जब भी लखनऊ घराने के कथक का जिक्र आता है सबसे पहले पद्मविभूषण पं। बिरजू महाराज की छवि आंखों के सामने आ जाती हैं। उन्होंने तांडव और लास्य का अप्रतिम समावेश कर कथक की नई विधा को जन्म दिया था। लेकिन अब कथक की वो गलियां सूनी हो गई हैं। कथक सम्राट पं. बिरजू महाराज का 83 वर्ष की उम्र में दिल्ली में हार्ट अटैक से निधन हो गया। उनके निधन से समूचे कला जगत में शोक की लहर दौड़ गई। वे राजधानी स्थित कालाका-बिंदादीन घराने के मुख्य प्रतिनिधि थे। नृत्य के साथ वे अच्छे शास्त्रीय गायक और कोरियोग्राफर भी थे।

लखनऊ (ब्यूरो)। पं। बिरजू महाराज के निधन के साथ उनकी आखिरी इच्छा भी अधूरी रह गई। वे बीते साल नवंबर में राजधानी के संगीत नाटक अकादमी में एक लंबे अंतराल के बाद आए थे। यहां उन्होंने कहा था कि मैं लखनऊ में जन्मा और खेला हूं। यहां की कई यादें आज भी मेरे मन में जिंदा हैं। कोरोना संकट के कारण मैं लंबे समय से घर से नहीं निकल सका लेकिन मन में इरादा था कि जब भी निकलूंगा तो सफर लखनऊ से शुरू करूंगा। मेरी इच्छा है कि मैं अपने जीवन के आखिरी वर्ष यहां रहकर बच्चों को सिखाने में बीता सकूं।

विरासत में मिली कथक परंपरा
पं। बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी 1938 को लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल में हुआ था। उनका असली नाम बृज मोहन मिश्रा था। बचपन से विरासत में मिली कथक परंपरा को को आत्मसात करते हुए पिता अच्छन महाराज, चाचा लच्छू महाराज व शंभू महाराज की शागिर्दी ग्रहण कर परंपरा को आगे बढ़ाया। 9 साल की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद चाचा शंभू-लच्छू महाराज ने उनको कथक का प्रशिक्षण देना शुरू किया। मात्र 16 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली प्रस्तुति दी। उन्होंने 23 साल की उम्र में नई दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देना शुरू किया। इसके अलावा दिल्ली में ही भारतीय कला केंद्र में नृत्य सीखना शुरू किया। वे वहां संकाय अध्यक्ष निदेशक भी रहे। साल 1998 में सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने दिल्ली में कलाश्रम नाम से एक नाट्य विद्यालय खोला।

बॉलीवुड से गहरा नाता
बिरजू महाराज ने कई फिल्मों जैसे देवदास, डेढ़ इश्किया, उमराव जान, बाजीराव मस्तानी जैसी कई फिल्मों में बतौर नृत्य निर्देशक काम किया। उन्होंने गोवर्धन लीला, माखन चोरी, मालती-माधव, कुमार संभव व फाग बहार आदि नृत्य शैलियों की रचना की। वे पदचालन की सूक्ष्मता और मुख व गर्दन के चालन को अपने पिता और विशिष्ट चालू और चाल के प्रभाव को अपने चाचा से प्राप्त करने का दावा करते थे। वे सितार, सरोद और सारंगी वादन में विशेष निपुणता रखते थे।

लखनऊ की पहचान थे बिरजू महाराज
कथक की बात पं। बिरजू महाराज के बिना अधूरी है। उनके निधन से यहां जैसे घुंघरुओं की झंकार खामोश हो गई है। कालिका बिंदादीन की ड्योढ़ी पर मातम छा गया है। मैं अब सच में अनाथ हो गई हूं। कथक विधा का जो शीर्ष था, जिस पर पिछले कई दशकों से पं। बिरजू महाराज जी विराजमान थे वह खाली हो गया। कौन सोचेगा कि मैदान पर खेले जाने वाले क्रिकेट या खो-खो को कथक के भावों में मंच पर पेश किया जा सकता है। गुरुजी एक बेहतरीन लेखक, संगीतकार और गायक भी थे।
कुमकुम धर, शिष्या

उनका किया इंटरव्यू आज भी याद
लखनऊ कथक घराने को सर्वोच्च ऊंचाई पर ले जाने और उसे विश्व पटल पर स्थापित करने के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। वे अपनी नृत्य-नाटिकाओं में पौराणिक कथानक का चयन तो करते ही थे साथ ही आधुनिक विषयों का भी समावेश करते थे। एक बार चप्पल टूट जाने के बाद वे नंगे पांव ही अकादमी से होटल चले गये थे। उनके जैसा असाधारण कला का पुजारी दूसरा नहीं हो सकता है। उनके साथ किया इंटरव्यू मुझे आज भी याद है। उन्होंने कहा था कि लखनऊ में कथक के प्रति आने वाली पीढ़ी को और जागरूकता दिखानी होगी।
तरुण राज, सचिव उप्र संगीत नाटक अकादमी

यह एक अपूर्णीय क्षति है
आज भारतीय संगीत की लय थम गई है। सुर पूरी तरह मौन हो गए हैं। भाव शून्य हो गए हैं। कथक के सरताज पंडित बिरजू महाराज जी नहीं रहे। लखनऊ की ड्योढ़ी आज सूनी हो गई है। कानिका बिंदादीन जी की गौरवशाली परंपरा की सुगंध विश्वभर में प्रसारित करने वाले महाराज अनंत में विलीन हो गए हैं। अपूर्णीय क्षति है यह।
मालिनी अवस्थी, लोक गायिका

महान कलाकार और सरल व्यक्तित्व
कथक संग्राहलय को जब राष्टीय कथक संस्थान के साथ जोड़कर बना रहे थे, तब पाया कि वे एक महान कलाकार और सरल व्यक्तित्व वाले थे। वे पिता व चाचा से प्रभावित थे। उनके नृत्य में तीनों विधा समाहित थीं। इसीलिए उन्हें बेजोड़ और कथक का स्तंभ कहा जाता है। 2004 में रोमियो-जूलियट प्ले कराया था। जिसे उन्होंने कथक नृत्य के माध्यम से पेश कर सभी को हैरान कर दिया था। सौ कलाकारों के साथ मंच पर इसे साकार किया, वो अप्रतिम था। लखनऊ के कथक घराने पर उनको बहुत गर्व था। वे सभी को अपना परिवार मानते थे। यही कारण है कि सभी कथक कलाकार उन्हें अपना मानते हैं। कथक को आगे बढ़ाना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
सरिता श्रीवास्तव, कथक नृत्यांगना

Posted By: Inextlive