शहर के मेडिकल कॉलेज की सुपर स्पेशलिटी की बिल्डिंग जर्जर हो गई है। खास बात यह है कि इस बिल्डिंग को बनाने में 150 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। सालभर में स्वास्थ्य विभाग के दावे बेमानी से हो गए हैं। वजह सुनेंगे तो आप भी हैरान हो जाएंगे। जी हां अधिकारियों का कहना है कि बंदरों के कारण बिल्डिंग जर्जर हो रही है। यानि मेडिकल प्रशासन अपनी खामियों को बंदर के नाम पर छुपाना चाह रहा है।

मेरठ (ब्यूरो)। साल 2016 में इस सुपर स्पेशयलिटी ब्लॉक की नींव रखी गई थी। बीते साल इसका लोकार्पण किया गया था। हालत यह है कि कभी एक्सपर्ट डॉक्टर तो कभी स्टाफ की कमी के कारण सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक का संचालन अधूरा रहा। अब रखरखाव में लापरवाही का ठीकरा भी बंदरों के सिर पर फोड़ा जा रहा है। बिल्डिंग की हालत यह है कि जगह-जगह उखड़ती फॉल सीलिंग, टूटे शीशे और सेंट्रल एसी से टपकता पानी विभाग की गंभीरता को दर्शा रहा है।

आखिर सिक्योरिटी का क्या काम
गौरतलब है कि मेडिकल कॉलेज में प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) के तहत 150 करोड़ रुपये से सुपर स्पेशियलिटी ब्लाक 2019 मेंं तैयार किया गया था। इसमें 75 करोड़ रुपए इस इमारत को बनाने में लगे थे। पहले तो बिल्डिंग में खामियों के कारण इसका उदघाटन नहीं हो पाया। इसके बाद यह कोरोना की भेंट चढ़ गया। कोविड काल में इसे कोविड-19 लेवल-3 अस्पताल में तब्दील करना पड़ा था। गत वर्ष आम जन के लिए ब्लॉक का लोकार्पण तो किया गया, लेकिन सुविधाएं मुहैया नहीं कराईं गईं। अब अधिकारियों की मानें तो बंदर आए दिन सुपर स्पेशयलिटी ब्लॉक में तोडफ़ोड़ करते रहते हैं। इन बंदरों से मरीज भी परेशान है और ब्लॉक की हालत जर्जर होती जा रही है। मेडिकल कालेज के प्रभारी का दावा तो यही है। जबकि यहां 24 घंटे सिक्योरिटी गार्ड मौजूद रहता है।

सुविधाएं भी अभी तक अधूरी
दावा है कि मेडिकल कॉलेज के सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक को मिनी एम्स की तर्ज पर तैयार किया गया है। लेकिन हकीकत बिल्कुल जुदा है। करीब 71 करोड़ रुपये के काम अभी तक अटके हुए हैं। कार्डियोथोरेसिक व वैस्कुलर सर्जरी, रिकंस्ट्रक्टिव व प्लास्टिक सर्जरी, नेफ्र ो सर्जरी आदि से जुड़े हुए कई महत्वपूर्ण उपकरण भी इस ब्लॉक को अभी तक नही मिल पाए हैं।

ये विशेष सुविधाएं अभी तक अटकीं
- गुर्दे के मरीजों के लिए नेफ्रोलॉजी ओपीडी व नेफ्रो सर्जरी

- दिल के मरीजों के कार्डियोलॉजी विभाग

- दिल के मरीजों की जांच के लिए कैथ लैब

- दिल की सर्जरी के कार्डियोथोरोसिक व वस्कुलर सर्जरी

- बच्चों के लिए पीडियाट्रिक ओपीडी व पीडिया सर्जरी

- जले हुए मरीजों के लिए रिकंस्ट्रक्टिव व प्लास्टिक सर्जरी

- कैंसर के मरीजों के लिए रेडियो थेरेपी
- एमबीबीएस की 50 सीटें कम हो गई

बंदरों को रोकने का लगातार प्रयास किया जा रहा है। लेकिन मेडिकल कालेज में बंदरों की समस्या आम समस्या है। काफी नुकसान पहुंचाते हैं बंदर। सुपर स्पेशिलिटी में कई सुविधाएं मरीजों को मिल रही है। बाकी जल्द शुरु की जाएंगी।
- डॉ आरसी गुप्ता, प्राचार्य

Posted By: Inextlive