Meerut : देश में सबसे पॉपुलर सीएम और नमो के नाम से मशहूर हो चुके नरेंद्र मोदी की रैली में शामिल होने और उनके भाषण को सुनने को के लिए कई जिलों के लोग आए. हजारों लोगों ने बसों का सहारा लिया तो हजारों लोग अपनी प्राइवेट गाडिय़ों से भी आए. रैली स्थल पर जाने के लिए लोगों ऐसे जाना पड़ रहा था जैसे कि किसी धार्मिक स्थल पर जाने के लिए पदयात्रा कर रहे हों. जी रैली स्थल से करीब तीन चार किलोमीटर की दूरी पर इतना जाम लगना शुरू हो गया था कि लोगों को पैदल ही रैली स्थल तक जाना पड़ा.


एंट्री करते ही जाम जैसे ही शताब्दी नगर के अंदर मेन गेट से एंट्री की तो कुछ दूर आगे आते ही लोगों को ट्रैफिक जाम से सामना करना पड़ गया। बसों की लंबी कतार को देखते हुए ऐसा लग रहा था कि पूरे दिन भी लग जाए तो ये जाम हटने वाला नहीं है। शताब्दी नगर के अंदर जितनी भी लिंक रोड गाडिय़ों से अटी हुई थी। बुलंदशहर से अपनी प्राइवेट गाड़ी में आए दिनेश रस्तोगी का कहना है कि इस जाम का इंतजार करना बेकार है। सोच रहा हूं कि यहीं आसपास गाड़ी को पार्क यूं ही पैदल चल पड़ूं।नमो को समर्पित ये पदयात्रा


भारी ट्रैफिक को देखते हुए लोगों ने जहां भी साइड देखी और अपनी गाड़ी और बस पार्क कर दी और पैदल ही रैली स्थल तक पहुंचने ही ठान ली। आपको बता दें कि रैली स्थल तक पहुंचने के लिए लोगों को करीब तीन किलोमीटर तक लंबा रास्ता पैदल तय करना पड़ा। मुजफ्फरनगर से करीब 75 साल के रतन सिंह हाथ में लाठी लिए जा रहे थे। उन्होंने कहा कि मोदी को सुनने के लिए तीन किलोमीटर तो क्या पांच और 10 किलोमीटर भी पैदल चलने पड़ता तो भी चलते। मुझे कोई  थकान नहीं हो रही है।'नमो' ने बुलाया है

आपने कभी श्रद्धालुओं को एक साथ किस धार्मिक स्थल पर पदयात्रा करते हु देखा है। जी हां, शताब्दी नगर की सड़कों पर कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा था। लोगों का शोर और नरेंद्र मोदी के नारे ऐसे प्रतीत हो रहे थे जैसे कोई भजन गा रहे हो कि 'चलो बुलावा आया है, मोदी ने बुलाया है'। हर मोड़ और चौराहे पर लोगों की भीड़ आपस में मिल रही थी। और संख्या हर दो मिनट में दोगुनी हो रही थी।सिर्फ नमो के लिए पैदल चलकर जाने वालों में ट्वेल्थ बोर्ड का एग्जाम देने जा रहे रिठानी का विवेक त्यागी था। उनसे पूछा गया तो कहा कि मैं सिर्फ नमो को सुनने के लिए आया हूं। अगर कुछ घंटे तैयारी नहीं करूंगा तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उसने आगे कहा कि मुझे नहीं पता कि आगे मोदी को सुनने का मौका कभी मिले न मिले? मोदी मेरठ में कब आए? फिर अगर थोड़ा पैदल चलना भी पड़ रहा है तो कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।

Posted By: Inextlive