- विधायक जी अपने दफ्तर मिलेंगे तो पब्लिक की सुनेंगे

- पब्लिक ढूंढ़ती रहती है अपने विधायकों को

Meerut : चुनाव जीत जाने के बाद आखिर विधायक और क्षेत्र के सांसद कहां गुम हो जाते हैं। उन्हें अपने काम कराने के लिए खोजना पड़ता है। अपने क्षेत्र की समस्याओं के बारे में बताने के लिए लाख मिन्नतें कर बुलाना पड़ता है। पहले तो ये सवाल कि वो उन्हें उनके घर पकड़ा कैसे जाए? कहीं वो लखनऊ या पार्टी मीटिंग के लिए कहीं चले तो नहीं गए? अगर विधायक या सांसद मिल भी गए तो उनसे मिलने के लिए कितना इंतजार करना पड़े। बात सुनने के बाद कितने दिनों बाद सुनवाई करें। आज हमने अपने अभियान के 'गण' पर बात की है। आइये आपको भी बताते हैं

जब आए थे वोट मांगने

वर्ष ख्0क्ख् की बात है जब विधायक सत्यप्रकाश अग्रवाल घर-घर जाकर वोट मांग रहे थे। उन्हें तब अपने आप पर इतना भरोसा था कि वर्ष ख्007 के चुनाव के मुकाबले दोगुना वोटों से जीतेंगे। खैर जीते तो लेकिन भ् हजार से भी कम था। कुछ ऐसा ही हाल सिटी के विधायक लक्ष्मीकांत वाजपेयी का भी रहा। उन्होंने भी वोट के लिए अपने क्षेत्र के लोगों के लिए बड़े-बड़े वादे तो किए, लेकिन चुनाव जीतकर अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष क्या बने कि अपने इलाके के लोगों के 'मिस्टर इंडिया' हो गए। जब आई नेक्स्ट के रिपोर्टर आम नागरिक बन इनके कैंप कार्यालयों पर गए तो कुछ इस तरह के सीन सामने आए

पानी तक नहीं मिला पीने को

रिपोर्टर लक्ष्मीकांत वाजपेयी के कैंप कार्यालय न्यू मोहनपुरी पहुंचा तो कार्यालय सुनसान नजर आया। रिपोर्टर अंदर गया तो देखा कि टीशर्ट और जींस पहनकर अधलेटा पीओन टीवी देख रहा था। आइए बताते हैं कि दोनों में क्या बातचीत हुई

रिपोर्टर : विधायक जी हैं क्या?

पीओन : नहीं, आप बताइये?

रिपोर्टर : कब तक आएंगे भाई साहब?

पीओन : वो तो शहर में नहीं लखनऊ में है।

रिपोर्टर : पानी मिलेगा क्या? गला सूख रहा है। बहुत गर्मी आज?

पीओन : पानी तो नहीं है। आप आए कहां से हैं।

रिपोर्टर : मैं यहीं ब्रह्मपुरी से हूं। वैसे विधायक जी कब से नहीं हैं और कब आएंगे?

पीओन : वो तो पिछले दो हफ्तों से मेरठ में नहीं है। तीन चार दिन में ही वापस लौटेंगे।

नहीं था रजिस्टर मेंटेन

रिपोर्टर वापस लौट गया। न तो उसकी समस्या के बारे में पूछा गया। न ही ऐसा कोई रजिस्टर मेंटेन था, जिसमें फरियादी आने वाले का नाम, एड्रेस, फोन नंबर और समस्या लिखी जा सके। अब रिपोर्टर सीधा कैंट विधानसभा क्षेत्र के विधायक सत्यप्रकाश की ओर चल पड़ा।

बाहर से ही टरका दिया

रिपोर्टर वाया दिल्ली रोड होते गुरुनानक से महावीर नगर लोगों से पूछता हुआ कैंट विधानसभा के विधायक के घर पर पहुंचा। घर के बाहर ही विधायक के घर में काम करने वाला लड़का मिला। हमने विधायक जी के बारे में पूछा। आइए आगे आपको यहां की बातचीत का पूरा ब्यौरा देते हैं

रिपोर्टर : विधायक घर में हैं क्या?

