दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने बच्चों खासकर किशोरों में बढ़ती सुसाइडल टेंडेंसी को रोकने पेरेंट्स व बच्चे के बीच रिश्तों को बेहतर बनाने के तरीकों पर एक्सपर्ट से की बात।


लखनऊ (ब्यूरो)। बीते कुछ महीनों में शहर में स्टूडेंट्स की आत्महत्याओं के मामले बढ़े हैं। ज्यादातर केसों में पढ़ाई का प्रेशर, पियर प्रेशर, डांट बर्दाश्त न कर पाना, अपमानित महसूस करने के बाद टीनएजर्स ने यह कदम उठाया। मंगलवार को कानपुर में 11वीं के छात्र की आत्महत्या के बाद एक बार फिर पेरेंट्स और बच्चों के बीच संवाद की बढ़ती खाई पर बहस शुरू हो गई है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने बच्चों खासकर किशोरों में बढ़ती सुसाइडल टेंडेंसी को रोकने, पेरेंट्स व बच्चे के बीच रिश्तों को बेहतर बनाने के तरीकों पर एक्सपर्ट से की बात। पेश है एक रिपोर्टकेस 1: नवंबर 2022


कक्षा 9वीं के छात्र ने रेलके सामने कूद कर अपनी जिंदगी खत्म करने का प्रयास किया। नौंवी का छात्र सीएमएस गोमतीनगर विस्तार का स्टूडेंट था। छात्र को गंभीर हालत में ट्रामा में भर्ती किया गया था। छात्र बच तो गया था, लेकिन उसकी स्थिति बहुत बेहतर नहीं है।वजह: छात्र ने पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग से बचने के लिए यह कदम उठाया था। छात्र के पास से टीचर्स को सॉरी बोलते हुए एक नोट भी बरामद हुआ था।केस 2: जनवरी 2023

जानकीपुरम निवासी क्लास 12वीं की छात्रा ने आत्महत्या कर ली थी। संस्कृति सिंह क्लास 12वीं की छात्रा थी। मार्च में उसके बोर्ड एग्जाम होने थे।वजह: संस्कृति की मां ने उसको सुबह देर से उठने के लिए डांटा था। इस बात से क्षुब्ध होकर उसने यह कदम उठाया था।केस 3: मार्च 2023महानगर निवासी 11वीं की छात्रा ने स्कूल से घर लौटने के बाद अपनी जान ले ली थी। ईशा यादव सर्वोदय नगर स्थित आरएलबी स्कूल में 11वीं की छात्रा थी। छात्रा की मौत के बाद परिजनों की तरफ से स्कूल में प्रिंसिपल व क्लास टीचर के खिलाफ प्रताडऩा की एफआईआर भी कराई गई थी।वजह: छात्रा के पिता का आरोप था कि स्कूल ने उनकी बेटी पर नकल करने का झूठा आरोप लगाया था। साथ ही उसको पूरे क्लास में अपमानित किया था। इससे परेशान होकर छात्रा ने यह कदम उठाया।संवादहीनता से बढ़ रही समस्याएं

