छोटी-छोटी बातों पर सामने आ रहा बच्चों का आक्रामक रुख, मनोचिकित्सकों से सलाह ले रहे पेरेंट्स

कई महीनों से घर पर बैठे बच्चे होने लगे हैं मोबाइल एडिक्शन के शिकार, व्यवहार हो रहा आक्रामक

केस-1

शास्त्रीनगर निवासी आठ साल के आकाश का लॉकडाउन में वेट बढ़ गया। खाने-पीने का कोई टाइम नहीं हैं। पूरे दिन मोबाइल में बिजी रहता है। अगर कोई मना करता है तो रोने लगता है। सामान फेंकने लगता है।

केस- 2

सात साल की इशिका मोबाइल में पूरा दिन गेम खेलती है। न ही किसी से बात करती है न ही पढ़ाई करती है। यहां तक की रात में भी सोती नहीं हैं। इस समस्या से परेशान होकर इशिका के मम्मी उसे काउंसलर के पास लेकर जा रही है।

केस-3

12 साल का सूर्या पढ़ाई में ध्यान नहीं लगाता है। पूरा दिन टीवी और मोबाइल में गेम्स खेलता है। फोन लेने पर घर में तोड़-फोड़ करने लगता है। समझाने पर भी समझता नहीं हैं। उसकी इन आदतों से परेशान होकर घरवाले काउंसलर से संपर्क कर रहे हैं।

Meerut। कोरोनकाल में कई महीनों से घर में बैठे बच्चों के व्यवहार में बदलाव आने लगा है, मानो उनका बचपना कहीं खो गया है। लॉकडाउन का असर अब उनकी मनोदशा पर दिखने लगा है। बच्चों में चिढ़चिढ़ापन, गुस्सा और हिंसक प्रवृति पनप रही है। बच्चों में आ रही समस्याओं को लेकर पेरेंट्स काउंसलर्स से संपर्क कर रहे हैं।

ये है लक्षण

लगातार मोबाइल फोन चेक करना

लैपटॉप, मोबाइल, टीवी और टैबलेट का अधिक से अधिक यूज करना

मोबाइल न मिलने पर चिढ़चिड़ा होना, नींद न आना, मानसिक तनाव, उदासी, नीरसता का अनुभव करना

किसी खास करेक्टर के बारे में सोचना, वैसा ही बिहेव करना

गेम्स को बीच में न छोड़ना

ये हो सकता है नुकसान

मेंटल ग्रोथ का रूक जाना

मन-मिजाज की समस्या

डेली लाइफ में डिस्ट्रबेंस

कंसंट्रेशन में प्रॉब्लम

देखने-सुनने में प्रॉब्लम

आम दिनों में बच्चा स्कूल जाता है और उसका रूटीन बना रहता है। घर में वह कंफर्टेबल हो जाता है और उसमें डर भी नहीं रहता है। घर वाले भी पहले तो बच्चों को मोबाइल या टीवी से मन बहलाने के लिए छोड़ देते है लेकिन धीरे-धीरे ये आदत बन जाती है। पेरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चों का रूटीन तैयार करें।

डॉ। रवि राणा, सीनियर मनोरोग विशेषज्ञ

मोबाइल और टीवी की लत लगने की समस्या इन दिनों काफी कॉमन हो गई है। दिनभर में कई केस ऐसे आ रहे हैं। घर पर बच्चे अनुशासन का पालन नहीं करते हैं इसलिए भी ये समस्या बढ़ रही है। बच्चों में हिंसात्मक रूप देखने को मिल रहा है। पेरेंट्स को चाहिए कि वह घर पर भी बच्चों का रूटीन बनाकर रखें। उनके साथ टाइम स्पेंट करें।

डॉ। विभा नागर, इंचार्ज, मनकक्ष

Posted By: Inextlive