(फॉलोअप)

- जागृति विहार टॉवर मामले में अभी रुका हुआ है काम

- स्थानीय लोगों के अनुसार कभी शुरू कर सकते हैं काम

- घनी आबादी में मोबाइल टावर होने से बच्चों में बढ़ रहा है कैंसर का खतरा

- सेंट्रल गवर्नमेंट की हैं मोबाइल टॉवर लगाने की गाइडलाइन

Meerut : जागृति विहार सेक्टर-7 में इलीगल मोबाइल टॉवर लगाने के मामले में पब्लिक अभी डरी हुई है। स्थानीय लोगों का मत है कि मोबाइल टॉवर माफिया अपने रसूख और रुपयों के दम दोबारा से काम शुरू कर सकता है। ऐसे में स्थानीय लोग पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने के जा रहे हैं। ताकि आगे काम शुरू कर तो पुलिस पर कार्रवाई का दबाव हो।

एकजुट हुई पब्लिक

इलीगल टॉवर के खिलाफ जागृति विहार सेक्टर-7 और 8 की पब्लिक एकजुट हुई है। टॉवर लगाने के वाले खिलाफ कानूनी कार्रवाई कराने के लिए एक पुलिस के आलाधिकारियों के नाम सामूहिक लेटर लिख सिग्नेचर कर दिए हैं। गुरुवार को यह लेटर आलाधिकारियों को दिया जाएगा। स्थानीय निवासी रश्मि सिंह ने बताया कि शिवरात्रि में पुलिस की ड्यूटी लगी होने के कारण मुलाकत होना मुमकिन नहीं था, ऐसे में गुरुवार को यह लेटर दिया जाएगा।

रेडिएशन से होने वाले खतरे

मोबाइल रेडिएशन से लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर, मिस-कैरेज की आशंका भी हो सकती है। फिजिशियन डॉ। राजीव गुप्ता बताते हैं हमारे शरीर में 70 फीसदी पानी है। दिमाग में भी 90 फीसदी तक पानी होता है। यह पानी धीरे-धीरे बॉडी रेडिएशन को एब्जॉर्ब करता है और आगे जाकर सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होता है। इंटरफोन स्टडी में कहा गया कि हर दिन आधे घंटे या उससे ज्यादा रेडिएशन के संपर्क में रहने से 8-10 साल में ब्रेन ट्यूमर की आशंका 200-400 फीसदी बढ़ जाती है।

रेडिएशन कितनी तरह का होता है?

माइक्रोवेव रेडिएशन उन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स के कारण होता है, जिनकी फ्रीक्वेंसी 1000 से 3000 मेगाह‌र्ट्ज होती है। माइक्रोवेव अवन, एसी, वायरलेस कंप्यूटर, कॉर्डलेस फोन और दूसरे वायरलेस डिवाइस भी रेडिएशन पैदा करते हैं, लेकिन लगातार बढ़ते इस्तेमाल, शरीर से नजदीकी और बढ़ती संख्या की वजह से मोबाइल रेडिएशन सबसे खतरनाक साबित हो सकता है। मोबाइल रेडिएशन दो तरह से होता है, मोबाइल टॉवर और मोबाइल फोन से।

रेडिएशन से किसे ज्यादा नुकसान होता है?

डॉ। राजीव गुप्ता के मुताबिक मोबाइल रेडिएशन सभी के लिए नुकसानदेह है लेकिन बच्चे, महिलाएं, बुजुर्गो और मरीजों को इससे ज्यादा नुकसान हो सकता है। बच्चों और किशोरों को मोबाइल पर ज्यादा वक्त नहीं बिताना चाहिए और स्पीकर फोन या हैंडसेट का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि सिर और मोबाइल के बीच दूरी बनी रहे। बच्चों और और प्रेगनेंट महिलाओं को भी मोबाइल फोन के ज्यादा यूज से बचना चाहिए।

रेडिएशन को लेकर क्या हैं गाइडलाइंस?

जीएसएम टावरों के लिए रेडिएशन लिमिट 4500 मिलीवॉट/मी। स्क्वेयर तय की गई। लेकिन इंटरनेशनल कमिशन ऑन नॉन आयोनाइजिंग रेडिएशन (आईसीएनआईआरपी) की गाइडलाइंस जो इंडिया में लागू की गई, वे दरअसल शॉर्ट-टर्म एक्सपोजर के लिए थीं, जबकि मोबाइल टॉवर से तो लगातार रेडिएशन होता है। इसलिए इस लिमिट को कम कर 450 मिलीवॉट/मी। स्क्वेयर करने की बात हो रही है।

किस तरह कम कर सकते हैं मोबाइल फोन रेडिएशन?

- रेडिएशन कम करने के लिए अपने फोन के साथ फेराइट बीड (रेडिएशन सोखने वाला एक यंत्र) भी लगा सकते हैं।

- मोबाइल फोन रेडिएशन शील्ड का इस्तेमाल भी अच्छा तरीका है। आजकल कई कंपनियां मार्केट में इस तरह के उपकरण बेच रही हैं।

- रेडिएशन ब्लॉक ऐप्लिकेशन का इस्तेमाल कर सकते हैं। दरअसल, ये खास तरह के सॉफ्टवेयर होते हैं, जो एक खास वक्त तक वाईफाई, ब्लू-टूथ, जीपीएस या ऐंटेना को ब्लॉक कर सकते हैं।

टॉवर के रेडिएशन से कैसे बच सकते हैं?

- मोबाइल टॉवरों से जितना मुमकिन है, दूर रहें।

- टॉवर कंपनी से एंटीना की पावर कम करने को बोलें।

- अगर घर के बिल्कुल सामने मोबाइल टॉवर है तो घर की खिड़की-दरवाजे बंद करके रखें।

- घर में रेडिएशन डिटेक्टर की मदद से रेडिएशन का लेवल चेक करें। जिस इलाके में रेडिएशन ज्यादा है, वहां कम वक्त बिताएं।

- घर की खिड़कियों पर खास तरह की फिल्म लगा सकते हैं क्योंकि सबसे ज्यादा रेडिएशन ग्लास के जरिए आता है।

- खिड़की दरवाजों पर शिल्डिंग पर्दे लगा सकते हैं। ये पर्दे काफी हद तक रेडिएशन को रोक सकते हैं।

वर्जन

मोबाइल रेडिएशन से लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर, मिस-कैरेज की आशंका भी हो सकती है। हमारे शरीर में 70 फीसदी पानी है। दिमाग में भी 90 फीसदी तक पानी होता है। यह पानी धीरे-धीरे बॉडी रेडिएशन को एब्जॉर्ब करता है और आगे जाकर सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होता है।

- डॉ। राजीव गुप्ता, फिजिशियन

Posted By: Inextlive