आरटीओ कार्यालय के अधिकारियों के अनुसार गांवों-कस्बों में छोटी दूरी के लिए न टेंपो हैं और न बसें। गांव में वे लोग ही ट्रॉली और अन्य माल वाहनों में सफर करते हैं जो किराये का भुगतान करने में सक्षम नहीं है। इसी के चलते इन क्षेत्रों में लोग परिवहन के लिए ट्रॉली और मालवाहनों में सफर करते हैं।


लखनऊ (ब्यूरो)। सोमवार को इटौंजा में ट्रैक्टर ट्राली से हुई दुर्घटना के बाद भी परिवहन विभाग के अधिकारी जागे नहीं हैं। दर्दनाक हादसे में 10 लोगों की जान जाने के बावजूद दूसरे दिन भी इटौंजा क्षेत्र में ट्रैक्टर ट्राली में लोग सफर करते दिखाई पड़े। कृषि कार्य में प्रयोग होने वाले ट्रैक्टर ट्राली पर यात्रियों का सफर दूसरे दिन मंगलवार को भी जारी रहा। बेखौफ ट्रैक्टर संचालकों में न तो आरटीओ प्रवर्तन का खौफ दिखा और न पुलिस प्रशासन ही मुस्तैद नजर आया। राजधानी से सटे काकोरी, बख्शी का तालाब, राजाजीपुरम सहित कुर्सी रोड पर भी लोग ट्रैक्टर ट्रॉली के साथ माल ढोने वाले वाहनों में सफर करते दिखाई पड़े।सारे दावे हवा हवाई ही रहे
बताते चलें कि बीते सोमवार इटौंजा क्षेत्र में एक ट्रैक्टर ट्रॉली को ट्रक ने पीछे से टक्कर मार दी थी। इस हादसे में 10 लोगों के मारे जाने के साथ ही तकरीबन तीन दर्जन लोग चोटिल हुए। पर घटना के दूसरे दिन मंगलवार को ट्रैक्टर संचालकों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। राजधानी से सटे तमाम इलाकों में ट्रालियों में बैठकर लोग सफर करते दिखाई दिये। इसके अलावा अन्य माल वाहनों पर भी लोग सफर करते रहे। विभागीय अधिकारियों के अनुसार, आज से तकरीबन चार वर्ष पूर्व 2018 और 2019 में ट्रालियों के खिलाफ अभियान चलाया गया था। तत्कालीन प्रमुख सचिव आराधना शुक्ला के निर्देशन में यह अभियान चला था। सभी ट्रालियों में रेट्रो रिफलेक्टर टेप लगाए गए। विभागीय अधिकारियों ने चेकिंग की और विभिन्न स्थानों पर ट्रैक्टर रोक कर उसमें रेट्रो रिफलेक्टर टेप लगवाया। बारिश और धूप से यह खराब हो जाते हैं और इन्हें फिर से लगवाना पड़ता है।ग्रामीणों को जागरूक करना होगा


एआरटीओ अमित राजन राय के अनुसार, किसी भी ट्रैक्टर ट्रॉली और माल वाहनों में यात्रियों को ढोने की अनुमति नहीं है। लेकिन गांवों और कस्बों में कम दूरी के सफर के लिए सार्वजनिक साधनों का अभाव है। इसके चलते लोग ट्रॉली और अन्य माल वाहनों में सफर करने को मजबूर हैं। इनमें कोई व्यवसायिक कार्य होता है तब इन्हें दोषी माना जायेगा। क्षेत्र में जब ऐसे वाहनों को पकड़ा जाता है तो उन्हें गंतव्य तक भेजने के लिए साधन भी नहीं मिल पाते हैं। हालांकि, माल वाहक वाहनों के खिलाफ चालान किया जाता है। ट्राली सिर्फ कृषि कार्य के लिए होती है, ऐसे मे इनका प्रयोग यात्री ढोने में नहीं होता है। ऐसे मामलों को सिर्फ जागरूकता के माध्यम से ही रोका जा सकता है। इसके लिए गांव स्तर पर ही लोगों को जागरूक करना होगा। सार्वजनिक वाहनों की कमीआरटीओ कार्यालय के अधिकारियों के अनुसार, गांवों-कस्बों में छोटी दूरी के लिए न टेंपो हैं और न बसें। गांव में वे लोग ही ट्रॉली और अन्य माल वाहनों में सफर करते हैं, जो किराये का भुगतान करने में सक्षम नहीं है। इसी के चलते इन क्षेत्रों में लोग परिवहन के लिए ट्रॉली और मालवाहनों में सफर करते हैं।इंडिकेटर का न होना भी मुसीबतट्रॉलियों में इंडिकेटर की व्यवस्था नहीं होती है। ऐसे में पीछे तेज रफ्तार में आ रहे वाहनों को इसकी जानकारी भी नहीं मिल पाती। जब तक चालक को ट्रैक्टर के मुडऩे का एहसास होता है और वह ब्रेक लगाए, तब तक दुर्घटना हो चुकी होती है।

Posted By: Inextlive