- बापू की पे्ररणा से खुला चुटकी भंडार ग‌र्ल्स स्कूल अनदेखी के कारण कहीं इतिहास के पन्नों में न खो जाए स्कूल

LUCKNOW: आजादी के आंदोलन के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कई बार लखनऊ भी आए थे और यहां कई कार्यक्रमों में शामिल भी हुए थे। उनका लखनऊ से काफी जुड़ाव रहा। उन्होंने यहां शिक्षा की अलख जगाने का भी काम किया, जिसका जीता-जागता प्रमाण हुसैनगंज स्थित चुटकी भंडार ग‌र्ल्स स्कूल है। आइए जानते हैं, गांधी जी के कहने पर किस तरह इस स्कूल की शुरुआत हुई

दान में मांगा एक चुटकी आटा

इतिहासकार पद्मश्री योगेश प्रवीण ने बताया कि सन 1921, पूरे देश में स्वतंत्रता आंदोलन की आग दहक रही थी। स्वतंत्रता प्रेमी देश को पराधीनता की बेडि़यों से आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे रहे थे। इसी दौरान बापू का राजधानी में आना हुआ। यहां बापू के सामने आंदोलनकारियों ने खाने की कमी की बात रखी तो उन्होंने कहा कि जब देश के लिए आंदोलन है तो देश के लोग ही मदद करेंगे। उन्होंने महिलाओं से सिर्फ एक चुटकी आटा देने का आग्रह किया और इसके लिए जगह-जगह हांडी रखवा दी। बाबू के इस आग्रह पर महिलाएं आतीं और इन हांडियों में एक-एक चुटकी आटा डाल जातीं। इसी आटा से आंदोलनकारियों के लिए भोजना बनाया जाने लगा। जो आटा बच जाता था, उसे बेच दिया जाता था।

बापू के सामने रखी थी स्कूल की मांग

उसी दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं। विश्वनाथ बाजपेयी ने गांधी जी से बालिकाओं के लिए एक राष्ट्रीय पाठशाला खोलने की मांग की थी। जिस पर बापू ने कहा कि यह तो जनता का ही काम है, उनसे ही सहयोग लो। फिर क्या था लखनऊ सहित आसपास के शहरों की महिलाएं इस काम के लिए आगे आ गई। आटा बेचकर उस समय 63 रुपए मिले थे, उस समय यह एक बहुत बड़ी रकम थी। इसी पैसे से सन 1922 में चुटकी भंडार ग‌र्ल्स स्कूल की स्थापना की गई। पहले बैच में यहां 19 लड़कियों ने दाखिला लिया, लेकिन यह स्कूल 1924 में बंद हो गया।

चांदी की थाली नीलाम कर दी

बापू 1925 में जब दोबारा लखनऊ आए, तो उन्हें पता चला कि यह स्कूल बंद हो गया है। इस पर बापू ने कहा कि जब स्कूल शुरू हुआ था तो फिर बंद कैसे हो गया। इस दौरान गांधी जी को एक चांदी की थाली भेंट की गई थी, जिसे उन्होंने वहीं नीलाम कर दिया और इससे मिले 101 रुपए फिर से स्कूल खोलने के लिए दिए। आगे चलकर इस स्कूल में दो पक्के कमरे बनवाए गए और 1924 में म्युनिस्पेलिटी ने 80 फिट लंबी और 8 फिट चौड़ी जमीन पट्टे पर दे दी।

पंडित जी भी यहां आए थे

सन 1931 में सरोजनी नायडू, आचार्य नरेंद्र देव और वर्ष 1936 में पंडित जवाहर लाल नेहरू और पंडित मदन मोहन मालवीय जी भी इस स्कूल में आए। वर्ष 1932 पंडित विश्वनाथ बाजपेयी के प्रयासों से यह प्राइमरी स्कूल जूनियर हाई स्कूल बन गया। सन 1950 में बाजपेयी जी की उम्र अधिक हेा जाने पर स्कूल की नई समिति बनाई गई। स्कूल को सन 1952 में दो हजार रुपए सरकार की ओर से दिए गए और सन 1955 में यह चुटकी भंडार हायर सेकंड्री स्कूल ग‌र्ल्स स्कूल बन गया। स्कूल को हर साल पांच हजार रुपए की सरकारी सहायता मिलने लगी, जिसे सन 1958-59 में बढ़ाकर आठ हजार रुपए कर दिया गया। विश्वनाथ बाजपेयी के निधन के बाद सन 1952 में चंद्रभानु गुप्त इस स्कूल के संरक्षक बनाए गए थे। आज भी यह स्कूल चल रहा है।

अब 48 कमरों का स्कूल

स्कूल के वर्तमान प्रबंधक पवन वर्मा ने बताया कि सन 1950 में स्व। कृष्णा वर्मा को स्कूल सौंपा गया था। उन्होंने स्कूल की कमान 1975 तक संभाली। अब स्कूल में 48 कमरे हैं और इसे इंटर तक की मान्यता मिल चुकी है। एक हजार से अधिक बच्चे स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। एक समय इस स्कूल में तीन हजार से अधिक विद्यार्थी थे।

खो रहा अपनी पहचान

यह ऐतिहासिक स्कूल धीरे-धीरे अपनी पहचान खोता जा रहा है। गांधी जी की प्रेरणा से शुरू हुआ स्कूल सरकारी अनदेखी के कारण बदहाल हो रहा है। स्कूल प्रबंधक पैसे की कमी के करण इसके इन्फ्रॉस्ट्रक्चर को बदल नहीं पा रहे हैं। यही कारण है कि यहां लगातार विद्यार्थियों की संख्या कम होती जा रही है। अगर ऐसा ही रहा तो कहीं यह स्कूल इतिहास के पन्नों में ही दर्ज होकर न रह जाए।

Posted By: Inextlive