मेरठ में रंगमंच के पितामह शांति वर्मा नहीं रहे

शास्त्रीनगर स्थित आवास पर ली अंतिम सांस, शुगर से थे पीडि़त

सूरजकुंड पर किया अंतिम संस्कार, कलाकारों में शोक की लहर

Meerut। रविवार को अभिनय और रंगकर्म के एक युग का अंत हो गया। थियेटर के नायाब अदाकार, निर्देशक व रंगमंच के पितामह कहे जाने वाले शांति वर्मा ने इस फानी दुनिया को अलविदा कह दिया। वह 75 साल के थे। उन्होंने सिंहासन खाली है, द्रोणाचार्य, राम रहीम जैसे एक से बढ़कर एक उम्दा नाटकों का संचालन कर इप्टा को ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनके निधन से कलाकारों में शोक की लहर है। रविवार को ही सूरजकुंड में उनका अंतिम संस्कार किया गया।

कई नाटक खेले

इंडियन पीपल थियेटर एसोसिएशन (इप्टा) के उपाध्यक्ष शांति वर्मा शुगर की समस्या से पीडि़त थे। शास्त्रीनगर स्थित अपने आवास पर सुबह सात बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके दो बेटे और तीन बेटियां हैं। सूरजकुंड में उनके बेटे हरीश वर्मा ने मुखाग्नि दी। आर्थिक झंझावतों से जूझते हुए भी शांति वर्मा अपने खर्चे से बुद्धा गार्डन में एक स्टेज बनाकर अभिनय करते थे। उन्होंने अपने हुनर और जुनून से थिएटर को एक अलग मुकाम अता किया। उनके निर्देशन में बहुत से नाटक खेले गए। इसमें एक और एक ग्यारह, जलते प्रश्न, राम रहीम, एक और द्रोणाचार्य, किस्सा अजनबी लाश का, सिंहासन खाली है, बाप रे बाप आदि प्रमुख हैं।

एक अभिनय से कई अवार्ड

शांति वर्मा ने पूरे भारत में एक और एक ग्यारह नाटक प्रतियोगिता में ले जाकर 69 अवार्ड हासिल कर कीर्तिमान बनाया था। उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी थियेटर में युवाओं से ज्यादा जोश रखते थे। नाटक राम रहीम में रहीम का रोल करके उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई थी। द्रोणाचार्य में निभाए गए द्रोणाचार्य को भी उन्होंने अपने अभिनय से यादगार बनाया। उनकी डायलाग डिलीवरी गजब की थी।

1957 से इप्टा से जुड़े रहे

मेरठ में 1953 में अभिनेता एके हंगल ने इप्टा की नींव रखी थी। 1957 से शांति वर्मा इस संस्था से जुड़े और हजारों रंगकर्मियों का मार्गदर्शन करते रहे। इप्टा से कई ऐसे कलाकार भी निकले जो बड़े पर्दे तक पहुंचे। जिसमें वेद थापर, मुकुल नाग, गिरीश थापर और अरुण गोविल जैसे कलाकार रहे। इप्टा के बैनर से शबाना आजमी भी जुड़ी रहीं।

Posted By: Inextlive