- झारखंड से पढ़ाई, रहने और खाने का लालच देकर आते है 'क्राइम के मास्टर'

- स्पेशल ट्रेनिंग देकर शहर-शहर कराते हैं मोबाइल चोरी की वारदात

LUCKNOW : एक पैरेंट्स के मन में अपने बच्चों के भविष्य को लेकर सुनहरे सपने होते हैं। वह अपने बच्चों की ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं। इसी का फायदा उठाकर क्राइम के 'मास्टर' मजबूर पैरेंट्स को उनके बच्चों के उज्जवल भविष्य का सपना दिखाकर शिकार बनाते हैं। क्राइम के मास्टर अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए देश के भविष्य को अपराध की दुनिया में धकेलने से जरा सा भी गुरेज नहीं करते हैं। लखनवाइट्स भले ही मासूम को चोरी करते समय पकड़े जाने पर उनकी मासूमियत पर छोड़ देते हैं, लेकिन इनके 'आका' का दिल नहीं पसीजता और वह फिर मासूम को दूसरी जगह चोरी का टारगेट दे देते हैं। हम आपको एक ऐसे ही गिरोह के बारे में बताने जा रहे हैं। जो मासूमों को अपराध जगत की एबीसीडी सिखा रहा है। पेश है मयंक श्रीवास्तव की रिपोर्ट

पहले पूरी ट्रेनिंग

आशियाना पुलिस ने बीते बुधवार को मोबाइल चोरी के एक ऐसे गिरोह को पकड़ा, जो अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए मासूम बच्चों का सहारा लेता था। पुलिस को जब पता चला कि गिरोह के सदस्य चोरी के लिए मासूम बच्चों का सहारा लेते हैं तो उनके भी होश उड़ गये। यह गिरोह झारखंड से गरीब परिवार के बच्चों को शहर में फ्री एजुकेशन, खाना और रहने का लालच देकर अपने साथ लाते हैं। वहीं परिवार को इसके बदले में पांच हजार रुपये देते हैं। मजबूर पैरेंट्स अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए गिरोह के सदस्यों के साथ भेज देते हैं। फिर गिरोह का असली काम शुरू होता है। मोबाइल चोरी के लिए बच्चों को स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेंड करने के बाद उन्हें शहर में घूम-घूमकर मोबाइल चोरी के लिए भेजा जाता है। इस दौरान वह कोई गड़बड़ी न करें इसके लिए उनकी निगरानी की जाती है। बच्चों को एक शहर में वारदात के लिए करीब तीन से चार माह रखा जाता है, उनका समय और टारगेट पूरा होने के बाद उन्हे दूसरे शहर शिफ्ट कर दिया जाता है। इसी तरह सिलसिला चलता रहता है।

ऐसे दी जाती है ट्रेनिंग

- बच्चों को जेब से मोबाइल कैसे निकालना है

- मोबाइल निकालने के दौरान क्या सावधानी रखनी है

- चोरी को महज तीस सेकंड में कैसे देना है अंजाम

- अगर पीडि़त को मोबाइल निकालने के दौरान पता चल जाए तो क्या करना है

- मोबाइल चोरी के दौरान बच्चों को जेब या पर्स के पास पेपर रखने की ट्रेनिंग दी जाती है

- इससे पीडि़त को यह नहीं पता चल पता है कि उसका मोबाइल चोरी हो गया है

- ट्रेनिंग के दौरान बच्चों को इंग्लिश भी सिखायी जाती है

- ट्रेनिंग के दौरान चोरी का डेमो भी देखा जाता है

- ट्रेंड होने के बाद चोरी के लिए शहर के इलाकों में भेज दिया जाता है

एक शहर में ज्यादा दिन नहीं

क्राइम के मास्टर बच्चों को एक शहर और एक इलाके में ज्यादा दिन नहीं रोकते हैं। पुलिस पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि वह इसलिए ऐसा करते हैं ताकि उनका भेद न खुले। वारदात को अंजाम देने के लिए बच्चों की एक टीम बनाई जाती है, जो वारदात के दौरान एक दूसरे का साथ देते हैं। वहीं इनकी निगरानी के लिए भी गिरोह के एक सदस्य को जिम्मेदारी दी जाती है ताकि उनकी मॉनीटरिंग हो सके।

टारगेट महंगे मोबाइल फोन

मोबाइल चोरी के दौरान गिरोह की नजर महंगे मोबाइल पर होती है ताकि उन्हे उसकी अच्छी रकम मिल सके। गिरोह के सदस्य जिस शहर से मोबाइल को चोरी कराते हैं वहां पर उसे नहीं बेचते हैं। वह मोबाइल को दूसरे स्टेट में जाकर बेचते हैं। गिरोह के सदस्यों का सॉफ्ट टारगेट सीनियर सिटीजन और महिलाओं होती हैं। करीब तीन साल पहले गोमतीनगर पुलिस ने चोरी के मोबाइल के साथ तीन नाबालिग को पकड़ा था, उस दौरान गैंग को ऑपरेट करने वाला नहीं पकड़ा गया था। बताया जा रहा है कि आशियाना पुलिस ने मोबाइल चोरी में जिस शख्स को पकड़ा है वहीं गैंग को ऑपरेट करता है। उस दौरान पता चला था कि नाबालिग बच्चों को झारखंड के कोडरमा जिले से लाया गया था। यहां पर बच्चे गोमतीनगर में किराये के मकान में रहते थे, जहां से पुलिस को 15 लाख कीमत के मोबाइल मिले थे। चोरी के मोबाइल को ज्यादातर पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड में बेचा जाता है। मोबाइल को बेचने से पहले उनका आईएमआई नंबर बदल दिया जाता है।

इन वारदात का खुलासा

- वर्ष 2018 में गोमतीनगर पुलिस ने चोरी के सौ मोबाइल बरामद किये थे। साथ ही तीन नाबालिग बच्चों को हिरासत में लिया था। मोबाइल की कीमत 15 लाख थी। उस समय गैंग का मास्टरमाइंड सुनील फरार हो गया था

- आशियाना पुलिस ने बुधवार को तीन आरोपियों को दबोचा। उनके पास से चोरी के 118 मोबाइल बरामद हुए थे। वारदात में सात नाबालिग बच्चों की संलिप्तता भी मिली थी, जिन्हे चाइल्ड लाइन भेजा गया।

मॉडस ऑपरेंडी

पहले होता है बच्चों का मेकओवर

- मोबाइल चोरी को छुपाने के लिए सफेद कागज को यूज किया जाता है

- ऐसे इलाकों को टारगेट किया जाता है जहां सीसीटीवी नहीं होते हैं

- बच्चों को साफ-सुथरे कपड़े पहनाए जाते हैं

- फोन चोरी से पहले कई दिनों तक भीड़ भरे बाजारों का सर्वे किया जाता है

- भीड़भाड़ इलाके में लोगों को पूछताछ के नाम पर उलझाया जाता है

- मोबाइल फोन पर बात करते हुए सीनियर सिटीजन महिला को देखकर पीछा किया जाता है

Posted By: Inextlive