घर से ही शुरु किया स्पो‌र्ट्स गुड्स का कारोबार

लॉकडाउन में बंद हो गया था जनरेटर का कारोबार

कारोबार बंद होने से मानसिक तनाव में आ गए थे दीपांशु के पिता

Meerut। इस साल लॉकडाउन ने लोगों की जिंदगी में अच्छे और बुरे बदलाव किए हैं। अच्छे बदलाव भले ही कम लोगों की जिंदगी में रहे हो, लेकिन वह बदलाव आज दूसरों के लिए सीख बनते जा रहे हैं। लॉकडाउन में कई कारोबारियों के कारोबार बुरी तरह फ्लॉप होकर खत्म हो गए, लेकिन उन्होंने निराश होने के बजाए अपने कारोबार की दिशा ही बदल दी। इसके बाद सफलता की नई इबारत लिखी। ऐसी ही कहानी है शहर जनरेटर कारोबारी अजीत शर्मा की। लॉकडाउन के कारण उनका बिजनेस ठप हो गया। होटल, बैंक्वेट हॉल, इवेंट पर बंद थे तो रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया। तो अजीत डिपे्रशन में आ गए, लेकिन इसी दौर में उनके बेटे दीपांशु ने हिम्मत नहीं हारी और पिता के ठप हो चुके बिजनेस को नई दिशा दी। उन्होंने घर पर ही स्पो‌र्ट्स बैट बनाने का छोटा कारखाना शुरु किया। अब तकरीबन छह माह की मेहनत के बाद 25 साल के दीपांशु खुद स्पो‌र्ट्स इंड्रस्टी का संचालन कर रहे हैं। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के साथ दीपांशु ने अपने संघर्ष के दिनों की कहानी को कुछ यूं शेयर किया।

लॉकडाउन से बिजनेस ठप

मार्च में लॉकडाउन के कारण मेरे पापा अजीत शर्मा का जेनरेटर का बिजनेस ठप हो गया था। बैंक्वेट हॉल, इवेंट, शादी विवाह आदि कार्यक्रमों पर रोक लग गई थी, जिससे पापा का बिजनेस तो पूरी तरह से बंद हो गया था। घर में एक पैसे की आमदनी नहीं थी। इस कारण पापा काफी डिप्रेशन में आ गए थे। उनकी हालत देखकर मुझे बहुत मायूसी होती थी, हालांकि, मेरी उम्र महज 25 साल की थी और मैं बायोलॉजी से बीएससी कर रहा हूं, लेकिन घर में जब आमदनी का कोई जरिया नहीं रहा तो मैंने भी आपदा में अवसर खोजने का प्रयास किया।

जॉब करने की थी चाहत

वैसे तो मेरी जॉब करने की चाहत थी, लेकिन घर की परिस्थितियां मुझे कुछ अलग करने की प्रेरणा दे रहीं थीं। लॉकडाउन ने मेरे जीवन के उद्देश्य को ही बदल दिया। लॉकडाउन से पापा का जेनेरेटर का अच्छा खासा काम था। लेकिन लॉकडाउन में आमदनी एकदम से बंद हो गई। जेनरेटर का किराया आना तो दूर, पिछला बकाया भी नहीं मिला। इससे पापा परेशान रहने लगे, लिहाजा मैंने उनका हाथ बंटाने की सोची। इसके लिए अपने मकान में कमरे के अंदर बैट बनाने का छोटा कारखाना तैयार किया। और थोड़ा बहुत काम शुरू कर दिया।

कमरे से गोदाम का सफर

मैने हिम्मत नहीं हारी, काम भी धीरे धीरे चल निकला। मेरे पापा ने भी सपोर्ट किया तो स्पो‌र्ट्स गुडस मार्केट में पहचान भी बनने लगी। कम जगह में कम लेबर के साथ मात्र तीन कमरों में ही जुलाई में बैट बनाने का छोटा का कारखाना शुरु किया था। शुरुआत में मार्केट में डिमांड सप्लाई के गैप को समझा। कई खरीदारों से संपर्क किया। पहले लोकल मार्केट में ही छोटे छोटे आर्डर लिए फिर उनको समय से पूरा किया। आर्डर बढ़ने लगे। अभी पिछले छह माह में यूपी के कई जिलों में आर्डर आना शुरु हो गए हैं। आर्डर के अनुसार ही माल तैयार करने के लिए लेबर बढ़ाने और बड़ी जगह पर फैक्ट्री शिफ्ट करने पर अब काम चल रहा है।

बढ़ रही मार्केट

मैं अक्सर कहता हूं कि जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए, मुश्किलों से ही आपके लिए सफलता के रास्ते खुलते हैं। जिसका सीधा सा उदाहरण मैं ही हूं। अब मैं बैट के साथ-साथ जिम इक्यूपमेंटस बनाने पर भी काम कर रहा हूं। बिजनेस में शुरूआती दौर में दिक्कत आती है लेकिन मेहनत और हौसले से हसरतें पूरी जरूर होती हैं।

प्रोफाइल

दीपांशु शर्मा

उम्र- 25 साल

शिक्षा- बीएससी बायो

जुलाई माह में घर के सेकेंड फ्लोर पर खुद का स्पो‌र्ट्स कारोबार शुरु किया

यूपी समेत आसपास के प्रदेशों में हो रही बैट की सप्लाई

Posted By: Inextlive