला
- बूथ में एक महिला दारोगा और 2 महिला पुलिसकर्मी तैनात की गई।
- पिंक बूथ की मॉनीटरिंग क्षेत्रीय थाने से होनी थी। महिलाओं की समस्या सुनने के साथ जरूरत पडऩे पर पीडि़ता की काउंसिलिंग का भी होना था काम लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है।
- एक पिंक बूथ के निर्माण में डेढ़ से दो लाख रुपए तक का आया खर्च।
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कैमरों की स्थिति
योजना
राजधानी में इंट्रीगे्रटेड ट्रैफिक एंड क्राइम मैनेजमेंट सिस्टम के तहत आर्टिफिशियल सर्विलांस कैमरे लगाए जाने थे। इन कैमरों के माध्यम से अपराधियों के साथ-साथ शोहदों पर भी नजर रखी जानी थी। इसका कंट्रोल रूम कैसरबाग में है।
क्या हैं हालात
आर्टिफिशियल सर्विलांस कैमरे लगना तो दूर, यहां रोड पर लगे अधिकतर सीसीटीवी कैमरे भी खराब चल रहे हैं।

बच कर निकल गया शोहदा
मीराबाई मार्ग पर कुछ दिन पहले शोहदे ने बीच रोड पर युवती के साथ गाली गलौज की और थप्पड़ मारा था। यहां पांच से छ कैमरे लगे थे लेकिन कैमरे खराब होने के चलते शोहदे की पहचान आज तक नहीं हो सकी है।
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निल एफआईआर स्कीम
इस स्कीम के तहत स्ट्रीट क्राइम की वारदात की रिपोर्ट महिला किसी भी थाने में दर्ज करा सकती हैं। इस केस को बाद में संबंधित थाने में ट्रांसफर किया जाना था।
क्या हैं हालात
अभी तक किसी भी थाने में ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है। महिलाएं एफआईआर दर्ज कराने के लिए थानों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं।
बिना एफआईआर लिखे लौटाया
विभूतिखंड एरिया में बदमाशों ने बच्ची की गर्दन पर चाकू रखकर महिला से चेन लूट ली थी। महिला इसकी शिकायत करने विभूतिखंड थाने गई, लेकिन वहां से उसे बिना केस दर्ज किए लौटा दिया गया। पुलिस कमिश्नर से शिकायत के बाद केस दर्ज दिया गया।
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दो साल में 8.70 फीसद बढ़ा क्राइम अगेंस्ट वीमेन
एनसीआरबी की क्राइम इन इंडिया 2020 रिपोर्ट में 19 शहरों में क्राइम के आंकड़े जारी किए गए हैं। इसमें यूपी के तीन शहर लखनऊ, कानपुर और गाजियाबाद शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक लखनऊ में 2019 में 2425 ऐसे मामले आए थे जबकि 2020 में यह संख्या बढ़कर 2636 हो गई।

आंकड़ों पर एक नजर
शहर महिलाओं के खिलाफ अपराध
लखनऊ 2636
कानपुर 1056
गाजियाबाद 341
किस तरह के मामले
अपराध मामले
रेप 42
पॉक्सो एक्ट 120
चाइल्ड रेप 50
नोट- दो साल में राजधानी में आए मामले। एनसीआरबी के आकड़ों के अनुसार।


किस तरह के कितने मामले आए सामने
- आईपीसी सेक्शन 498 ए (हसबैंड या रिलेटिव द्वारा की जाने वाली क्रूएलिटी)- 547 केस
- दहेज हत्या- 30 केस
- किडनैपिंग एंड अबडक्शन- 161 केस (18 साल से ज्यादा उम्र वाले केस-130 18 साल से कम उम्र वाले केस-31)
- रेप केस (सेक्शन 376)- 42 केस
- छेड़छाड़, लज्जाभंग (सेक्शन-354)- 146 केस
- टोटल आईपीसी क्राइम अगेंस्ट वीमेन- 927 केस
- पाक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामले- 120 केस
- चाइल्ड रेप (सेक्शन 4 एंड 6 ऑफ पाक्सो एक्ट)- 50 केस
- सेक्सुअल असाल्ट अगेंस्ट चाइल्ड- 68 केस, स्टेट एंड लोकल लॉ के तहत क्राइम अगेंस्ट वीमेन के 129 केस


