World AIDS Day 2023: केजीएमयू लखनऊ में एआरटी प्लस सेंटर के नोडल इंचार्ज डॉ. डी हिमांशु ने बताया कि ओपीडी में जो केस आ रहे हैं वे पुराने हैं जो ट्रीटमेंट के जरीए खुद को मेंटेन रखें हुए हैं। यह एक अच्छा साइन है क्योंकि इसकी बदौलत लोगों की उम्र 10-15 साल तक और बढ़ गई है।


लखनऊ (ब्यूरो)। एड्स बीमारी का नाम सुनते ही लोगों को जिंदगी का अंत दिखाई देने लगता है। पर अब एडवांस्ड और अपग्रेडेड ट्रीटमेंट की वजह से ऐसे मरीजों का लाइफ एक्सपेक्टेंसी रेट 10-15 साल तक बढ़ गया है। यह बीमारी आज भी 30-35 वर्ष के लोगों में ज्यादा दिखाई दे रही है। खासतौर पर पढ़े-लिखे लोगों में यह ज्यादा मिल रही है। ऐसे में लोगों को एड्स के प्रति जागरूक और सतर्क रहना चाहिए।मरीजों की बढ़ रही उम्र
केजीएमयू में एआरटी प्लस सेंटर के नोडल इंचार्ज डॉ। डी हिमांशु ने बताया कि ओपीडी में जो केस आ रहे हैं, वे पुराने हैं, जो ट्रीटमेंट के जरीए खुद को मेंटेन रखें हुए हैं। यह एक अच्छा साइन है, क्योंकि इसकी बदौलत लोगों की उम्र 10-15 साल तक और बढ़ गई है। इसका पूरा ट्रीटमेंट फ्री में किया जाता है। लोगों में इसके प्रति जागरूकता बढ़ी है, पर लोग शर्म के चलते जल्दी सामने नहीं आते हैं। ऐसे में लोगों को बिना देरी किए अपने नजदीकी सेंटर पर जाकर जांच करवानी चाहिए। आजकल अच्छी ड्रग्स आने से मरीजों की उम्र पहले के मुकाबले बढ़ी है।अबतक 65 जोड़ों की हुई शादी


डॉ। डी हिमांशु के मुताबिक, कई मरीज सेंटर पर आते हैं, जिनको एड्स हुआ होता है। जिसमें महिला व पुरूष दोनों शामिल होते हैं। उनकी काउंसलिंग के बाद शादी भी कराई जाती है। अबतक करीब 65 जोड़ों की शादियां करवाई जा चुकी हैं। वहीं, अब तक 500 लोगों ने एआरटी प्लस सेंटर, एआरटी सेंटर, लिंक एआरटी सेंटर पर रजिस्ट्रेशन करवाया है। 3566 पेशेंट इस समय जीवित हैं। जनवरी-नवंबर 2023 के बीच 51 प्रेग्नेंट महिलाओं में एड्स मिला है। वहीं, 219 बच्चों में यह बीमारी मिली है।यह है हाई रिस्क फैक्टरडॉ। डी हिमांशु के मुताबिक, एड्स फैलने के कई फैक्टर हैं। यह ड्रग्स, खासतौर पर इंजेक्शन की जरिए सबसे ज्यादा होता है। इसकी वजह से 239 मामले मिले हैं। एलजीबीटी कम्युनिट के लोग में भी 32 लोगों में यह बीमारी मिली है। वहीं, महज 4 फीमेल सेक्स वर्कर में यह बीमारी मिली।पढ़े-लिखे लोगों में समस्या ज्यादा

केजीएमयू में ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की हेड प्रो। तुलिका चंद्रा के मुताबिक, जो लोग ब्लड डोनेशन करने आते हैं, उनमें बहुत से लोगों में एचआईवी पॉजिटिव मिलते हैं, जिसके बाद उनकी काउंसलिंग होती है। जो भी ब्लड डोनेशन होता है उसका 0.5 पर्सेंट यानि प्रति हजार में 1-2 लोगों में एचआईवी पॉजिटिव केस मिलता है। खासतौर पर यह यंग लोगों में निकलता है। जब उनकी काउंसलिंग होती है तो पॉलीगेमस हैबिट सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। इसमें हर क्लास के लोग होते हैं, जिनमें 90 पर्सेंट पढ़े-लिखे होते हैं। कई बार लोग इसके बारे में बताते नहीं हैं और इसे छिपाते हैं, जो नहीं करना चाहिए।

Posted By: Inextlive