दुर्लभ बीमारियों से जुझ रहे रेयांश, आरव और तन्मय समेत मेरठ के कई बच्चे

डॉक्टस्र का कहना, जीनोमिक सिक्वेंसिंग बिगड़ने की वजह से बच्चों में जीनोम संबंधी बीमारियां होती है

Meerut। पति-पत्नी के जीन बिगड़ने से बच्चों में रेयर डिजीज पनप रही हैं। ये बीमारियां खतरनाक हैं। इनका इलाज करवाना भी आसान नहीं हैं। हालांकि इलाज के लिए लाखों-करोड़ों की दवाइयां और थेरेपी के विकल्प ही मौजूद हैं। हाल ही में ब्रह्मपुरी की ईशानी वर्मा में मस्क्यूलर अट्रॉफी टाइप-2 की पुष्टि हुई। जिसके इलाज के लिए टैक्स सहित 22 करोड़ रूपये के इंजेक्शन की दरकार है। इतना ही नहीं, ईशानी के केस के बाद ऐसी ही दुर्लभ और खतरनाक बीमारियों से जूझ रहे कई बच्चों के केस सामने आए हैं।

जिंदगी के लिए बचे सिर्फ नौ महीने

मोदीपुरम निवासी पूर्व एसीएमओ डॉ। अशोक अरोड़ा के नाती रेयांश में भी स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी की पुष्टि हुई है। 9 महीने का रेयांश बीमारी की सबसे खतरनाक टाइप-1 स्टेज से जूझ रहा है। जिदंगी बचाने के लिए 22 करोड़ रुपये (6 करोड़ टैक्स) कीमत का जोलगेंसमा इंजेक्शन लगना है। डॉ। अशोक बताते हैं कि नाती के जीवन को बचाने के लिए सिर्फ 9 महीने का समय है। इस बीच अगर उसे इंजेक्शन नहीं लगता है तो उसे बचाने की संभावनाएं न के बराबर हैं। डॉ। अशोक बताते हैं कि रेयांश का जन्म 2 मई 2020 को हुआ था और उस वक्त वह बिल्कुल ठीक था। उसके 5-6 महीने बाद रेयांश के पैरों में मूवमेंट नहीं हुई। इस संबंध में डॉक्टर्स से संपर्क किया तो उन्होंने आश्वासन दिया। इलाज के लिए फिजियोथेरेपी भी करवाई लेकिन कुछ नहीं हुआ। फरवरी 2021 में दिल्ली के एम्स और गंगाराम अस्पताल में भी जांच करवाई। जांच में स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी टाइप-1 की पुष्टि हुई। बेंगलुरू जाकर जांच कराई तो भी डॉक्टर ने यही समस्या बताई। डॉ। अशोक बताते हैं कि इस स्टेज में बच्चा बिना मदद हिल-डुल नहीं पाता है। वहीं अगर उसे समय पर इंजेक्शन नहीं लगा तो उसकी जान जा सकती है।

डीएमडी से ग्रस्त आरव

मेरठ स्थित किला परीक्षितगढ़ निवासी का आरव ड्यूशेन मस्क्यूलर डिस्ट्रॉफी यानी डीएमडी नाम के जीन डिस्आर्डर से ग्रस्त है। आरव के चाचा सुनील बसंल बताते हैं कि साढ़े तीन साल की उम्र तक आरव ठीक था लेकिन उसके बाद चलते-चलते गिरने लगा। खुद के पैरों पर खड़ा होना उसके लिए लगातार मुश्किल होता गया। डॉक्टर्स को दिखाया तो फिजियोथेरेपी की सलाह दी। उसके बाद भी आराम नहीं मिला तो दिल्ली एम्स में जांच करवाई। वहां आरव में डीएमडी की पुष्टि हुई। सुनील बताते हैं कि आरव की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। सोते हुए दम घुटने लगता है, सांस उखड़ने लगती है। सुनील बताते हैं कि डॉक्टर्स के मुताबिक ये बीमारी 99 प्रतिशत लड़कों को होती है। जबकि मरीज की अधिकतर 11 से 20 साल की उम्र में मौत हो जाती है। वह बताते हैं कि लॉकडाउन में आरव की स्थिति और बिगड़ गई। इस बीमारी का इलाज देश में उपलब्ध नहीं हैं।

डीएमडी से जूझ रहा तन्मय

सरधना निवासी 7 साल के तन्मय भी ड्यूशेन मस्क्यूलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) से जूझ रहा है। करीब 5 साल पहले तन्मय में इसकी पुष्टि हुई। उसके पिता मनीश शर्मा बताते हैं कि तन्मय को चलने में दिक्कत होनी शुरू हुई। इसके बाद जांच आदि करवाने पर पता चला की बेटे को डीएमडी है। देश में प्रॉपर इलाज नहीं हैं। एक एनजीओ इसके सपोर्टिव इलाज का दावा करती है लेकिन उनका खर्च 20 लाख रूपये सालाना है। वह बताते हैं कि उनकी पत्नी के भाई को भी यही दिक्कत थी और करीब 18 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई थी। अभी फिलहाल वह तमिलनाडु मे नेचरोपैथी के जरिए इलाज करवाने की कोशिश कर रहे हैं। मनीष बताते हैं कि इस बीमारी से जूझ रहे काफी बच्चे यहां आते हैं।

ये है ड्यूशेन मस्क्यूलर डिस्ट्रॉफी

ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी या डीएमडी अनुवांशिक बीमारी है। डॉक्टर्स के मुताबिक ये बीमारी छोटे लड़कों में ही होती है। बड़े होते-होते वह पूरी तरह से विकलांग हो जाते हैं और 18 साल अधिकतम तक ही जिंदगी जी पाते हैं। इससे मांसपेशियों में कमजोरी आने लगती है।

नहीं बन पाते प्रोटीन

न्यूरोसर्जन डॉ। संजय बताते हैं कि इंसानी शरीर में जीन मोती की माला की तरह सिक्वेंसिंग में होते हैं.कई बार ये चेन ब्रेक हो जाती है और बीच की कुछ संख्या के जीन डिलीट हो जाते हैं। इससे बॉडी में मांसपेशियों को स्वस्थ रखने वाले प्रोटीन नहीं बना पाते हैं। इसकी वजह से इस तरह की बीमारियां बच्चों में पैदा होती है।

जीनोमिक सिक्वेंसिंग बिगड़ने की वजह से बच्चों में जीनोम संबंधी बीमारियां होती है। माता या पिता किसी एक में दोषपूर्ण जीन होता है। ऐसे में जींस का मिलान होना बहुत जरूरी होता है।

डॉ। अनिल नौसरान, सीनियर माइक्रोबॉयलॉजिस्ट

Posted By: Inextlive