पुलिस और कोर्ट में केस के डिस्पोजल की स्थिति
पुलिस की जांच- 840
इनवेस्टिगेशन पुलिस के पास पेंडिंग- 237
मामले सही लेकिन एवीडेंस की कमी- 1113
कुल केसों में चार्जशीट लगाई गई- 82.2 प्रतिशत


चार्जशीट लगाने का रेट
कोर्ट में स्थिति 1113
केसों में ट्रायल पर गए 2020 में 3783
केस कोर्ट में पेंडिंग 4896


महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए लखनऊ कमिश्नरेट पूरी तत्परता से काम कर रहा है। शोहदों को सबक सिखाने के लिए हेल्पलाइन नंबर भी जारी किए गए हैं। इन नंबरों पर लगातार शिकायतें आ रही हैं और उन पर तत्काल मदद भी पहुंचाई जा रही है।
डीके ठाकुर, पुलिस कमिश्नर

यह कानून क्या करता है
- कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीडऩ को अवैध करार देता है
- यौन उत्पीडऩ के विभिन्न प्रकारों को चिह्नित करता है और बताता है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ की स्थिति में शिकायत किस प्रकार की जा सकती है।
- यह जरूरी नहीं है कि जिस कार्यस्थल पर महिला का उत्पीडऩ हुआ है,वह वहां नौकरी करती हो।
इसका रखे ध्यान
- शारीरिक रिश्ता/यौन संबंध बनाने की मांग करना या उसकी उम्मीद करना जैसे यदि विभाग का प्रमुख, किसी जूनियर को प्रमोशन का प्रलोभन दे कर शारीरिक रिश्ता बनाने को कहता है तो यह यौन उत्पीडऩ है ।
- अश्लील तस्वीरेंं, फिल्में या अन्य सामग्री दिखाना जैसे यदि आपका सहकर्मी आपकी इच्छा के खिलाफ आपको अश्लील वीडियो भेजता है, तो यह यौन उत्पीडऩ है।
कौन कर सकता है शिकायत
- जिस महिला के साथ कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ हुआ है, वह शिकायत कर सकती है।
शिकायत किसको की जानी चाहिए
- अगर आपके संगठन/ संस्थान में आंतरिक शिकायत समिति है तो उसमें ही शिकायत करनी चाहिए। ऐसे सभी संगठन या संस्थान जिनमें 10 से अधिक कर्मचारी हैं,आंतरिक शिकायत समिति गठित करने के लिए बाध्य हैं।
- अगर संगठन ने आंतरिक शिकायत समिति नहीं गठित की है तो पीडि़त को स्थानीय शिकायत समिति में शिकायत दर्ज करानी होगी।
- कई राज्य सरकारों ने इन समितियों को पूरी तरह से स्थापित नहीं किया है।
यह है समय सीमा
- शिकायत करते समय घटना के तीन महीने से ज्यादा समय नहीं बीता हो, और यदि एक से अधिक घटनाएं हुई हैं तो आखरी घटना की तारीख से तीन महीने तक का समय पीडि़त के पास है।
बढ़ाई जा सकती है समय सीमा
यदि आंतरिक शिकायत समिति को यह लगता है की इससे पहले पीडि़त शिकायत करने में असमर्थ थी तो यह सीमा बढाई जा सकती है, पर इसकी अवधि और तीन महीनों से ज्यादा नहीं बढ़ाई जा सकती है।

शिकायत कैसे की जानी चाहिए
शिकायत लिखित रूप में की जानी चाहिए। यदि किसी कारणवश पीडि़त लिखित रूप में शिकायत नहीं कर पाती है तो समिति के सदस्यों की जिम्मेदारी है कि वे लिखित शिकायत देने में पीडि़त की मदद करें।

शिकायत दर्ज करने के बाद क्या होता है
यदि महिला समाधान नहीं चाहती है तो जांच की प्रक्रिया शुरू होगी, जिसे आंतरिक शिकायत समिति को 90 दिन में पूरा करना होगा। यह जांच संस्था/ कंपनी द्वारा तय की गई प्रकिया पर की जा सकती है, यदि संस्था/कंपनी की कोई तय प्रकिया नहीं है तो सामान्य कानून लागू होगा।

Posted By: Inextlive