होटल्स और रेस्टोरेंट्स में गुपचुप तरीके से चल रहे हुक्का बार

पार्टी के नाम पर परोसा जा रहा है भांग, चरस और गांजा

Meerut। यंग जनरेशन की सबसे बड़ी खासियत है उनका एक्सपेरिमेंटल होना। जिसकी वजह से आज देश में युवा बड़े-बड़े स्र्टाटअप चला रहे हैं और हजारों लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। मगर नशे की डोज का एक्सपेरिमेंट एक ऐसी गलती है, सही-गलत के जजमेंट लेने की क्षमता को खत्म कर देता है। जहां तक समाज में युवाओं के नशे की गिरफ्त में आने का सवाल है, वहां पर इस नशे का संदर्भ शराब आदि प्रचलित साजो सामान से नहीं है बल्कि गांजा, हेरोइन, अफीम, चरस आदि से है। खासतौर से शहरों के मार्डन कल्चर, रेस्टोरेंट और हुक्का बार की आड़ में नशे के सौदागरों की तरफ से चलाए जा रहे नेक्सेस में युवा तेजी से इस नशे की चपेट में आते जा रहे हैं। अमीरों से लेकर मध्यवर्गीय और गरीब तबकों में भी नशा अलग-अलग प्रकार से अपनी पकड़ बना चुका है।

खुशी की तलाश में

जानकारों के मुताबिक नशा एक ऐसी स्थिति है, जिसकी गिरफ्त में आकर कोई भी व्यक्ति अपनी सोचने समझने की सारी ताकत खो देता है। मेडिकल साइंस की परिभाषाओं के अनुसार ज्यादातर नशीली दवाएं यानी ड्रग्स हमारे दिमाग के उस हिस्से पर असर डालती हैं, जिससे शरीर को अच्छा और सुकून महसूस कराने वाले केमिकल डोपामाइन का प्रभाव बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में एक बार ड्रग्स लेने वाले व्यक्ति को उसका दिमाग बार-बार उसी नशे की ओर धकेलता है और युवा बार-बार नशे का सेवन करता है। यदि युवा लंबे समय तक ड्रग्स का सेवन करते हैं, तो दिमाग का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स स्थायी रूप से प्रभावित होता है। यह स्थिति असल में व्यक्ति की ड्रग्स के प्रति बढ़ी हुई सहनशीलता है, जिसमें व्यक्ति का लगाव खुशी देने वाले जिंदगी के अन्य पहलुओं से दूर हो जाता है और ड्रग्स की ओर बढ़ जाता है।

सामाजिक समस्या है नशा

एक्सपर्ट मानते हैं कि यह असल में एक सामाजिक समस्या भी है जो परंपरागत पारिवारिक बिखराव, माडर्न लाइफ स्टाइल, न्यूक्लियर फैमली, बिजी जॉब लाइफ आदि के हावी होने के कारण बढ़ती जा रही है। आज स्कूल-कॉलेजों के बच्चों को भी नशे से दूर रखना चुनौती बन गया है स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चे तक नशे की चपेट में आ रहे है। दरअसल, ड्रग्स का कारोबार करने वाले शहर के स्कूल-कॉलेजों के बच्चों को सबसे पहले अपना शिकार बनाते हैं। इतना ही नहीं, खिलाड़ी भी स्टेमिना बढ़ाने के लिए मेहनत की बजाए स्टेरॉयड लेने के चक्कर में अपना करियर तबाह करने नहीं चूक रहे हैं। कैलाश प्रकाश स्पो‌र्ट्स स्टेडियम में सैकड़ों बार प्रतिबंधित ड्रग्स की शीशियां पड़ी मिल चुकी हैं।

पार्टी के नाम पर प्रतिबंधित ड्रग्स

शहर के रेस्टोरेंट्स और होटल्स में गुपचुप चलाए जा रहे हुक्का बार में भांग, गांजा और चरस की आड़ में प्रतिबंधित दवाओं को नशे के तौर पर युवाओं तक पहुंचाया जा रहा है। इतना ही नहीं, आजकल गुपचुप होने वाली रेव पार्टियों में प्रतिबंधित ड्रग्स का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें प्रतिबंधित ड्रग्स मसलन एफेटेमिन, मॉर्फिन, केटामाइन, मेथमफेटामाइन, एमडीएमए, डायजेपाम, मंड्रेक्स, पेंटाजोकिन और कॉडिन जैसे ड्रग्स शामिल हैं। खास बात है यह है कि शहर में दूसरे राज्यों से यह ड्रग्स आसानी से पहुंच भी रही हैं और युवाओं के बीच बंट भी रही हैं। ऐसे में पुलिस प्रशासन सबकुछ जानते हुए भी इस धंधे से अंजान बना हुआ है।

बदले ट्रीटमेंट का तरीका

नशे की लत में उलझे हुए युवाओं को नशे की लत से बाहर निकालने के लिए नशा छुड़ाने वाली जिन तकनीकों का यूज किया जाता है। वह भी अब नशे के बदलते ट्रेंड के सामने बेकार हो चुकी हैं। दरअसल, अब नशे के ट्रीटमेंट दिशा और दशा दोनों में सुधार की बेहद आवश्यकता है। विशेषज्ञों की मानें तो ड्रग एडिक्शन से निपटने के लिए सिंगल कोर्स ट्रीटमेंट दिया जाता है। जिसमें नशे के शिकार शख्स को चार से छह हफ्ते तक वैकल्पिक दवाओं से ट्रीटमेंट दिया जाता है। मगर हकीकत में यह ट्रीटमेंट भी अब नशे के शिकार लोगों पर कारगर साबित नहीं हो रहा है। एक बार सही होने के बाद दोबारा युवा नशे की गिरफ्त में आ जाते हैं। इसका सटीक इलाज यही है कि मादक पदार्थों तक लोगों की पहुंच ही न हो, लेकिन कोई व्यक्ति इसकी चपेट में आ ही गया है तो जरूरी है कि उसके मर्ज के निदान को अहमियत दी जाए।

नशा मुक्ति केंद्र में खानापूर्ति

नशे के आदी युवाओं को उनके परिजन नशे की लत से छुटकारा तो दिलाना चाहते हैं, लेकिन अक्सर उन्हें नशा छुड़ाने के लिए सही चिकित्सक, चिकित्सा पद्धति और इलाज यहां तक की शहर में नशा मुक्ति के लिए संचालित सही केंद्रों तक की जानकारी नहीं होती है। कारण, सरकार का खुद इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं है। नशा मुक्ति केंद्रों के प्रचार-प्रसार का अभाव, चिकित्सकों व दवाओं की कमी के चलते नशा से मुक्ति दिलाने के नाम पर बस खानापूर्ति मात्र हो रही है।

नशे के दो प्रमुख कारण होते हैं कि युवा नई चीजों के एक्सपेरिमेंट से हिचकिचता नहीं है। कई बार ड्रग्स का सेवन कर रहे अपने दोस्तों को देखकर भी यंग जनरेशन ट्राई के चक्कर में इसकी आदी हो जाती है। वहीं कई बार लोग सामाजिक दवाब या परेशानियों से उभरने के लिए नशे का सहारा लेने लगते है। मगर नशा धीर-धीरे एक आदत बन जाती है।

डॉ। विकास सैनी, न्यूरो साइकेट्रिस्ट

Posted By: Inextlive