Meerut : बंगला नंबर 167 अपने आप ही में एक विरला केस होता जा रहा है. पहले तीन दिनों तक लगातार सुनवाई टलना. फिर उसके बाद जज द्वारा चार से पांच घंटे तक वेट कराना अब. लगातार साढ़े चार घंटों तक बहस और शुक्रवार को भी बहस जारी करने के निर्देश. कैंट बोर्ड के अधिकारियों की माने तो अपोजिट पार्टी की ओर से किसी तरह एक भी ऐसा प्वाइंट निकल पा रहा है जिससे उनकी बात साबित हो सके. वहीं डबल बेंच को भी इस बात की परेशानी हो रही है कि एक दम से सिंगल बेंच के जजमेंट के अपोजिट फैसला दे सके.


जारी रहेगी बहसगुरुवार को बंगला 167 के मामले में सुनवाई हुई। जिसमें करीब साढ़े चार घंटों तक बहस चली। कैंट बोर्ड के अधिकारियों की माने तो कोर्ट द्वारा जो डॉक्युमेंट मंगाए थे। उन्हें पूरी तरह से स्टडी किया और उसके बाद अपोजिट पार्टी  से सफाई मांगी। अपोजिट पार्टी अपने बचाव में ठीक से सफाई नहीं दे पाई। वैसे कोर्ट ने बहस को अगले दिन भी जारी करने के निर्देश दिए हैं।  आखिर इतनी देरी क्यों?
जानकारों की माने तो बंगला नंबर 167 में दिल्ली हाईकोर्ट डबल बेंच का जजमेंट हो जाना चाहिए था। आखिर इतनी देरी क्यों हो रही है? एक सवाल ये भी है क्या कोर्ट अपने सिंगल बेंच के जजमेंट को विरुद्ध इतनी जल्दी फैसला नहीं देना चाहती? वहीं एक सवाल ये भी उठ रहा है कि अपोजिट पार्टी के एडवोकेट काफी सीनियर हैं। उनका भी कुछ असर भी कोर्ट पर है। वैसे वकीलों की माने तो हाईकोर्ट जज के फैसलों और उनकी जजमेंट करने में देरी पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। जब तक वो दोनों पार्टी को ठीक से नहीं सुन लेते और पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो जाते। तब तक वो कोई जजमेंट नहीं देते हैं।ये है मामला


वर्ष 2008 में कैंट बोर्ड ने बंगला नंबर 167 पर सिनेमाघर बनाने का नक्शा पास कर दिया था। जिसपर सरकार ने वो नक्शा इसलिए रिजेक्ट कर दिया कि बंगला आवासीय है और चेंज ऑफ पर्पस के तहत सिनेमाघर नहीं बनाया जा सकता। जिसके खिलाफ वादी कोर्ट में चला गया। कोर्ट ने सरकार को केस दोबारा सुनने और फैसला सुनाने को कहा। सरकार ने अपना फैसला नहीं बदला। वादी इस फैसले पर तीन बार कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अंतिम बार कोर्ट ने वादी की रिट एक्सेप्ट कर ली। जिसके गवर्नमेंट दिल्ली हाईकोर्ट चीफ जस्टिस बेंच में अपील की।'हमने अपने सारे प्वाइंट कोर्ट के सामने रख चुके हैं। बहस अभी जारी है। कोर्ट अपना फैसला कब सुनाएगा वो कोर्ट ही बता सकता है.'- डॉ। डीएन यादव, सीईओ, कैंट बोर्ड 'जब तक कोर्ट दोनों पार्टियों की बातों से संतुष्ट नहीं हो जाता और दोनों पार्टी अपनी पूरी बातें नहीं रख लेती तब तक कोर्ट अपना फैसला नहीं सुनाती है। अब कोर्ट अपना फैसला तुरंत सुना दे या रिर्जव कर दें। ये उसके ऊपर है.' - विपिन सोढ़ी, एडवोकेट

Posted By: Inextlive