बख्शी का तालाब में गोमती नदी के किनारे स्थित मां चंद्रिका देवी का उल्लेख स्कंद और कर्मा पुराण में भी है। मंदिर में मां चंद्रिका देवी तीन पिंडी के आकार में विराजमान हैं। राजधानी के चौक स्थित बड़ी काली मंदिर के बारे में मान्यता है कि आदि शंकराचार्य द्वारा इसका निर्माण करीब 2000 साल पहले किया गया था।


लखनऊ (ब्यूरो)। नवरात्र में माता के मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है। मंदिरों में हवन-पूजन हो रहा है। कुछ इसी तरह का अद्भुत और मन को मोह लेने वाला मां का स्वरूप दिखायी दिया शहर के सुप्रसिद्ध देवी मंदिरों में। आइये जानते हैं कौन से हैं ये मंदिर और इनका इतिहास। भय को दूर करती हैं मां


बख्शी का तालाब में गोमती नदी के किनारे स्थित मां चंद्रिका देवी का उल्लेख स्कंद और कर्मा पुराण में भी है। मंदिर में मां चंद्रिका देवी तीन पिंडी के आकार में विराजमान हैं। कहा जाता है कि लक्ष्मण के बड़े बेटे राजकुमार चंद्रकेतु एक बार गोमती के माध्यम से गुजर रहे थे। अंधेरा होने पर उन्होंने सुरक्षा के लिए देवी की प्रार्थना की। एक पल के भीतर शांत चांद की रोशनी में देवी उसके सामने प्रकट हुईं और उन्हें सुरक्षा का आश्वासन दिया। यहां पर लोग हवन, पूजन और मुंडन कार्य भी करते हैं। इसी जगह पर पांडवों ने अश्वमेघ यज्ञ कर घोड़ा भी छोड़ा था।-अनुराग तिवारी, महामंत्रीदो हजार वर्ष पुराना मंदिर

राजधानी के चौक स्थित बड़ी काली मंदिर के बारे में मान्यता है कि आदि शंकराचार्य द्वारा इसका निर्माण करीब 2000 साल पहले किया गया था। इस मंदिर-मठ का संचालन बोधगया मठ से होता है। यह भारत में ऐसा अकेला मंदिर है जहां भगवान विष्णु जी और काली जी की मूर्तियों को एक साथ रखा जाता है। यहां हजारों वर्ष पुरानी अष्टधातु मूर्ति के दर्शन केवल नवरात्र को अष्टमी और नवमी को भक्तों के दर्शन के लिए बाहर निकाला जाता है। मान्यता है कि अष्टधातु मूर्ति के सामने जो भी मन्नत मांगी जाए वह पूरी होती है। यही वजह है कि नवरात्र की अष्टमी और नवमी को यहां पर आस्था का सैलाब उमड़ता है। यह मूर्ति देखने में अर्धनारीश्वर है। नारायणी-नारायणी मूर्ति ने धोती और जनेऊ पहन रखी है तो वहीं माथे पर बिंदी और श्रृंगार किया जाता है।-शक्तिदीन अवस्थी, पुजारीसाल में केवल दो बार चरणों के होते दर्शन

लखनऊ के चौक में चौपटिया स्थित संधोहरण या संदोहन देवी मंदिर मां के भक्तों की आस्था का एक बड़ा केंद्र है। मंदिर की स्थापना के बारे में किसी को जानकारी नहीं है। पर यह मंदिर करीब 300 वर्ष से भी अधिक पुराना बताया जाता है। पास के ही तालाब से मां की पिंडी प्राप्त हुई थी और एकादशी को मां की पिंडी स्थापित हुई। इस पिंडी को जितनी बार बिठाया गया, हर बार लेट जाती थी। इसीलिए लेटे हुए ही मां की पिंडी की स्थापना की गई। ऐसी मान्यता है कि एकादशी को दर्शन कर यहां भक्त की हर मनोकामना पूर्ण होती है। साल में दोनों नवरात्र के बाद की एकादशी को ही मां के चरणों के दर्शन होते हैं। नवरात्र के दौरान मां का विभिन्न स्वरूपों में भव्य श्रृंगार किया जाता है।-कमल मेहरोत्रा, अध्यक्षकुल देवी की होती है पूजा
राजधानी के ठाकुरगंज स्थित मां पूर्वी देवी एवं महाकालेश्वर मंदिर बाघंबरी सिद्धपीठ का इतिहास करीब 500 वर्ष से अधिक पुराना है। इसकी स्थापना के बारे में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। शुरुआत में यह मंदिर लाखौरी ईटों से बना हुआ था। इसलिए समय के साथ इसकी स्थिति खराब होने के बाद करीब 30 वर्ष पूर्व इसका जिर्णोधार कराया गया। तब इसकी स्थापना स्व। आचार्य पं अमरनाथ शर्मा और केके तिवारी व प्रमोद शुक्ला ने कराई थी। मां का मुख पूर्व में होने के कारण इनका नाम पूर्वी देवी पड़ा। यह लोगों की कुलदेवी हैं, इसलिए कोई भी मुंडन, सगाई आदि आयोजन से पूर्व लोग यहां पर पूजन के लिए दूर-दराज से आते हैं। साथ ही मान्यता है कि अगर किसी की शादी नहीं हो रही है तो यहां आकर दीया जलाने से एक साल के भीतर ही उसकी शादी हो जाती है। इसके अलावा दोनों नवरात्र में विशेष आयोजन, दिसंबर में रामायण, शिवरात्री में दीपदान करते हैं, जोकि पंचमुखी होते हैं। अबतक मंदिर द्वारा देशभर के करीब 2100 मंदिरों को दीपदान किया जा चुका है।-प्रमोद कुमार शुक्ल, संरक्षकमिट्टी की मां की प्रतिमा स्थापितराजधानी के घसियारी मंडी स्थित प्रतिष्ठित कालीबाड़ी मंदिर की स्थापना 1863 में की गई थी। इसकी स्थापना तपस्वी मधुसुधन मुखर्जी ने की थी। वो यहां पर तप कर रहे थे। तब मां ने उन्हें सपने में दर्शन देकर यहां पर स्थापित करने का निर्देश दिया। जिसके बाद से यहां पर पूजन होता चला आ रहा है। यहां नवरात्र में मां का पूजन अनुष्ठान मूल बंगाली परंपरा के तर्ज पर किया जाता है। इस मंदिर में मिट्टी की अपनी तरह की अकेली मां काली की मूर्ति स्थापित है। यह सौ शिवा मां है, जो दुनिया में कहीं नहीं। जो पंचमुंड आसन पर स्थापित है। साल में एकबार मूर्ति को दीवाली से पहले ठीक किया जाता है। इस दौरान मंदिर दो दिन बंद रहता है और कलश में पूजा होती। बाद में शुद्धिकरण के बाद मंदिर खोला जाता है। यहां दूर-दूर से मां के भक्त दर्शन और अनुष्ठान के लिए आते हैं।-गौतम भट्टाचार्य, सभापति

Posted By: Inextlive