Meerut: सीसीएसयू कैंपस में फिजा बदली बदली सी है. कैंपस में चुनावी माहौल गरमाने लगा है. लेकिन आज से दस साल पहले स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन का कैंपन कुछ अलग ही तरह से हुआ करता था. एक दशक के अंतराल में सब कुछ बदल गया है. एक दशक पहले चुनाव से पहले सभी को एक सामान मंच प्रदान किया जाता था. छात्र संघ में नॉमिनेशन से पहले या नॉमिनेशन के बाद प्रेसीडेंशियल डिबेट हुआ करती थी.


पूर्व यूनियन होती थी एक्टिवजानकार बताते हैं कि पहले भले ही स्टूडेंट्स फक्कड़ की तरह घूमते फिरते हों, लेकिन जब बात स्पीच देने की आती थी तो सभी एक से बढ़ कर एक स्पीच देते थे। सभी धुरंधर वक्ता थे। इतना ही नहीं स्टूडेंट्स भी प्रेसीडेंशियल डिबेट कराते थे। पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष या महामंत्री भी इसके लिए एक्टिव रहते थे।क्या है प्रेसीडेंशियल डिबेटआज की डेट में कैंपस में पढ़ रहे नए स्टूडेंट्स को प्रेसीडेंशियल डिबेट के मायने भी नहीं पता। यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष रवि प्रकाश बताते हैं कि कैंपस में चुनाव से पहले लाइब्रेरी के सामने प्रेसीडेंशियल डिबेट आयोजित किया जाता था, जिसमें प्रेसीडेंट पद के सभी उम्मीदवार अपने पैनल के साथ मौजूद रहते थे। इसमें यूनिवर्सिटी के कुछ निष्पक्ष प्रोफेसर और सभी स्टूडेंट मौजूद रहते थे।बताते थे एजेंडा
यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट और छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष रहे डॉ। स्नेह वीर पुंडीर बताते हैं कि इस दौरान सभी कैंडीडेट अपनी अपनी दावेदारी दमखम के साथ पेश करते थे। अपना एजेंडा बताते थे। इसी दौरान सभी स्टूडेंट ये तय कर लिया करते थे कि किसकी क्या विचारधारा है और किसे वोट देनी है। स्पीच के बाद सवाल जवाब हुआ करते थे, जिसमें एक स्टूडेंट या यूनिवर्सिटी कर्मचारी एक बाक्स लेकर स्टूडेंट्स के बीच मौजूद रहता था।स्टूडेंट पूछते थे सवालसभी स्टूडेंट अपने सवाल एक कागज पर लिखकर मंच पर भिजवा दिया करते थे। जिस प्रत्याशी के लिए ये सवाल हो उसे जवाब देना होता था। जानकार मानते हैं कि ये एक स्वस्थ्य परंपरा थी, लेकिन पिछली सरकार के दौरान बंद रहे चुनाव जब बीते सत्र में शुरू किए गए तो ये परंपरा खत्म कर दी गई। न तो किसी टीचर ने न ही किसी स्टूडेंट ने इसकी मांग की। इस साल भी यही हो रहा है। पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष संजीव दुर्जन ने भी अभी तक प्रेसीडेंशियल डिबेट की डिमांड नहीं की है।जेएनयू में भी होती है डिबेटजेएनयू के उर्दू डिपार्टमेंट के स्टूडेंट ठाकुर कमल प्रताप का कहना है कि जेएनयू में भी प्रेसीडेंशियल डिबेट होती है। वो बताते हैं कि वहां पर चुनाव सीसीएसयू की तरह जातिवाद पर नहीं होता। वहां पर सबसे ज्यादा मेहनत प्रचार सामग्री बनाने में की जाती है। स्टूडेंट अपने पैनल को जीताने के लिए लगातार दो रात तक जगकर पोस्टर और पेंप्लेट तैयार करते हैं, वॉल पेंटिंग करते हैं। प्रेसीडेंशियल डिबेट की बाकायदा तैयारी की जाती है। इसके अलावा अन्य पदों पर भी डिबेट आयोजित होती है।

Posted By: Inextlive