करोड़ों का बायो रेमेडीयेशन यूनिट नाम का शहरवासी गिरा रहे मलबा एनजीटी के आदेश के बावजूद मलबा गिराने पर नहीं लग पा रही रोक पहले भी नगर निगम पर एनजीटी कार्रवाई करते हुए लगा चुकी है जुर्माना

वाराणसी (ब्यूरो)असि नदी, जिसे वाराणसी प्रशासन सहित कई लोगों द्वारा असि नाला के भी नाम से पुकारा जाता है। ये नाला शहर का एक अभिन्न अंग है। सदियों से इन नदियों की प्रशासन ने अनदेखी की है, यह अनदेखी यहां तक हुई असि सीवेज नहर में बदल गई है। वर्तमान में भी प्रशासन असि नदी पर दोयम दर्जे की नीति अपना रही है। एक तरफ तो नगर निगम असि नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए जिला प्रशासन के साथ संयुक्त प्रयास कर रहा है, लेकिन वहीं दूसरी ओर नगर निगम की कूड़ा गाडिय़ां ही असि में मलबा भी गिरा रही हैं। इस दोयम दर्जे की स्थिति से असि का अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म होने की ओर बढ़ रहा है.

लगाई गई यूनिट

असि नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए बायो रेमेडीयेशन यूनिट लगाई गई है। नगर निगम ने शहर के राजघाट, असि, नरोखा नाला, लख्खी, सामने घाट पर बायो रेमेडीयेशन यूनिट लगाई गई है, ताकि यहां से निकलने वाली नदी के जल को शुद्ध किया जा सके। इन जगहों पर लगी यूुनिट पर नगर निगम कुल एक करोड़ रुपए भी खर्च कर चुका है। इसके बावजूद यहां से निकलने वाला जल शुद्धता के मानकों पर खरा नहीं उतर रहा है। इसका कारण ये है कि यहां लगातार गंदगी के साथ मलबा गिराया जा रहा है। दुर्गाकुंड के पास रहने वाले लोगों की मानें तो यहां से गुजरने वाली असि नदी के समीप माह में दो से तीन बार मलबा गिराया जाता है।

कंदवा से निकली नदी

असि नदी का उद्गम स्थल कंदवा है। वहां से चितईपुर, करौंदी, करमजीतपुर, नेवादा, सरायनंदन, नरिया, साकेत नगर नगवां से गुजरते हुए गंगा में मिलती है। कुल आठ किलोमीटर नदी की लंबाई है। एक समय उद्गम स्थल से गंगा तक नदी की चौड़ाई 200 फुट थी। वर्तमान में कंदवा उदग्म स्थल पर नदी का व्यास 30 फुट है। नदी के आसपास रहने वाले लोगों की माने तो आज से चार दशक पहले तक इस नदी का पानी आचमन के लायक था, लेकिन अब यहां से लोगों का गुजरना तक दुभर हो गया है।

अतिक्रमण पर रोक नहीं

असि नदी का मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में चल रहा है। तीन जजों की बेंच ने 232 पेज की अंतरिम रिपोर्ट जारी की है, जिसमें हलफनामे के तौर पर वाराणसी जिला प्रशासन ने जो कार्य योजना प्रस्तुत की उसमें नदी का कायाकल्प करने की बात कही है। यही नहीं एनजीटी ने असि नदी की निगरानी के लिए तीन स्तरीय कमेटी का गठन किया है। इसमें पहली कमेटी जिलाधिकारी वाराणसी के नेतृत्व में काम करेगी और हर महीने कार्य के प्रगति की समीक्षा करेगी। दूसरी कमेटी वाराणसी मंडलायुक्त के नेतृत्व में गठित की गई है वह हर तीन माह पर मीटिंग लेंगे और कार्यों की समीक्षा करेंगे। तीसरी कमेटी हाईकोर्ट के जज के नेतृत्व में गठित की गयी है जो इन दोनों वरिष्ठ अधिकारियों के कार्यों की निगरानी करेगी.

एक तरफ तो नदी को शुद्ध किए जाने को लेकर प्रशासन करोड़ो रुपए पानी की तरह बहा रहा है, वहीं दूसरी ओर मलबा गिराकर असि नदी के अस्तित्व को ही खत्म किया जा रहा है। प्रशासन को अपनी दोयम दर्जे की नीति बंद कर देनी चाहिए.

कपिंद्र तिवारी, संयोजक, असि नदी मुक्ति अभियान

Posted By: Inextlive