सीसीएसयू में टीचर्स के डॉक्यूमेंट्स की हो रही जांच

विजिलेंस ने शुरू की जांच, फर्जी होने की आशंका

Meerut। सीसीएसयू में शिक्षक नियुक्तियों को लेकर बीते दिनों डॉक्यूमेंट वेरीफिकेशन के लिए ऑनलाइन डॉक्यूमेंट जमा किए गए थे। अब उनका वेरीफिकेशन होने के बाद कुछ का दोबारा से री वेरीफिकेशन किया गया तो एक हैरान करने वाला सच सामने आ रहा है। 50 टीचर्स के डॉक्यूमेंट्स में गड़बड़ी पाई गई है। इनमें किसी की मार्कशीट के सीरियल नंबर में दिक्कत है तो किसी का रोल नंबर नहीं आ रहा है। दरअसल, यूनिवर्सिटी के पास आए बोर्ड के डाटा मिलान के कारण ये गड़बड़झाला सामने आया है। इस मामले में जांच चल रही है, जिसमें इस गोलमाल की हकीकत टटोली जाएगी।

फर्जी होने की आशंका

हालांकि, अभी अंदाजा लगाया जा रहा है कि रोल नंबर गलत होने या मार्कशीट के सीरियल नंबरों में हेरफेर एक मिस्टेक हो सकती है, लेकिन अब इन सीरियल नंबरों को स्कैन की गई सभी मार्कशीट से मिलान किया जा रहा है। अगर ये नंबर उससे अलग हुए तो ही ये मिस्टेक मानी जा सकती है। अगर ये वास्तव में मार्कशीट पर भी सेम नंबर है तो ऐसे में फर्जी होने की भी संभावना है। इन मार्कशीट के नंबरों का मिलान बोर्ड में भेजकर कराया जाएगा। तभी असली नकली मार्कशीट का पता लगेगा।

नहीं है डाटा

इन मार्कशीट को इस आधार पर भी फर्जी माना जा सकता है कि अगर यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर संबंधित डाटा जो बोर्ड की तरफ से भेजा गया है उनमें सर्च करने पर नंबर से मार्कशीट नहीं शो हो रही है। ऐसे में इन डॉक्यूमेंट पर संदेह हो रहा है, सीसीएसयू ने इन पचास मार्कशीट को दोबारा से चेक करके बोर्ड को भेजकर वेरिफाई कराने व संबंधित जांच करने का फैसला लिया है, इसके लिए जल्द ही जांच समिति बनाने की तैयारी है।

कैसे बनती है फर्जी मार्कशीट

सूत्रों के मुताबिक कुछ साइबर कैफे शहर में 10 से 20 हजार रुपए लेकर दसवीं, बारहवीं की मार्कशीट कम्प्यूटर के माध्यम से बनाते हैं। इसके लिए प्रिंटर, स्कैनर, फर्जी स्टैंप, ग्राहक को फंसाने के लिए इस तरह के गिरोह एक मार्कशीट बनाने के लिए लोगों को लूटते हैं। लोगों को फंसाने के लेकर क्वालिटी चेक तक के लिए अलग- अलग शख्स मुस्तैद रहते हैं। एक यूनिवर्सिटी या बोर्ड का डेटा चुराकर रखा होता है, उस डेटा में ही नाम व केंद्र आदि परिवर्तित कर कम्प्यूटर के माध्यम से नई फर्जी हूबहू रियल दिखने वाली मार्कशीट बना देते है। उस पर वो फर्जी स्टैंप लगा देते है, जो कि बहुत ही गलत है, 2013 में भी इससे पहले इस तरह के केस सामने आए थे जिनमें इसी तरीके से एक गिरोह नकली मार्कशीट बनाता था।

अभी इस मामले में जांच चल रही है हो सकता है फर्जी हो, लेकिन अभी कुछ नहीं कह सकते हैं, जांच के बाद ही क्लीयर होगा, इस बारे में ऐसे कुछ नही कह सकते है।

अरुण, सदस्य, विजिलेंस, सीसीएसयू

Posted By: Inextlive