-सिगरेट छूटी पर मिल गया परिवार

-दृढ़ संकल्प से कुछ भी मुमकिन

Meerut: मित्र मंडली में मुझे चेन स्मोकर के नाम से बुलाया जाता था। सिगरेट प्रति चाह इस कदर थी कि एक सिगरेट बुझती नहीं थी, कि दूसरी सुलग जाती थी। लेकिन जलती सिगरेट के साथ ही सुलग रहा था मेरा परिवार भी। मेरे घर में घुसते ही परिजनों को सिगरेट की बू आने लगती थी। पत्नी का टोकना तो फिर भी ठीक बच्चों ने भी पास आना बंद कर दिया था। बच्चों को गोद में उठाता तो कहते पापा आपके कपड़ों से सिगरेट की बदबू आ रही है। फिर एक दिन रात अचानक खांसी उठी तो खांसी का सिलसिला चल निकला। डॉक्टर को दिखाया तो बीमारी सिगरेट ही निकली। फिर एक दिन दृढ़ संकल्प किया कि सिगरेट नहीं पीनी और फिर नहीं पी। हालांकि शुरुआती तीन दिन मारे तलब के जान पर बनी रही, लेकिन जलती सिगरेट में बच्चों के चेहरे नजर आने लगे। बस उस वह दिन और आज का दिन सिगरेट बेगानी हो गई और परिवार अपना।

आरके गुप्ता, सहायक अभियंता एमडीए

बच्ची ने आंखे खोल दी

हालांकि स्मोकिंग से मेरी मित्रता इतनी प्रगाढ़ तो नहीं थी, लेकिन फिर भी गाहे-बगाहे मैं सिगरेट पीने से बाज नहीं आता था। शादी समारोह या फिर मित्र मंडली में एक दो सिगरेट हो ही जाती थी। कुछ दिनों बाद बच्चों को भी इसकी भनक लगी, तो परिवार में दबी जान से विरोध भी होने लगा। सिगरेट को लेकर परिवार में नाराजगी तो आम बात है, लेकिन एक चौंकाने वाली बात ने सिगरेट छुड़ा दी। हुआ यूं कि घर में बच्चों के साथ टीवी देख रहा था, तो टीवी पर स्मोकिंग इज इंजूरियस टू हेल्थ का एड आया। बिटिया देखते ही बोल उठी। पापा अगर सिगरेट हेल्थ के इंजूरियस है तो फिर आप स्मोक क्यों करते हैं। लगा कि बच्चे अब बड़े ही नहीं समझदार भी हो गए। बच्ची ने ऐसा सबक सिखाया कि सिगरेट भूल गया। हालांकि तलब उठी। पर दृढ़ निश्चय कर लिया। संकल्प के सामने सिगरेट बौनी साबित हुई। विल पॉवर स्ट्रांग हो तो हर बुरी से बुरी आदत छोड़ी जा सकती है। सिगरेट खुद को नहीं बल्कि परिवार को जलाती है।

शबीह हैदर, अधीक्षण अभियंता एमडीए

Posted By: Inextlive