- पिछले दस-बारह सालों से काम कर रहे सभी डेलीवेज कर्मचारी अवैध

- प्रभारी रजिस्ट्रार प्रभाष द्विवेदी ने कर्मचारियों की नियुक्ति पर बैठाई जांच

Meerut: सीसीएस यूनिवर्सिटी का तो भगवान ही मालिक है, जिसको लंबे समय से डेलीवेज कर्मचारी चला रहे हैं। अब जाकर इन डेलीवेज कर्मचारियों की वैधता पर यूनिवर्सिटी ने सवाल खड़े किए हैं। जिसको लेकर इनकी नियुक्ति को यूनिवर्सिटी एक्ट के एकॉर्डिग अवैध करार दिया गया है। जिनके बारे में पहले कुछ याद नहीं आया। जिसके लिए कमेटी बनाकर जांच बिंदू तय किए गए हैं, साथ ही इनको यूनिवर्सिटी एक्ट के तहत एकदम अवैध करार दिया गया है।

यह है सीन

यूनिवर्सिटी के प्रभारी रजिस्ट्रार प्रभाष द्विवेदी ने क्ब् नवंबर को प्रोफेसर एचएस सिंह प्रो वीसी के नेतृत्व में ऑफिसिएटिंग रजिस्ट्रार, फाइनेंस ऑफिसर, एकाउंट ऑफिसर और असिस्टेंट रजिस्ट्रार की एक कमेटी गठित की। इस कमेटी को डेलीवेजेज कर्मचारियों के संबंध में जांच करनी है। जिसकी डिटेल इस कमेटी को गवर्नमेंट की नियुक्ति के संबंध में विभिन्न प्वाइंट पर जांच करके रिपोर्ट सौंपनी है। यह रिपोर्ट वाइस चांसलर को सौंपी जाएगी। इसके बाद निर्णय लिया जाएगा कि इन सभी कर्मचारियों को यूनिवर्सिटी में इतने लंबे समय से किस नियम के तहत रखा गया है।

ये हैं प्वाइंट

- भारत के संविधान की धारा-क्ब्, वैकेंसी नोटिफिकेशन एक्ट क्9भ्9 के प्राविधानुसार एवं यूपी राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम क्97फ् की धारा-ख्क्(फ्) के उल्लंघन में बिना किसी विज्ञापन एवं चयन प्रक्रिया के अस्तित्वहीन पदों के सापेक्ष की गई, उपरोक्त नियुक्तियों के (जो दैनिक वेतन पर शासनादेशों के प्रतिकूल की गई हैं) सितंबर ख्0क्ब् के भुगतान पर यथोचित निर्णयार्थ प्रस्तुत।

- पुनश्च यह भी सूच्य है कि उपरोक्त फ्ब्7 दैनिक वेतन भोगी कर्मियों में से जिनके नाम पर सही का निशान है, उनके प्रथम नियुक्ति आदेश प्राप्त हैं।

- कृपया प्रथम बार भुगतान के आधार की जांच को समिति बनाने के साथ डीआर सामान्य रिपोर्ट पर यथोचित निर्णय लेना है।

एक्ट के तहत नियुक्तियां अवैध

यह कमेटी प्रो वीसी की अध्यक्षता में बनाई गई है। जिसकी रिपोर्ट कमेटी को नवंबर माह में पूरी करके सौंपनी है। कमेटी को जांच के लिए दिए गए पहले ही बिंदु पर पंगा होना संभव है। जिसमें कहा गया है कि वैकेंसी नोटिफिकेशन एक्ट के तहत और यूनिवर्सिटी एक्ट के तहत उल्लंघन किया गया है। इनकी नियुक्तियां विज्ञापन एवं चयन प्रक्रिया अस्तित्वहीन पदों के सापेक्ष की गई हैं। जो शासनादेश के एकदम विपरीत हैं। इस प्वाइंट से सभी डेलीवेजेज कर्मचारियों की नियुक्तियां अवैध हैं। ऐसे में इनको वेतन डेली मिलना चाहिए, जबकि ये सभी महीने पर पैसा लेते हैं।

आज क्यों याद आया

यूनिवर्सिटी में करीब पांच सौ डेलीवेजेज कर्मचारी काम कर रहे हैं। जिनमें कई तो बारह साल लगातार लगे हुए हैं। जो केवल एक लेटर से नियुक्त कर दिए गए थे। जबकि ख्00ख् के बाद किसी भी नियुक्ति पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। लेकिन अब यूनिवर्सिटी के इस कदम से इनको एक बड़ी चोट लगने वाली है। जिसमें इन सभी की नौकरियां जा सकती हैं। साथ ही दुबारा विज्ञापन निकाले जाने के बाद ही नियुक्ति की जाएगी। यूनिवर्सिटी में इस कार्रवाई के चलते सैकड़ों कर्मचारियों को यूनिवर्सिटी से अलविदा होना पड़ सकता है।

बड़ी वित्तीय अनियमित्ता

हालत ये है कि इस यूनिवर्सिटी में डेलीवेजेज करीब डेढ़ सौ कर्मचारी बाबू का काम कर रहे हैं। कई तो ऐसे कर्मचारी हैं जो पिछले लंबे समय से इस यूनिवर्सिटी में रहकर परमानेंट कर्मचारियों से आगे निकल चुके हैं। काफी संख्या में कर्मचारी यूनिवर्सिटी के ही सरकारी क्वार्टर में रह रहे हैं। जबकि इनका सब खर्चा यूनिवर्सिटी वहन करती है। एक बड़ी वित्तीय अनियमित्ता पिछले लंबे समय से इस यूनिवर्सिटी में चल रही थी। डिप्टी रजिस्ट्रार और प्रभारी रजिस्ट्रार प्रभाष द्विवेदी का कहना है कि यह सबकुछ अवैध तरीके से चल रहा है। वे इसको खत्म करके रहेंगे।

वर्जन

इसको लेकर एक कमेटी बनाई गई है। जिसमें मैं भी हूं। सभी डेलीवेज कर्मचारियों का रिकार्ड देखा जा रहा है। यह बहुत पहले ही होना चाहिए था, लेकिन जो होगा सही होगा। - एचएस सिंह, प्रो वीसी, सीसीएस यूनिवर्सिटी

Posted By: Inextlive