साइकोलॉजिस्ट व नवयुग कन्या महाविद्यालय की प्रो। डॉ। सृष्टि श्रीवास्तव का कहना है कि मौजूदा समय में बच्चों और पेरेंट्स के बीच संवादहीनता बढ़ रही है। इसकी वजह से बच्चे पेरेंट्स से जुड़ नहीं रहे हैं। इससे कम्युनिकेशन गैप लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में बच्चे फोबिया का शिकार हो जाते हैं। कई घरों में सिबलिंग्स भी नहीं होते। ऐसे में उन्हें लगता है कि जो मेरी समस्या है वो सबसे बड़ी है। इसे कोई सुलझा नहीं सकता। हम हैंडल नहीं कर पा रहे हैं कोई समझेगा नहीं, उलटा मुझे ही ब्लेम करेंगे। इस तरह की बेबसी की वजह से सबसे ज्यादा दिक्कतें आ रही हैं।बच्चे से कम्युनिकेशन बढ़ाएंकाउंसलर नम्रता सिंह कहती हैं कि अपने बच्चे को इस तरह की दिक्कत से बचाने के लिए सबसे पहले उनके साथ कम्युनिकेशन बढ़ाएं। बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करें। उनको यह बताना बहुत जरूरी है कि वे ही पेरेंट्स की सबसे बड़ी प्रायोरिटी हैं। अपनी भावनाएं शेयर करें। अपने बच्चों के साथ अपना फिजिकल टच जरूर मेनटेन करें। यह उसे आपके प्रति संवेदनशील बनाएगा।ज्यादा गुमसुम लगे तो काउंसलर की लें मददएक्सपट्र्स का कहना है कि सोल्यूशन जरूरी है। आमतौर पर सुसाइडल टेंडेंसी डिप्रेशन की ओर इशारा करती हैं। ऐेसे में अपने बच्चे के व्यवहार पर नजर जरूर रखें। बच्चा अगर ज्यादा गुमसुम दिखे या उसे लोगों से मिलने-जुलने में दिक्कतें आ रही हैं और यह दिक्कत छह हफ्ते से बनी हुई है, तो काउंसलर से जरूर संपर्क करें।पेरेंट्स के साथ बच्चे से जुड़े व्यक्ति जिम्मेदारी समझे
बच्चों में पढ़ाई का बहुत प्रेशर क्रिएट हुआ है। स्कूल टाइम के दौरान बच्चे बहुत ही प्रेशर में रहते है। हर हफ्ते कोई न कोई एग्जाम, रिजल्ट के समय उनमें कई ऐसे कारण भी देखने को मिलते हैं। एंजायटी समेत कई दिक्कतें उनको होती हैं। इनको सही समय पर ट्रीट न किया जाए तो यह डिप्रेशन में बदल सकता है। ऐसे में इसकी रोकथाम के लिए पेरेंट्स के साथ रिश्तेदार, पड़ोसी, दोस्त सभी बच्चों के व्यवहार में बदलाव देखें तो उनसे बात करें। दिक्कत ज्यादा लगे साइकॉलजिस्ट को दिखाएं।इनसे भी मिलेगी मदद-सप्ताह में एक दिन नो टीवी, नो मोबाइल डे रखें।-आउटिंग भी कम्युनिकेशन बढ़ाने में मददगार है।-बच्चों पर पढ़ाई का जोर न डालें और उन्हें ओवर बर्डन न करें।-दूसरे बच्चों से तुलना से बचना चाहिए।-बच्चों के साथ ज्यादा रोक-टोक न करें, उनके दोस्त बनें। उनको यह भरोसा दिलाएं कि आप उनके करीब हैं और वे आपसे हर परेशानी शेयर कर सकते हैं।-उनके डेली रूटीन के बारे में पूछते रहें। उनके व्यवहार पर नजर रखें।-घर पर जितना सकारात्मक माहौल बनाया जा सकता है, बनाएं।-बच्चों को मजबूत बनाने के लिए उन्हें किसी एक स्पोट्र्स एक्टिविटी में जरूर डालें, इससे उनके अंदर हार न मानने की क्षमता विकसित होती है।
मौजूदा समय में बच्चों और पेरेंट्स के बीच संवादहीनता बढ़ रही है। इसकी वजह से बच्चे पेरेंट्स से जुड़ नहीं रहे हैं। इससे कम्युनिकेशन गैप लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में बच्चे फोबिया का शिकार हो जाते हैं।-प्रो। सृष्टि श्रीवास्तव, साइकोलॉजिस्ट व नवयुग कन्या महाविद्यालयकोविड के बाद, खासकर ऑनलाइन क्लासेज के बाद से बच्चों में व्यवहारिक परिवर्तन हुए हैं। मेरी पेरेंट्स को सलाह है कि अपने बच्चों के साथ-साथ उनके दोस्तों से भी संवाद बढ़ाएं। चाहें तो वीकेंड्स पर बच्चों के फ्रेंड्स को घर पर बुलाएं, उनसे घुले-मिलें।-डॉ। देवाशीष शुक्ला, साइकियाट्रिस्ट, बलरामपुर अस्पताल

Posted By: Inextlive