धनुर विद्या लौह अयस्क विज्ञान जल विज्ञान समेत प्राचीन वस्तुओं का शोध कर आम जनमानस को बताया जाएगा सभी पांडुलिपियों को विश्वविद्यालय ने सहेज कर रखा आइकेएस के माध्यम से सभी पांडुलिपियों की हुई खोज

वाराणसी (ब्यूरो)संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में गायब हुई 35 पांडुलिपियां खोज के बाद मिल गई हैं। इन पांडुलिपियों को शोध के लिए सहेज कर रख दिया गया है। इनमें धनुर विद्या, जल विज्ञान, लौह अयस्क विज्ञान समेत प्राचीन वस्तुओं का शोध करके समाज के सामने रखा जाएगा। इन पांडुलिपियों की खोज खुद संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय ने इंडियन नॉलेज सिस्टम (आइकेएस) के माध्यम से कराया है.

पांडुलिपियों पर किया जाएगा शोध

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो। हरेराम त्रिपाठी ने बताया कि पांडुलिपियों को संरक्षण को लेकर काफी कार्य किए जा रहे हैं। इंडियन नॉलेज सिस्टम के माध्यम से और पांडुलिपियों की खोज की जा रही है। अभी 35 पांडुलिपियां मिली हैं। आगे और मिलने की संभावना हैं। इन पांडुलिपियों पर जल्द ही शोध किया जाएगा। इनमें धनुर विद्या, जल विज्ञान, लौह अयस्क विज्ञान पर शोध कर समाज को इनके महत्व के बारे में बताया जाएगा.

देश में पांडुलिपियों का भंडार

देश में पांडुलिपियों के रूप में बौद्धिक खजाने का विशाल भंडार है। इसके अलावा देश के विभिन्न संस्थाओं, विद्वानों के पास भी बड़ी संख्या में पांडुलिपियां मौजूद हंै। संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में एक लाख 11 हजार 132 पांडुलिपियां में सहेज कर रखी गईं है। सभी पर शोध चल रहा है। इंडियन नॉलेज सिस्टम के माध्यम से पांडुलिपियों की महत्ता को समझते हुए न केवल पांडुलिपियों की तलाश कर रही है बल्कि संरक्षित व लिपियंत्रण करने भी जुटी हुई है ताकि आमजन मानस पांडुलिपियों की महत्ता समझ सके.

भोजपत्र व कागज पर लिखी गईं

हस्तलिखित पांडुलिपियां लाक्षपत्र, भोजपत्र, कागज पर लिखी गई हंै। हजारों व सैकड़ों वर्ष पुरानी पांडुलिपियां होने के कारण व रखरखाव के अभाव में देश में पांडुलिपियों के अस्तित्व को लेकर खतरा बना हुआ है। इसे देखते हुए सरकार पांडुलिपियों को संरक्षण करने का काफी तेजी से कार्य किया जा रहा है.

सरस्वती भवन में संरक्षित हैं पांडुलिपियां

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में पांडुलिपियों के रूप में बौद्धिक खजाना संरक्षित हैं। बाह्मी, देवनागरी, मैथिली सहित विभिन्न भाषाओं में पुराण, ज्योतिष, तंत्रशास्त्र, मीमांसा, योग, आयुर्वेद सहित अन्य विषयों पर हस्तलिखित दुर्लभ पांडुलियां मौजूद हैं। इन पर शोध करने की जरूरत है। विश्वविद्यालय में इंडियन नालेज सिस्टम का सेंटर खुल जाने से खोज करने में आसानी हो रही है.

क्या है आईकेएस

कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी ने आईकेएस केंद्र की स्थापना के बारे में बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का मूल उद्देश्य भारतीय ज्ञान पर आधारित शिक्षा को बढ़ावा देना है। शिक्षा मंत्रालय भी भारतीय पारंपरिक ज्ञान पर आधारित शोध करने वाली आइआइटी को इंडियन नालेज सिस्टम (आइकेएस) के तहत प्रोत्साहित करने में जुटी हुई है.

प्राचीन काल में शिक्षा प्रणाली

प्राचीन काल में शिक्षा प्रणाली ज्ञान, परंपराएं व प्रथाएं मानवता को प्रोत्साहित करने वाली थी। भारतीय ज्ञान व परंपरा काफी समृद्ध रही है। देश-दुनिया के वैज्ञानिक जो अविष्कार कर रहे हैं, उसका उल्लेख हमारे वेद-पुराणों में हजारों वर्ष पहले किया जा चुका है। ऋषि-मुनियों के ज्ञान परंपरा को वैज्ञानिक रूप देने के लिए उच्च स्तरीय अनुसंधान करने की जरूरत है। इंडियन नालेज सिस्टम (आइकेएस) की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भी यही है। इससे ज्ञान परंपराओं को और बल मिलेगा।

आईकेएस के माध्यम से 35 और पांडुलिपियों का खोज किया गया। इनको सहेज कर रख दिया गया है। इन पांडुलिपियों पर शोध कर आम जनमानस को इनके महत्व के बारे में बताया जाएगा.

प्रोहरेराम त्रिपाठी, कुलपति, सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय

Posted By: Inextlive