रोडवेज बस ड्राइवर्स की आंख में मिली कलर ब्लाइंडनेस की बीमारी

जन्मजात कलर ब्लाइंडनेस के बाद भी फर्जी सर्टिफिकेट से पाई नौकरी

Meerut। कलर ब्लाइंडनेस की बीमारी वाले ड्राइवर रोडवेज बसों का संचालन कर रहे थे। जी हां, यह बात बीते दिनों हुए उनके नेत्र परीक्षण में सामने आई है। जांच में मेरठ रीजन के तकरीबन 18 केस ऐसे सामने आ चुके हैं जिनमें कलर ब्लाइंडनेस की पुष्टि हुई है। अब सवाल उठ रहे हैं कि जब कलर ब्लाइंडनेस जन्मजात बीमारी है तो ऐसे अनफिट ड्राइवर की भर्ती कैसे हो गई। जाहिर तौर पर ज्वाइनिंग के दौरान ऐसे ड्राइवर्स ने फर्जी फिटनेस सर्टिफिकेट जमा किए थे।

जन्मजात कलर ब्लाइंडनेस

दरअसल, कलर ब्लाइंडनेस यानी वर्णाधता आंखों से संबंधित वह समस्या है, जिनमें पीडि़त नीले, पीले, लाल और हरे रंगों के बीच अंतर या पहचान नहीं कर पाता है। यह रोग वंशानुगत या अनुवांशिक यानि जन्म से होता है। इस रोग का पीडि़त सबसे अधिक लाल और हरे रंग में अंतर नही कर पाता है। लेकिन जिन चालकों को रंगों के पहचान ही नही है वे ट्रैफिक सिग्नल को कैसे पहचानते होंगे। ऐसे में ये चालक पिछले कई सालों से यातायात के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए रिस्क पर बस का संचालन कर रहे हैं। हालांकि विभाग अभी इस मामले में जांच अधूरी बताकर खामी छुपाने में जुटा है।

हो रहा स्वास्थ्य परीक्षण

यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा के लिए परिवहन विभाग द्वारा रोडवेज बसों की नियमित जांच से लेकर रीजन के सभी चालकों का स्वास्थ्य परीक्षण कार्यक्रम चल रहा है। पिछले माह से शुरु हुए इस स्वास्थ्य परीक्षण में चालकों के नेत्र परीक्षण से लेकर मानसिक और शारीरिक जांच की जा रही है। जो चालक अनफिट हैं उन्हें आवश्यक परामर्श के साथ इजाज की सुविधा भी दी जा रही है लेकिन इस बीच कुछ जांच में कुछ चालक ऐसे भी सामने आ रहे हैं जिनको जन्मजात कलर ब्लाइंडनेस रोग है लेकिन बावजूद इसके उनको रोडवेज में चालक की डयूटी पर लगा दिया गया। यानि

टीम कर रही जांच

जुलाई से 15 अगस्त तक मेरठ रीजन के पांचों डिपो में रोजाना चालकों के स्वास्थ्य की जांच कराई जा रही है। सीएमओ ऑफिस के डॉक्टर्स की टीम रोजाना अलग अलग डिपो में जांच कर रही है। ऐसे में चालकों की आंखों की जांच, मानसिक स्थिति, शारीरिक फिटनेस की जांच की जा रही ताकि सफर के दौरान सुरक्षित हाथों में बस का स्टेयरिंग रहे। जांच में मोतियाबिंद से लेकर रिफेक्टिव इंडेक्स, कलर ब्लांइडनेस जैसी समस्याएं चिकित्सकों को मिल रही है। इन बीमारियों की पहचान के बाद चालकों को उनकी वर्तमान शारीरिक क्षमता के अनुसार डयूटी दी जा रही है।

15 अगस्त तक यह स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा। इसलिए अभी तक पूरी हेल्थ रिपोर्ट तैयार नही हुई है तो यह नही कहा जा सकता कि कितने चालकों में क्या क्या बीमारी मिली। मोतियाबिंद और कलर ब्लांइडनेस के केस सामने आ रहे हैं लेकिन उनकी रिपोर्ट आने के बाद राज्य चिकित्सक परिषद में पुष्टि के लिए दोबारा भेजा जाएगा उसके बाद ही कुछ निर्णय लिया जाएगा।

नीरज सक्सेना, आरएम

कलर ब्लाइंडनेस एक जन्मजात रोग है लेकिन सीएमओ कार्यालय द्वारा ऐसे चालकों को फिटनेस प्रमाण पत्र कैसे जारी किया गया यह जांच का विषय है। हो सकता है कि उनका नेत्र परीक्षण उस समय न किया गया हो।

डॉ। राजकुमार, सीएमओ

Posted By: Inextlive