2018 में रिवाइज किया गया था दंगा नियंत्रण प्लान

शहरभर में प्लान के आधार पर नहीं हुई थी तैनाती

अधिकारियों ने नहीं किया सूचनाओं का अपडेट

Meerut। दस मिनट में दंगा नियंत्रण और आकस्मिक स्थितियों से निपटने के लिए पुलिस-प्रशासन का दंगा नियंत्रण प्लान दगा दे गया। मेरठ में 20 दिसंबर को सीएए के विरोध में हुए दंगों के दौरान यह प्लान एक्टिव था, किंतु कारगर साबित नहीं हो सका। रविवार को डीएम अनिल ढींगरा ने स्थिति नियंत्रण में आने के बाद एक बार फिर प्लान को रिवाइज किया और अधिकारियों की तैनाती सुनिश्चित की।

यह था प्लान

प्रदेश में सांप्रदायिक दृष्टिकोण से मेरठ सर्वाधिक संवेदनशील है। इसको ध्यान में रखते हुए पुलिस-प्रशासन ने शहर क्षेत्र में दंगा नियंत्रण के लिए एक फुलप्रूफ प्लान तैयार था। जिसमें पुलिस सूचना मिलने पर महज 10 से 15 मिनट में ही दंगाइयों से निपटने को तैयार रहनी थी। डीएम अनिल ढींगरा के निर्देशन में अक्टूबर 2018 में पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों की भागेदारी से संयुक्त दंगा नियंत्रण योजना तैयार की गई थी। इस योजना के तहत मेरठ के संवेदनशील क्षेत्रों में प्वाइंट्स पर थाना पुलिस के साथ-साथ एक प्रशासनिक अधिकारी की तैनाती होनी थी। अधिकारियों को निर्देश थे कि वे अपने तैनाती क्षेत्र में समय-समय पर रिहर्सल करेंगे।

ऐसा बना था प्लान

डीएम के निर्देशों के मुताबिक ऐसी व्यवस्था बहाल करें कि आपात स्थिति में कम्युनिकेशन गैप न रहे।

आकस्मिक स्थिति में एक स्पॉट पर जोनल और सेक्टर अधिकारी दंगा नियंत्रण के लिए आवश्यक सामग्री को एकत्र कर सकें।

सभी जोनल और सेक्टर मजिस्ट्रेट संबंधित पुलिस जोन प्रभारी से समन्वय स्थापित कर संवेदनशील बिंदुओं पर सतर्कता बरतें।

संवेदनशील 10 थाना क्षेत्रों में एक-एक सुपर जोनल मजिस्ट्रेट की तैनाती होनी थी।

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यह हैं संवेदनशील थाने

थानाक्षेत्र जोन सेक्टर

लिसाड़ी गेट 5 15

कोतवाली 3 9

देहलीगेट 2 6

ब्रह्मापुरी 4 12

टीपी नगर 2 2

रेलवे रोड 2 6

सदर बाजार 1 4

लालकुर्ती 1 4

सिविल लाइंस 2 6

नौचंदी 2 6

मेरठ शहर सीमा के अंतर्गत 10 थाना क्षेत्रों के लिए दंगा नियंत्रण स्कीम बनाई गई है। इसमें पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों को जोनल और सेक्टरवार तैनाती दी गई है। एक बार फिर इस प्लान को रिवाइज किया जा रहा है। तैनाती क्षेत्र में हो रही गतिविधियों की रिपोर्ट न देने पर अफसरों से जबाव-तलब होगा।

अनिल ढींगरा, डीएम, मेरठ

पुलिस पहले रिहर्सल करती तो रुक सकता था बवाल

यदि पुलिस समय-समय पर दंगा नियंत्रण रिहर्सल करती तो जुमे की नमाज के बाद हुए बवाल में पुलिस को बैकफुट पर नहीं आना पड़ता। पुलिस के पास उपद्रवियों से निपटने के लिए कोई भी प्लान नहीं था। यही वजह रही कि उपद्रवी पुलिस पर दोपहर से लेकर रात तक हावी रहे।

रिहर्सल से होती है ट्रेनिंग

दंगा नियंत्रण की रिहर्सल करने के कई फायदे होते हैं। एक तो पुलिस को बवालियों के साथ किस तरह से पेश आना है, किस तरह से उपद्रवियों को जवाब देना है या बवाल वाली कंडीशन में मानसिक नियंत्रण नहीं खोना है आदि की प्रैक्टिस की जाती है। यहां तो कई सालों से रिहर्सल ही नहीं हुई। यही वजह है कि यहां पर जुमे की नमाज के बाद शहर के जो हालत बने, खुलेआम गोलियां और मेन रोड से पथराव हुआ और पुलिस उसको कंट्रोल करने में नाकाम साबित हुई।

पुलिस समय-समय पर रिहर्सल करती रहती है। पुलिस पूरी तरह सक्रिय थी। अयोध्या प्रकरण से पहले भी रिहर्सल किया गया था।

डॉ। अखिलेश नारायण सिंह, एसपी सिटी, मेरठ

Posted By: Inextlive