- नई पीढ़ी के पुलिस कर्मी उर्दू व फारसी शब्दों के अर्थ तक नहीं जानते

- वर्किग ऑनलाइन होने से तलाशे गए सरल शब्द

- उर्दू, फारसी के शब्दों का अब नहीं हो रहा यूज

LUCKNOW : मैं निरीक्षण, अपने हमराहियान सिपाहियान के साथ गश्त में मामूर था, जरिए मुखबिर खास मिली सूचना पर वांछित चल रहे एक नफर अभियुक्त को गिरफ्तार किया। रुबरु संतरी प्रहरी जामा तलाशी ली गई (पहरे पर मौजूद संतरी के सामने तलाशी)। ना बरामद होने के सिवाय कपड़े (पहने हुए कपड़े के अलावा उसके पास से कुछ नहीं मिला)। अंदर हवालात मर्दाना दाखिल किया (पुरुष बंदीगृह में बंद किया)। हस्ब हुलिया जैल है (मुलजिम का हुलिया इस प्रकार है)। जिस्म जरवात पाक- साफ व ताजा है (शरीर पर चोट के निशान नहीं हैं)। हस्ब ख्वाहिश खुराक पूछी गई, गमे गिरफ्तारी खुराक खाने से मुनफिर है। (मुलजिम से खाने के बारे में पूछा गया, गिरफ्तारी से दुखी होकर खाने से इंकार कर दिया)। ये शब्द कभी पुलिस की डायरी की शान हुए करते थे, लेकिन अब यह शब्द उनकी डायरी से लापता हो गये हैं। इसकी वजह टेक्नोलॉजी और लोगों को इन शब्दों की जानकारी न होना बताया जा रहा है। पेश है एक रिपोर्ट।

कंप्यूटर ने बदल दी लैंग्वेज

वर्ष 1861 में पुलिस मैनुअल एक्ट बनाते समय अंग्रेजों ने पुलिस की लैंग्वेज चार भाषाओं को मिलाकर बनाई थी। इसमें हिंदी, उर्दू, अरबी व फारसी के शब्दों की शब्दावली का प्रयोग किया गया था। समय बदलने के साथ पुलिस का सिस्टम कंप्यूटराइज्ड हो गया। इसके बाद पुलिस की डायरी से कई ऐसे शब्द को हटा दिया गया, जिसमें अरबी, फारसी और कई उर्दू शब्द शामिल हैं।

नई पीढ़ी से पुलिस के सामने आ रही दिक्कत

पुलिस की डायरी की लैंग्वेज को लेकर नई पीढ़ी के पुलिस कर्मियों के सामने खासी दिक्कत आने लगी। इसके चलते कई बार कंप्यूटर में भी ऐसे शब्द न तो लिखे जा पा रहे हैं और न ही उनका अर्थ ही पल्ले पड़ रहा। सदियों से चली आ रही व्यवस्था के चलते आने वाली दिक्कत का तोड़ निकाला गया है। इसके तहत अरबी, फारसी व उर्दू के कठिन शब्दों का हिंदी में अर्थ निकाल कर उसे प्रयोग में लाना शुरू कर दिया गया। अब फर्द हो या केस डायरी में इन शब्दों का बहुत कम प्रयोग देखने को मिल रहा है।

Posted By: Inextlive