कर्मी : नहीं है? बताइये कहां से आए हैं?

रिपोर्टर : सदर से आया हूं। उनसे कुछ काम था।

कर्मी : वो घर पर नहीं है। हां मेरठ में ही हैं।

रिपोर्टर : कब तक आएंगे?

कर्मी : पता नहीं कब तक आएंगे। कुछ काम है तो फोन नंबर ले लीजिए। बात कर लीजिए मिलने का टाइम मिल जाएगा।

नाम और काम भी नोट किया

उसके बाद कर्मी अंदर चला जाता है और अंदर से गेट बंद कर देता है। कर्मी ने मिलने आए रिपोर्टर रूपी फरियादी को को अंदर बैठाने की जरुरत महसूस नहीं की। न ही नाम और काम ही नोट किया। इस बात से आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आम लोगों का किस तरह से काम होता होगा।

लापतागंज नहीं है ये

समय पर न मिलने वाले इन विधायकों को इस बात का अहसास कराना काफी जरूरी है कि उनके क्षेत्र के लोग लापतागंज में नहीं रहते हैं। उन्हें भी उनके ही कीमती वोट द्वारा चुने गए नेताओं से मिलने का पूरा हक है। उन्हें भी बात पूछने की पूरी आजादी है कि उनके घर बाहर की सड़क क्यों नहीं बनी हैं? उनकी हर समस्या को दूर करने का कर्तव्य है। लेकिन अपने कार्यालयों और अपने क्षेत्र से लापता ये विधायक इस बात को नहीं समझते हैं।

वर्जन

मुझे आज तक अपने विधायक के घर के बारे में जानकारी नहीं है। अब तो उन्हें काफी दिनों से शहर में देखा ही नहीं है। टीवी पर कभी-कभी दिख जाते हैं।

- मनीष शर्मा, हापुड़ अड्डा

जब जीते थे तो एक बार दिखाई दिए उसके बाद तो लगता है कि उन्होंने अपने शहर से नाता ही तोड़ लिया। जिन लोगों ने उन्हें वोट दिया एक बार तो उनके बारे में सोचना चाहिए।

- राघुवेंद्र सिंह, बच्चा पार्क

अब अपने विधायकों के बारे क्या कहना? सब एक जैसे हैं। फिर चाहे वो किसी भी पार्टी का हो। जीतने के बाद कोई पब्लिक को पूछने नहीं आता है।

- साहिल कपूर, घंटाघर

मुझे अपने विधायक के घर की कोई जानकारी नहीं है। एक बार पता करने की कोशिश की तो उनके पार्टी के लोग भी नहीं दिखाई दिए।

- शारिक कुरेशी, मकबरा डिग्गी

एक बार गया था। लेकिन अपने घर पर नहीं थे। कहा कि लखनऊ गए हैं। न तो किसी ने मेरी परेशानी पूछी और न ही ये जानने की कोशिश की कि मैं कहां से आया हूं।

- शशांक भारद्वाज, सुभाष बाजार

विधायक जी तो हमारे इलाके में तो कभी दिखाई ही नहीं दिए। कभी कोई काम भी होता है तो मोहल्ले नेताओं से सिफारिश लगानी पड़ती है।

- सचिन त्यागी, पीएल शर्मा रोड

थापर नगर से एकतरफा वोट कहां जाता है, ये मुंह से बताने से की कोई जरुरत नहीं। फिर भी विधायक जी को हमारे यहां आने की कोई फुर्सत नहीं है।

- अमित शर्मा, थापर नगर

वैसे तो मैं अपने अंकल को जो काम होता है बोल देता है वो करा लाते हैं। लेकिन विधायकों को इस बारे में सोचना चाहिए कि वो अपने क्षेत्र में घूमे लोगों की परेशानी के बारे में जाने।

- अनुज गौतम, साकेत

बहुत कम आते हैं विधायक जी। वैसे कोई काम कहो तो मना नहीं करते हैं। लेकिन वो पब्लिक की परेशानी जानने के लिए रुटीन में आते रहे तो ठीक रहेगा।

- गौतम त्यागी, कंकरखेड़ा

Posted By: Inextlive