- जनपद में पहली बार अदरक की खेती कर जलालुद्दीन ने पेश की मिसाल

Hastinapur : पश्चिमी उप्र को खेती के मामले में गन्ने का गढ़ माना जाता है। अधिकांश किसान गन्ने की खेती पर ही निर्भर है और इस खेती से विमुख नही होना चाहते, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि कुछ भूमि पर मसालों की खेती भी की जाए, तो किसान उससे अधिक लाभ कमा सकता है। ऐसा ही सोच गणेशपुर गांव के एक किसान ने अदरक की खेती कर बंपर पैदावार की। जिससे किसान को अधिक लाभ हुआ साथ ही और लोगों ने भी उससे गन्ने को छोड़ अन्य खेती करने की सीख ली।

गन्ने की जगह अदरक के खेती

आपके भोजन का स्वाद लाजवाब करने व कई प्रकार के रोगों में रामबाण व अचूक दवा माना जाने वाला अदरक का उत्पादन पहली बार हस्तिनापुर क्षेत्र में किसी किसान ने किया। क्षेत्र में अदरक की पहली फसल की बंपर पैदावार से किसान व वैज्ञानिक हतप्रभ है। अदरक का उपयोग मसालों के रूप में सागभाजी, आचार व अन्य भोजन सामग्रियों में होने के साथ ही औषधियों में भी बहुतायत में प्रयोग किया जाता है।

किसानों के लिए मिसाल

केवीके के उद्यान वैज्ञानिक डा। वीरेंद्र पाल गंगवार ने बताया कि पूरे भारत वर्ष में अदरक की खेती लगभग 141 हजार हेक्टेअर क्षेत्रफल में होती है। जिससे लगभग 762 हजार मैट्रिक टन उत्पादन किया जाता है। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा दी सलाह पर गणेशपुर गांव के किसान जलालुद्दीन ने 0.15 हेक्टेअर भूमि पर अदरक की फसल उगाकर बंपर पैदावार कर गन्ने की खेती करने वाले किसानों के सामने नजीर पेश की।

चार गुना मुनाफा कमाया

इस वर्ष अधिक भूमि पर करूंगा खेती

किसान जलालुद्दीन से वार्ता की गई तो बताया कि अदरक की फसल उगाने में उसका लगभग 35 हजार रूपये का व्यय हुआ। जबकि अदरक के उत्पादन से डेढ़ लाख रूपये का शुद्ध मुनाफा प्राप्त किया। उसका कहना है कि आगामी वर्ष में इस फसल का विस्तार कर एक हेक्टेअर भूमि पर अदरक की खेती करेगा। उसने बताया कि इस वर्ष जो भी अदरक का उत्पादन हुआ था, उसे अन्य किसान अदरक की खेती करने के लिए बीज के रूप में हाथों हाथ ले गए। बीज की इतनी मांग रही कि अदरक घर में प्रयोग के लिए भी नही बचा।

अन्य देशों को होता है निर्यात

डा। गंगवार ने बताया कि कच्चा अदरक का निर्यात भारत से प्रतिवर्ष अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, मोरक्को आदि देशों को होता है। जिससे विदेशी मुद्रा अíजत होती है। भारत में मुख्यत अदरक की खेती केरल, तमिलनाडू व उत्तराखंड में होती है। यदि उन्हीं की तर्ज पर अदरक की उन्नत प्रजातियों की खेती यहां पर करें तो अधिक लाभ कमाया जा सकता है।

अदरक की उन्नत किस्में

अदरक के कच्चे प्रयोग के लिए बिना रेशे वाली प्रजातियां अधिक उपयुक्त होती है। जिसमें रिपो-डी-जेनेरो एवं चायना प्रजाति उत्तम है और दोनों ही प्रजातियां पश्चिम उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त है। उन्होंने बताया कि अप्रैल मई माह में अदरक की बुवाई की जाती है तथा नौ माह पर फसल पूर्ण होती है। प्रति हेक्टेअर 15 से 20 कुंतल बीज की आवश्यकता होती है व उत्पादन 150 से 200 कुंतल प्रति हेक्टेअर तक हो जाता है।

Posted By: Inextlive