Meerut : यदि आप ट्रेन में लगातार सफर करते हैं तो सावधान हो जाएं. इसके शोर से आप बहरेपन की सीमा तक पहुंच सकते हैं. ऐसा इंजन की तेज सीटी प्लेटफॉर्म के कोलाहल और चलती गाड़ी में पटरियों की तेज खटर-पटर से हो सकता है. ये आवाजें निर्धारित मानक से काफी ज्यादा हैं. ट्रेनों का शोर आम लोगों के लिए मुसीबत बन गया है. रेलवे प्रबंधन इससे लोगों को निजात दिलाने कोई विकल्प नहीं निकाल सका है. न इंजन के प्रेशर हॉर्न का तरीका बदला है और न ही उद्घोषणा के बजाए इलेक्ट्रॉनिक डिस्पले को अपनाया जा रहा है. रेलवे अपना साइलेंस जोन भी नहीं बना पाया है. पटरियों की आवाजें कम करने के जरूर कुछ प्रयास शुरू हुए हैं. अब बीच के ज्वाइंट खत्म कर 800 से 1200 मीटर पर ज्वाइंट दिए जा रहे हैं. इससे फिश प्लेट को कसने व निगरानी से मुक्ति मिली है.


Study by CPCB केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा देश के बारह रेल जोन के 14 स्टेशनों में अलग-अलग समय के दौरान ध्वनि प्रदूषण का अध्ययन कराया गया। इसमें पाया कि हर स्टेशन में ध्वनि प्रदूषण निर्धारित मानक से बहुत ज्यादा है। इसके बाद सभी 17 रेल जोन के 34 स्टेशनों में 2439 यात्रियों का सैंपल सर्वे किया गया। इसमें 31 प्रतिशत यात्री स्टेशन के शोर से परेशान मिले। रिपोर्ट में रेलवे के पास ध्वनि प्रदूषण को नापने और इस समस्या से निपटने कोई सिस्टम न होने की बात भी कही गई।कैग की रिपोर्ट
कैग ने अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया है। स्पीड के साथ बढ़ता है शोर। ट्रेन की गति बढऩे के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ता है। इस बारे में हुए अध्ययन  के मुताबिक ट्रेन में ध्वनि प्रदूषण 76.8 डेसीबल से 80.3 डेसीबल तब हो जाता है जब ट्रेन की स्पीड 80 किमी प्रति घंटे से 110 किमी प्रति घंटे होती है। इस प्रदूषण से एसी कोच के यात्री भी नहीं बच पाते। एसी कोच में 71 डेसीबल से 72 डेसीबल का ध्वनि प्रदूषण दर्ज किया जा चुका है।हाल-ए-मेरठ


कुछ ऐसा ही हाल मेरठ सिटी स्टेशन का भी है। पूरे मेरठ सिटी स्टेशन में 65 ट्रेन एक बार जरूर गुजरती हैं। अगर डेली की बात की जाए तो एक्सप्रेस, सुपर फास्ट, पैसेंजर, डेमो, शताब्दी और जन शताब्दी की कुल 45 ट्रेन गुजरती हैं। जिनमें से 17 पैसेंजर और और डेमो ट्रेन हैं। सिटी स्टेशन पर रोजाना सफर करने वालों की संख्या 50 से 60 हजार है। वहीं डेली पैसेंजर्स की संख्या 20 हजार से अधिक है।'110 डेसीबल से अधिक की आवाज कान के पर्दों को फाड़ सकती है, तो 70 से 90 डेसीबल की आवाज के बीच लगातार काफी देर गुजारने पर सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, उल्टी जैसी शिकायतें होती हैं। लंबी दूरी की यात्रा करने वाले अधिकांश लोग ऐसी शिकायतें लेकर चिकित्सकों के पास पहुंचते हैं.'- सुमित उपाध्याय, ईएनटी विशेषज्ञ 'ट्रेन का हॉर्न लोगों की सुरक्षा के लिए किया जाता है। उसके बाद भी लोग नहीं मानते हैं। वैसे हमें कभी भी कोई शिकायत नहीं मिली है। स्टेशन पर भी शोर काफी कम होता है.'- आरपी त्रिपाठी, स्टेशन अधीक्षक, सिटी स्टेशन 90 डेसीबल की आवाज

इंजन जब सीटी बजाता है तब उसकी आवाज 90 डेसीबल तक होती है। प्लेटफॉर्म के भीतर तो यह जबर्दस्त तरीके से असहनीय हो जाती है। आवासीय क्षेत्र से निकलते वक्त भी इंजन लगातार सीटी बजाते हैं। रात में लोगों की नींद खराब होती है, वहीं रोजाना के इस शोर से वे कुछ ऊंचा सुनने लगते हैं।फैक्ट एंड फिगर - मेरठ सिटी स्टेशन पर 45 ट्रेन रोज रुकती हैं। - 20 ट्रेने ऐसी हैं जो हफ्ते में एक, दो और तीन दिन चलती हैं। - सिटी स्टेशन पर रोज 17 पैसेंजर ट्रेने रुकती हैं।- स्टेशन से होकर गुजरने वाली 2 डेमो ट्रेन भी हैं।  - सिटी स्टेशन डेली कुल 50 से 60 हजार पैसेंजर सफर करते हैं। - जिनमे से रोज 20 हजार से अधिक यात्री डेली पैसेंजर हैं। पब्िलक ये कहती है 'ट्रेन की आवाज का इतना शोर होता है कि पास खड़े आदमी की आवाज भी नहीं सुनाई देती है। जब ट्रेन का प्रेशर हॉर्न बजता है तो अपने कान बंद करने पड़ते हैं.'- विनोद तोमर, डेली पैसेंजर'जब ट्रेन की स्पीड बढ़ जाती है तो मैं अपने कानों में कॉटन डाल देता हूं। ट्रेन की आवाज कभी-कभी काफी असहनीय हो जाती है। ट्रेन से उतरने के बाद काफी देर तक आवाज गूंजती है.'- सरयू गोयल, डेली पैसेंजर
'ट्रेनों में सफर करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। स्टेशन के सभी प्लेटफॉर्म पर हमेशा भीड़ रहती है। जिनका शोर भी काफी हो जाता है। उसके बाद स्टेशन के अनाउंसमेंट भी काफी लाउड होता है। जिससे भी दिक्कत होती है.'- शुभम जांगिड़, डेली पैसेंजर'वैसे तो पार्किंग कैंपस के बाहर होती है, लेकिन ट्रेनों के शोर से यहां तक आता है। मुझे तो सुनने में काफी दिक्कत होने लगी है। कुछ दिनों से सोच रहा हूं डॉक्टर से कंसल्ट करने की.'- इरशाद कुरैशी, पार्किंग ठेकेदार

Posted By: Inextlive