वर्कर न होने की वजह से बंद हो गया था ट्रैक सूट बनाने का काम

संकट में मिला आइडिया, कतरनों से शुरु किया मास्क बनाने का कारोबार

Meerut। कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से हर इंसान की जिंदगी बदल गई। घर, दफ्तर, फैक्ट्री से लेकर सब कुछ बंद हो चुका था। संकट के इस दौर में जहां कुछ लोगों ने वर्क फ्रॉम होम को एडॉप्ट किया। वहीं ऐसे लोगों की तादाद कहीं ज्यादा रही, जिनके काम ही बंद हो गए। इसी कड़ी में कुछ ने निराशा का दामन थाम लिया तो कुछ ने अपनी कोशिशों को पंख दिए। ऐसे ही एक बदलाव की कहानी है नेहा कक्कड़ और किरन की। लॉकडाउन के दौरान किरन का ट्रैक सूट बनाने का स्टार्टअप पूरी तरह से चौपट हो गया था। बंद की वजह से वर्कर चले गए थे। लेकिन इन दोनों ने इस आपदा को ही अवसर में बदल दिया। हियर दी साइलेंस की नेहा ने अपनी सोच से किरन को दिशा और किरन ने मेहनत के बल पर संकट के दौर में भी इस सोच के जरिए खुद को उबार लिया। कोरोना काल में जब महामारी पूरी तरह से फैल चुकी थी और चारों और मास्क का संकट उपजा हुआ था तब वेस्ट को बेस्ट में बदलने के इनके फैसले ने न केवल अपने साथ-साथ दूसरों के जीवन में भी बदलाव लाने का प्रयास किया। डीजे आइनेक्स्ट से बातचीत में किरन और नेहा ने अपने बदलाव के सफर की कहानी को यूं साझा किया।

सब कुछ हो गया था डिस्टर्ब

बकौल किरन लॉकडाउन से कुछ महीनों पहले ही मैंने ट्रैक सूट बनाने का स्टार्ट-अप लगाया था। 10-12 कारीगर और दूसरा स्टॉफ काम कर रहे थे। 6-8 मशीनें भी लगी थी। काम ठीक चल रहा था। ऑडर भी काफी आ रहे थे। सीजन का पीक था कि अचानक ही लॉकडाउन हो गया। हमें लगा कि कुछ दिन में खुल जाएगा, लेकिन बंद लंबा होने लगा था। साइट पर सारा सामान ऐसी ही छोड़ना पड़ा। लंबे चले बंद से सब डिस्टर्ब हो गया था। लाखों का कपड़ा कंडम हो चुका था। जिनके ऑर्डर आए थे उनका काम बीच में ही रूक गया। चूंकि कपड़ा कट चुका था ऐसे में वह भी किसी काम का नहीं बचा था। पूरा माल कंडम होने लगा था।

संकट से उबरने का रास्ता

कोविड-19 के चलते मेरा काफी नुकसान हो चुका था। समझ नहीं आ रहा था कि अब कैसे और क्या किया जाएं। मैं हियर द साइलेंस संस्था के साथ सामाजिक सरोकारों के कामों से भी जुड़ी हुई हूं। संस्था ने मास्क वितरण का एक प्रोग्राम तय किया था। मास्क दुकानों पर आउट ऑफ स्टॉक हो गए थे और चौगुनी कीमत तक पर बिक रहे थे। बस यहीं से मुझे आपदा को अवसर में बदलने का रास्ता मिल गया। संस्था ऐसे लोगों के लिए काम करती है जिन्हें मदद की जरूरत होती है। लॉकडाउन के दौरान नेहा ने मुझसे कहा कि जरूरतमंद लोगों तक मास्क पहुंच ही नहीं रहा है। चूंकि कोरोना का संकट भी ऐसे लोगों पर उतना ही है जितना दूसरे लोगों पर है। फिर नेहा ने मुझे अचानक सुझाव दिया कि क्यों न खुद से ही मास्क तैयार किए जाएं। उसने कहा कि मेरे पास मशीनें हैं और सिलाई भी आती है। काफी कपड़ा जो खराब हो गया है और कतरनों को हम मास्क के जरिए री-यूज भी कर सकते हैं। इस बात पर मैने गौर किया तो मुझे नेहा का आइडिया पूरी तरह से जम गया। नेहा ने मास्क बनाने का तरीका बताया और मैंने बचे हुए कपड़ों से इन्हें तैयार करना शुरु कर दिया और वेस्ट को ही रीइंवेंट कर बेस्ट में बदल दिया। हमने अलग -अलग तरह के सौ से ज्यादा मास्क तैयार किए। और सबसे पहले हमने जरूरतमंद लोगों को मास्क दिए। फिर संस्था के लोगों के लिए मास्क बनाए। धीरे-धीरे खपत और डिमांड बढ़ने लगी। मास्क बनाने में मेरे साथ मेरी सहयोगी रचना भी जुड़ी रही।

बढ़ा लिया प्रोजेक्ट

लॉकडाउन की वजह से ट्रैक सूट बनाने का काम बंद हो गया था लेकिन मास्क बनाने के बाद मुझे लगा कि ये ऐसी चीज हैं जो बिना बीमारी के भी यूज की जा सकती है। कपड़े के मास्क नुकसान भी नहीं देते और इन्हें रियूज भी किया जा सकता है। ऐसे में अनलॉक के बाद भी मैंने इस आइडिया पर काम किया और प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा लिया। अब मैं जरूरतमंद लोगों के लिए भी अलग से मास्क तैयार करती हूं।

Posted By: Inextlive